परमेश्वर

लेखक: G. Bibu
अनुवादक: B. Beulah
  1. कुछ बुनियादी प्रश्न - उत्तर

1) प्रश्न: परमेश्वर त्रिएक है का क्या अर्थ है ?

उत्तर: बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि केवल एक ही परमेश्‍वर है। हालाँकि, उस एक परमेश्वर की पूर्ण दिव्यता के नामो को , गुण और कार्यो को, तीन व्यक्तियों - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, में समान रूप से बताया गया है। "त्रिएकत्व सिद्धांत" वह शिक्षा हैं जो इस सत्य से समझौता किए बिना कि परमेश्वर एक है, इन तीन व्यक्तियों की पूर्ण दिव्यता को स्वीकार करती है।

परमेश्वर एक है; लेकिन यह एक परमेश्वर तीन व्यक्तियों के रूप में विद्यमान है। इसका अर्थ यह नहीं है कि एक व्यक्ति में तीन अलग-अलग परमेश्वर हैं; इसका यह भी अर्थ नहीं है कि तीन अलग-अलग व्यक्ति मिलकर एक परमेश्वर बनाते हैं, कि यदि उस परमेश्वर को तीन भागों में विभाजित किया जाए, तो प्रत्येक व्यक्ति तीनों का एक भाग है, और यदि तीनों को एक साथ रखा जाए, तो पूरा परमेश्वर बन जाता है। पिता पूर्ण रूप से परमेश्वर है, पुत्र पूर्ण रूप से परमेश्वर है, और पवित्र आत्मा भी पूर्ण रूप से परमेश्वर है, फिर भी वे मिलकर तीन परमेश्वर नहीं बनाते हैं, बल्कि एक ही परमेश्वर हैं।

लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि पिता ही पुत्र हैं, या पुत्र ही पवित्र आत्मा हैं। पुराने नियम के युग में पिता के रूप में, नए नियम के युग में पुत्र के रूप में, और वर्तमान युग में पवित्र आत्मा के रूप में—इस प्रकार विभिन्न समयों में एक ही व्यक्ति ने तीन अलग-अलग भूमिकाएँ निभाईं, ऐसा मानना एक गलत धारणा है।पिता पुत्र नहीं है, पुत्र पवित्र आत्मा नहीं है, और पवित्र आत्मा न तो पिता है और न ही पुत्र। पिता, पिता ही हैं; पुत्र, पुत्र ही हैं; और पवित्र आत्मा, पवित्र आत्मा ही हैं। 

इसलिए यह कहना कि ये तीनों एक ही व्यक्ति हैं, या तीन अलग-अलग परमेश्वर हैं, या परमेश्वर के तीन भाग हैं, या परमेश्वर की तीन अलग-अलग भूमिकाएँ हैं—इनमें से कोई भी विचार त्रिएकत्व के सिद्धांत का सही विश्लेषण नहीं है। परमेश्वर एक ही है; लेकिन वही एक परमेश्वर तीन व्यक्तियों के रूप में विद्यमान है। यही त्रिएकत्व सिद्धांत की परिभाषा है।

2) प्रश्न: यह बाइबल आधारित शिक्षा कैसे हो सकती है, जब  "त्रिएकत्व" शब्द बाइबल में ही नहीं है?

उत्तर: बाइबल में दी गई शिक्षा को अपने शब्दों में व्यक्त करना गलत नहीं है। ऐसा तो हर सप्ताह हर एक कलीसिया में उपदेशो के रूप में होता रहता है। परमेश्वर ने स्वयं वचन की सेवा स्थापित की है और वचन प्रचारकों को कलीसिया के लिए नियुक्त किया है, जिससे वे वचन के सत्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकें। 

कई अपने शब्दों में दिया गया उपदेश गलत नहीं है, क्योंकि उसके माध्यम से प्रकट किया जाने वाला सत्य परमेश्वर का वचन ही है। इसी प्रकार, यदि 'त्रिएकत्व' शब्द के माध्यम से एक वचन-सत्य को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है, तो इसमें आपत्ति क्या है? यह देखना आवश्यक है +कि जो विचार व्यक्त किया जा रहा है, वह बाइबल में निहित है या नहीं। केवल यह तर्क देना कि 'त्रिएकत्व' शब्द बाइबल में नहीं है, इसलिए यह बाइबलीय सत्य नहीं है—ऐसी सोच  रखने  वालों की परिपक्वता पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है।

3) प्रश्न: त्रिएकत्व सिद्धांत पर यह विवाद क्यों है?

उत्तर: परमेश्वर ने स्वयं का परिचय बाइबल में दिया है। जो आज्ञा उसने हमें दी है कि तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना, वही उसका अपना परिचय है। यदि परमेश्वर के बारे में हमारी परिभाषा उसके स्व-प्रकाशन से भिन्न है, तो हम बाइबल के परमेश्वर की आराधना नहीं कर रहे हैं। यह हमें अपनी कल्पनाओं में बनाए गए परमेश्वर की आराधना करने के पाप की ओर ले जा सकता है। बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर त्रिएक है, इसके अलावा यदि हम यह विश्वास करें कि परमेश्वर एक व्यक्ति है जैसे एकेश्वरवाद या, बहुदेववादो की तरह यह विश्वास करें कि परमेश्वर अनेक व्यक्ति हैं, या यदि हम परमेश्वर को किसी अन्य सिद्धांत के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास करें, तो इससे हम तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना के  आज्ञा का पालन न करने जैसा होगा।

इसलिए, परमेश्वर की सभी संतानों के लिए यह आवश्यक है कि वे इस बात की जांच करें कि बाइबल परमेश्वर को किस प्रकार परिभाषित करती है और देखें कि क्या "त्रिएकत्व" शब्द में व्यक्त अर्थ उस परिभाषा के अनुरूप है।

4) प्रश्न: सभी त्रिएकत्ववाद कहते कि त्रिएकत्व को पूरी तरह से समझना असम्भव है तो जिस चीज़ को समझ नहीं सकते उसके लिए इतनी मशककत क्यों करें?

उत्तर: परमेश्‍वर को पूरी तरह से समझना किसी भी इंसान की पहुँच से बाहर है क्योंकि परमेश्वर का अतुलनीय (उत्कृष्टत) होना उसके गुणों में से एक महत्वपूर्ण गुण है। "अतुलनीय" का अर्थ है वह जिसे पूरी तरह से समझा या सीमित नहीं किया जा सकता। वह अनंत है, हमारी कल्पना, भावना और समझ से परे। हालाँकि, परमेश्वर को उस सीमा तक जानना संभव है, जहाँ तक उसने स्वयं को प्रकट किया है।

जो लोग अपने स्वयं के परिभाषाएँ लगाकर यह दावा करते हैं कि उन्होंने परमेश्वर को पूरी तरह से समझ लिया है, उनके लिए भले ही हम सांसरिख लगे, लेकिन परमेश्वर ने हमें जितनी सीमा तक अपना परिचय दिया है, उतनी ही सीमा तक उसे समझना हमारी जिम्मेदारी है। हालांकि इस सिद्धांत के अध्ययन में हमारा उद्देश्य परमेश्वर की सम्पूर्ण रहस्यात्मकता को पूरी तरह से सुलझाना नहीं है, बल्कि परमेश्वर ने अपने वचन में अपने बारे में जो प्रकट किया है, उसी सीमा तक उसे समझने का प्रयास करना है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह त्रिएकत्व के रहस्य को पूरी तरह समझने का अभ्यास नहीं है, बल्कि यह जानने का प्रयास है कि क्या त्रिएकत्व का सिद्धांत वास्तव में बाइबल की सच्चाई है।

5) प्रश्न: अगर कोई त्रिएकत्व में विश्वास नहीं करता, तो क्या वह स्वर्ग नहीं जायेगा?

उत्तर: यह वैसा ही प्रश्न है जैसे, "क्या मैं अच्छे कार्य करने पर स्वर्ग जाऊँगा?" जैसे उद्धार अच्छे कार्य करने से नहीं पाया जा सकता, वैसे ही सही सिद्धांतों पर विश्वास करने से भी उद्धार नहीं कमाया जा सकता। बाइबल सिखाती है कि उद्धार केवल परमेश्वर की नि:शुल्क अनुग्रह से मिलता है (इफिसियों 2:8-9)। तो फिर यह प्रमाण क्या है कि वह निःशुल्क अनुग्रह मेरे भीतर उद्धार का कार्य कर रहा है? इसके प्रमाण के रूप में दो निश्चित संकेत दिया जा सकता है। पहला, परमेश्वर द्वारा पहले से तैयार किए गए भले कामों में रुचि दिखाते हुए उन्हें करना  (इफिसियों 2:10, तीतुस 2:14)। दूसरा, परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए सम्पूर्ण सत्य से सहमत होकर, सत्य की शिक्षा के प्रति समर्पित रहना (यूहन्ना 8:47, 10:26-27, 1 यूहन्ना 4:6)। जिस प्रकार अच्छे कार्य करने से उद्धार नहीं मिलता, लेकिन जो उन्हें करने में रूचि नहीं लेता, उनके उद्धार की कोई पुष्टि नहीं की जा सकती, उसी प्रकार त्रिएकत्व के सिद्धांत या कोई और बाइबिलिया सिद्धांत को मानने से उद्धार तो नहीं मिलती लेकिन  इन्हें जो अस्वीकार करते हैं, उनको उद्धार मिली है यह कहना असंभव है।

  1. प्रमाण कि परमेश्वर त्रिएक है

बाइबल द्वारा परमेश्वर के बारे में सिखाई गई तीन मूलभूत सच्चाइयों को हम एक शब्द में सारांशित करके यह कह सकते है की परमेश्वर त्रिएक है। इसलिए यदि उन तीन सत्यों को सिद्ध किया जाए, तो यह प्रमाणित हो जाता है कि परमेश्वर त्रिएक हैं, और वे मूलभूत सत्य ये है:

  1. परमेश्वर एक ही हैं
  2. परमेश्वर के स्वरूप में बहुलता (अर्थात अनेकता) है
  3. परमेश्वर में यह बहुलता केवल तीन व्यक्तियों तक ही सीमित है — पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा

यदि ये तीन सिद्धांत बाइबिल द्वारा सिखाए गए सत्य हैं, तो यह सिद्ध होता है कि परमेश्वर एक है और वे तीन व्यक्तियों में विद्यमान है। यही त्रिएकत्व सिद्धान्त का सार है। आइए देखें कि ये तीनों सिद्धांत बाइबिल में मौजूद हैं या नहीं।

  1. परमेश्वर एक ही हैं

“तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना॥” निर्गमन 20:3 पहले ही आज्ञा में यह स्पष्ट किया गया है कि परमेश्वर एक ही हैं, और वह स्थान और महिमा किसी और को नहीं दी जानी चाहिए। यही सत्य बाइबिल के अनेक वचनो में बार-बार दोहराया गया है।

“मुझ से पहिले कोई ईश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा।” यशायाह 43:10

“मैं सब से पहिला हूं, और मैं ही अन्त तक रहूंगा; मुझे छोड़ कोई परमेश्वर है ही नहीं।”यशायाह 44:10

“क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है” यशायाह 46:9

“क्या हम सभों का एक ही पिता नहीं? क्या एक ही परमेश्वर ने हम को उत्पन्न नहीं किया?” मलाकी 2:10

यह सिद्धांत हमें केवल पुराने नियम में ही नहीं दिखता बल्कि नया नियम भी इस सत्य को बार बार वही स्पस्थ से दोहराता है।

“हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।” मरकुस 12:29

“और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने।” यूहन्ना 17:3

“क्योंकि एक ही परमेश्वर है” रोमियो 3:30

“क्योंकि परमेश्वर एक ही है: और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।” 1 तीमुथियुस 2:5

“तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है: तू अच्छा करता है” याकूब 2:19

सम्पूर्ण बाइबिल शुरुआत से अंत तक इस सत्य को, की परमेश्वर सिर्फ एक है की पुष्टि करती आ रही है इसलिए अगर कोई इस सत्य को नकारता है तो वो बाइबिल के विरुद्ध है।

  1. परमेश्वर के स्वरूप में बहुलता है

जिस तरह बाइबिल यह दावा करती है कि परमेश्वर एक है, उसी तरह यह भी स्पष्ट रूप से बताता है कि यह एक परमेश्वर अनेक स्वरुप में विद्यमान है। यह नियम कि मनुष्य को एक ही व्यक्ति होना चाहिए, आवश्यक रूप से परमेश्वर पर भी लागू नहीं होता। सृष्टि में किसी भी वस्तु के साथ उसके अस्तित्व की तुलना करना संभव नहीं है। बाइबल स्पष्ट रूप से पुष्टि करती है कि वह एक है, फिर भी वह अनेक व्यक्तियों के रूप में विद्यमान है।

आइये हम चार प्रमाणों पर विचार करें जो यह सिद्ध करते हैं की परमेश्वर के स्वरुप में बहुलता है:

A) परमेश्वर के लिए प्रयुक्त बहुवचन संबोधन यह सिद्ध करता है कि परमेश्वर के स्वरुप में बहुलता है:

“ हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है;” व्यवस्थाविवरण 6:4

यहाँ शब्द 'एक' का अनुवाद मूल हिब्रू शब्द 'एकाद' (Echad) से किया गया है। 'एकाद' शब्द  बहुलता में एकता को प्रकट करने के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, विवाह में स्त्री और पुरुष 'एक शरीर' बन जाते हैं। इस एकत्व को व्यक्त करने के लिए 'एकाद' शब्द उपयुक्त है। हम सब भारतीय हैं, हम सब एक हैं। इस एकता को प्रकट करने के लिए भी हिब्रू शब्द 'एकाद' का उपयोग होता है। इसके विपरीत, यदि केवल एक ही व्यक्ति या वस्तु की बात करनी हो, तो हिब्रू में 'याखीद' (Yachid) शब्द का प्रयोग किया जाता है।

हालाँकि यह संभव था कि अपने आप को “एक” कहने के लिए परमेश्वर केवल एकता को दर्शाने वाला हिब्रू शब्द “याखीद” (Yachid) का प्रयोग करते, लेकिन उन्होंने बहुलता में एकता को दर्शाने वाले शब्द “एकाद” (Echad) का प्रयोग किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर अपनी एकता में विद्यमान बहुलता को प्रकट करना चाहता है और यह हमारे लिए एक प्रमाण है की परमेश्वर के स्वरुप में बहुलता है।

B) परमेश्वर ने अपने समान लोगों से जो संवाद किए हैं, इस बात को सिद्ध करते हैं कि परमेश्वर में बहुलता है:

क्या परमेश्वर ने अपने समान या तुल्य लोगों से बात की थी? क्या वास्तव में "परमेश्वर के समान या तुल्य" जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है? येशु मसीह के बारे में  फिलिप्पियों 2:6 में ऐसा लिखा है — "परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।" इसलिए, यह बात मैंने स्वयं नहीं गढ़ी है। अगर कोई परमेश्वर के समान है, तो वह कौन हो सकता है? परमेश्वर ही, ना? अब ध्यान देते है उन कुछ अवसरों पर जहाँ परमेश्वर ने अपने समान लोगों से संवाद किया:

“हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं;” उत्पत्ति 1:26 यहाँ "अपने" स्वरूप में, "अपनी" समानता में का प्रयोग हुआ है न कि "मेरे" स्वरूप में, "मेरी" समानता में। कुछ लोग कहते हैं कि "हम" बहुवचन नहीं है, बल्कि केवल सम्मानसूचक है, और परमेश्वर "हम" और "अपने " जैसे सम्मानसूचक बहुवचन का उपयोग कर रहा है, जिस तरह राजा खुद को सम्मानपूर्वक संबोधित करते हैं।लेकिन ध्यान से देखिए — वह यह नहीं कह रहा कि "हमारे स्वरूप में करेंगे" या "हमारी समानता में करेंगे", बल्कि कहता है: "हम मनुष्य को बनाएँ"। यह क्रियापद "बनाएँ" (let us make) इस बात को दर्शाता है कि वह स्वयं के अलावा किसी और को भी इस कार्य में शामिल कर रहा है।ऐसी शैली को, जिसे केवल किसी और को साथ में लेकर ही उपयोग किया जा सकता है, केवल "सम्मानसूचक बहुवचन" कहकर टाल देना इतना आसान नहीं है। और यह कार्य सृष्टि का कार्य है, जिसे केवल परमेश्वर ही कर सकता है। बाइबिल में परमेश्वर के अलावा किसी और को सृष्टिकर्ता के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसलिए, यह संवाद किसी स्वर्गदूतों, प्रकृति, या किसी और सृजित प्राणी के साथ नहीं है — यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर के भीतर मौजूद विभिन्न दिव्य व्यक्तियों के बीच हुआ संवाद है। बाइबिल यह स्पष्ट करती है कि सृष्टिकर्ता केवल पिता ही नहीं (इफिसियों 3:9), बल्कि यीशु मसीह भी हैं (यूहन्ना 1:1–3), और केवल यीशु मसीह ही नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा भी हैं (उत्पत्ति 1:2; अय्यूब 33:4)। इसलिए यह जानना कठिन नहीं है कि इस संवाद में भाग लेने वाले कौन हैं — वे त्रैत्विक परमेश्वर के तीन व्यक्ति हैं।

डॉ. जॉन गिल ने त्रैतत्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए अपनी पुस्तक में एक विचित्र घटना को साक्ष्य सहित उल्लेख किया है।। उन्होंने बताया कि "अपनी समानता में, अपने स्वरूप के अनुसार" (उत्पत्ति 1:26) जैसे शब्द परमेश्वर में बहुलता (त्रित्व) को दर्शाते हैं — यह बात जब यहूदी विद्वानों को समझ आई, तो इस सिद्धांत का विरोध करने के लिए उन्होंने इस पद पर अपनी टिपण्णी में एक कथा जोड़ ली। कहानी कुछ इस प्रकार है: जब मूसा इस पद को लिख रहा था, तब वह रुक गया और परमेश्वर से पूछा, "हे प्रभु, जो सम्पूर्ण जगत के ईश्वर हो, यदि मैं इसे इस प्रकार लिख दूँ, तो क्या यह सत्य का विरोध करने वालों को ग़लत तरीके से बोलने का अवसर नहीं देगा?" इस पर परमेश्वर ने उत्तर दिया, "तू वैसे ही लिख, जो भटकने वाला है वह भटक ही जाएगा।" यह केवल हँसी की बात नहीं है, बल्कि इस कहानी से यह बात सामने आती है कि इस वचन से बहुलता की भावना कितनी प्रबल है — और इसे नकारने के लिए विरोधियों ने आरंभ से ही किस प्रकार के प्रयास किए हैं।

इसी प्रकार, अन्य वचनों में भी हम पाते हैं कि परमेश्वर ने अपने समान व्यक्तियों से संवाद किया। उदाहरण के लिए, जब आदम ने भले-बुरे के ज्ञान का फल खा लिया, तब परमेश्वर ने कहा, "मनुष्य हममें से एक के समान हो गया है" (उत्पत्ति 3:22)। यहाँ उन्होंने "मुझमें" नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से "हममें से एक" कहा। बाबेल की मीनार की घटना में भी, जब परमेश्वर ने नई भाषाओं को उत्पन्न किया, तब उन्होंने कहा: "आओ, हम नीचे उतरें और वहाँ उनकी भाषा को मिश्रित करें" (उत्पत्ति 11:7)। यहाँ भी परमेश्वर कह रहे हैं: "आओ", जैसे कि वह किसी ऐसे के साथ संवाद कर रहे हों जो उस सृष्टिकर्म को उनके साथ करने में सक्षम हो। इन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर उन अन्य दिव्य व्यक्तियों से संवाद कर रहे थे जो उनके समान सृजन करने की सामर्थ्य रखते हैं। ये घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि परमेश्वर के स्वरूप में बहुलता है।

C) यहोवा के दूत के प्रकट होने की घटनाएँ परमेश्वर में बहुलता होने का प्रमाण देती हैं :

पुराने नियम में हम अक्सर एक विशेष व्यक्ति प्रकट होता देखते हैं , जिसे यहोवा की ओर से संदेश लाने वाला "यहोवा का दूत" कहा जाता है।लेकिन यह दूत गब्रियल या मीकाईल नहीं था। क्योंकि इस दूत को उसी यहोवा के नाम से जाना जाता जिसने उसे भेजा था, इसलिए उसे अक्सर "यहोवा" या "परमेश्वर" कहकर भी संबोधित किया गया है । अब मैं आपको पुराने नियम से ऐसी कुछ घटनाएँ याद दिलाता हूँ जो इस बात को स्पष्ट रूप से दिखाती हैं।

हाजिरा जब अपनी मालकिन से बचकर भाग रही थी, तब "यहोवा का दूत" उसे प्रकट हुआ (उत्पत्ति 16:7)। इस प्रकार प्रकट हुए दूत को मूसा ने "यहोवा" कहकर संबोधित किया, और हाजिरा ने उसे "अत्ताएलरोई" कहा (उत्पत्ति 16:13)। दूसरे शब्दों में कहें तो, यहाँ प्रकट हुआ यहोवा का दूत "यहोवा" और "अत्ताएलरोई" कहकर वर्णित किया गया है। इस विवरण की पुष्टि करनेवाले और भी कई उदाहरणों को हम आगे देखेंगे।

यूसुफ जब अपने पितरों इब्राहीम और इसहाक के परमेश्वर को संबोधित करता है, और अपने जन्म से लेकर अब तक उसकी देखभाल और संरक्षण करनेवाले परमेश्वर के बारे में कहता है, तब वह उन्हें "मुझे बचानेवाले उस दूत" के रूप में संबोधित करता है (उत्पत्ति 48:15-16)।

मूसा से जलती हुई झाड़ी के बीच से जिसने बात की, वह "परमेश्वर का दूत" था (निर्गमन 3:2)। उसने स्वयं का परिचय इब्राहीम, इसहाक और यूसुफ के परमेश्वर के रूप में दिया (निर्गमन 3:6), और अपना नाम "यहोवा", अर्थात् "मैं जो हूँ"  बताया (निर्गमन 3:14)।

आख़िरकार यहोवा नामक यह दूत है कौन? जंगल की यात्रा के दौरान, परमेश्वर ने इस्राएलियों के आगे एक दूत को भेजते हुए कहा, "उस में मेरा नाम रहता है" (निर्गमन 23:21)। इसी वचन में परमेश्वर उन्हें चेतावनी भी देते हैं कि वे उस दूत की आज्ञा मानें और उसका विरोध न करें, क्योंकि यदि वे उसका क्रोध भड़काएँगे तो वह उनके अपराधों को क्षमा नहीं करेगा।

फिर भी उन्होंने उसके क्रोध को भड़काया और उसके प्रकोप का शिकार हुए — इस घटना को प्रेरित पौलुस हमें स्मरण दिलाते हुए चेतावनी देते हैं कि हम भी उनकी तरह प्रभु (पैर की टिप्पणी में “मसीह” लिखा है) को न परखें (1 कुरिंथियों 10:9)।इसलिए, यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभ से यहोवा के दूत के रूप में प्रकट होता आ रहा, यहोवा का नाम धारण करने वाला वही दूत, प्रभु यीशु मसीह हैं। इस बात की पुष्टि - " हे बेतलेहेम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझ में से मेरे लिये एक पुरूष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा; और उसका निकलना प्राचीन काल से, वरन अनादि काल से होता आया है।" (मीका 5:2) की भविष्यवाणी से होती है।

"मैं जो हूँ"  यह विशेषण केवल परमेश्वर के लिए ही उपयोग किया गया है। जब यही विशेषण परमेश्वर द्वारा भेजे गए एक दूत के लिए भी प्रयुक्त होता है, तो यह परमेश्वर में निहित बहुलता को प्रमाणित करता है।

यहोवा के दूत से संबंधित और भी प्रमाणों के लिए, "यहोवा का दूत कौन है" नामक लेख पढ़ें

D) ऐसे उदाहरण, जहाँ एक ही संदर्भ में एक से अधिक व्यक्तियों को "यहोवा" या "परमेश्वर" कहकर संबोधित किया जाता है, यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करते हैं कि परमेश्वर में बहुलता है:

 “तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई” (उत्पत्ति 19:24)

इस वचन का हिंदी में गलत अनुवाद किया गया है।  "यहोवा ने अपनी ओर से" के जगह "यहोवा ने ... यहोवा के और से" होना चाहिए था।(पुष्टि के लिए मूल हिब्रू पाठ देखें)

यहाँ हम पढ़ते हैं कि यहोवा ने अपने ओर से गंधक और आग की वर्षा की।

गंधक और आग किसने बरसाई? — यहोवा ने।

किसकी ओर से बरसाई? —  यहोवा की ओर से।

गंधक और आग बरसाने वाला यहोवा एक है, और जिसके ओर से वे बरसाई गईं वह यहोवा दूसरा।

इस प्रकार इस वचन में दो व्यक्तियों को यहोवा कहा गया है।

इसके विरोध में कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यहाँ सर्वनाम का प्रयोग न करके एक ही व्यक्ति को दो बार नामवाचक शब्द “यहोवा” से संबोधित किया गया है — इसका अर्थ यह नहीं कि दो अलग-अलग व्यक्ति हैं। परन्तु एक और वचन यह स्पष्ट करता है कि वास्तव में यहाँ दो भिन्न व्यक्तियों के बारे में लिखा गया है। मैं ने तुम में से कई एक को ऐसा उलट दिया, जैसे परमेश्वर ने सदोम और अमोरा को उलट दिया था, और तुम आग से निकाली हुई लुकटी के समान ठहरे; तौभी तुम मेरी ओर फिरकर न आए, यहोवा की यही वाणी है॥(आमोस 4:11) यहाँ यहोवा स्वयं कह रहा है कि जैसे परमेश्वर ने सदोम और अमोरा को उलटकर नाश किया, वैसे ही मैंने भी किया। इससे स्पष्ट होता है कि बोलने वाला यहोवा एक है, और जिसके विषय में कहा गया कि उसने सदोम और अमोरा को नाश किया — वह यहोवा दूसरा।

हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है।तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियों से अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है।(भजन संहिता 45:6-7)यहाँ ध्यान दीजिए — “हे परमेश्वर” कहकर जिसको संबोधित किया गया है, उसके बारे में लिखा है कि “परमेश्वर ने तेरा अभिषेक किया।” अर्थात्, जिसने अभिषेक किया वह भी परमेश्वर है, और जिसका अभिषेक किया गया वह भी परमेश्वर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यहाँ दो अलग-अलग व्यक्तियों को “परमेश्वर” कहा गया है।

और वह स्त्री फिर गर्भवती हुई और उसके एक बेटी उत्पन्न हुई। तब यहोवा ने होशे से कहा, उसका नाम लोरूहामा रख; क्योंकि मैं इस्राएल के घराने में फिर कभी दया कर के उनका अपराध किसी प्रकार से क्षमा न करूंगा।परन्तु यहूदा के घराने पर मैं दया करूंगा, और उनका उद्धार करूंगा; उनका उद्धार मैं धनुष वा तलवार वा युद्ध वा घोड़ों वा सवारों के द्वारा नहीं, परन्तु उनके परमेश्वर यहोवा के द्वारा करूंगा॥(होशे 1:6-7) यहाँ जो यहोवा कह रहा है, “मैं यहूदा का उद्दार करूँगा” वह एक है; और जिसके द्वारा वह बचाने की बात कर रहा है, वह दूसरा यहोवा है। इससे स्पष्ट होता है कि दो अलग-अलग व्यक्तियों को “यहोवा” कहा गया है।

हे सिय्योन, ऊंचे स्वर से गा और आनन्द कर, क्योंकि देख, मैं आकर तेरे बीच में निवास करूंगा, यहोवा की यही वाणी है।उस समय बहुत सी जातियां यहोवा से मिल जाएंगी, और मेरी प्रजा हो जाएंगी; और मैं तेरे बीच में बास करूंगा(जकर्याह 2:10,11)यहाँ ध्यान दीजिए — यहाँ  जो यहोवा कह रहा है, “मैं आकर तुम्हारे बीच निवास करूँगा,” वही आगे यह भी कहता है कि “उस दिन बहुत-सी जातियाँ यहोवा से मिलेंगे।” इससे स्पष्ट होता है कि यहाँ दो अलग-अलग व्यक्तियों को ‘यहोवा’ कहा गया है।

मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दाहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं(भजन संहिता110:1) यही भजनकार भजन 16:2 में  कहता है — “हे यहोवा, तू ही मेरा यहोवा है।” इसलिए यहाँ जब वह कहता है, “यहोवा ने मेरे यहोवा से कहा,” तो यह स्पष्ट है कि ये दो भिन्न व्यक्ति हैं, और दोनों ‘यहोवा’ है। इसी वचन के बारे में स्वयं प्रभु यीशु ने स्पष्ट किया कि यहाँ जिस यहोवा की बात की गई है, वह स्वयं मसीह है (मरकुस 12:37)।

आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।(यूहन्ना 1:1) जब वचन परमेश्वर के साथ था और वही वचन परमेश्वर भी था, तो इसका अर्थ दो अलग-अलग व्यक्ति परमेश्वर हैं, के सिवाय और क्या हो सकता है?

हालाँकि ऐसे और भी कई वचन बाइबल में हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये उदाहरण पर्याप्त हैं यह सिद्ध करने के लिए कि एक वचन में एक से अधिक व्यक्तियों को “परमेश्वर” या “यहोवा” कहा गया है।

परमेश्वर का बहुवचन में उल्लेख होना, उसका अपने समान व्यक्तियों से बात करना, ‘यहोवा का दूत’ का ‘यहोवा’ नाम से प्रकट होना, और कई स्थानों पर एक से अधिक व्यक्तियों को “परमेश्वर” या “यहोवा” कहा जाना, ये सब बातें स्पष्ट रूप से सिद्ध करती हैं कि — परमेश्वर के स्वरूप में  बहुलता है।

  1. परमेश्वर में यह बहुलता केवल तीन व्यक्तियों तक ही सीमित है — पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा

हमने यह वचनों के आधार पर निश्चित किया है कि परमेश्वर एक ही है, परन्तु उस परमेश्वर में बहुलता है। आगे जब देखा जाए कि उस बहुलता में कितने व्यक्तित्व हैं, तो वचन स्पष्ट रूप से बताते हैं कि — पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा — यही तीन व्यक्ति हैं जिन्हें समान दिव्य नाम, गुण, और कार्य दिए गए हैं। लेकिन जब हम कहते है की इन तीनों के नाम समान है तो इसका यह अर्थ नहीं कि हम — “पिता” नाम पुत्र के लिए, या “पुत्र” नाम पवित्र आत्मा के लिए, या “पवित्र आत्मा” नाम पिता या पुत्र के लिए एक-दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त करें। बल्कि, ये नाम वचनो में इन तीनों व्यक्तियों को अलग-अलग पहचानने के लिए विशिष्ट रूप से उपयोग किए गए हैं। इन विशिष्ट नामों को छोड़कर, बाकी सारे दिव्य नाम और गुण इन तीनों — पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा — पर समान रूप से लागू होते हैं।(इसलिए “पिता” को “पुत्र” नहीं कहा जा सकता, “पुत्र” को “पवित्र आत्मा” नहीं कहा जा सकता, और “पवित्र आत्मा” को “पिता” या “पुत्र” नहीं कहा जा सकता। हर एक को उसके विशिष्ट नाम और पहचान से ही संबोधित करना चाहिए।)

(A) शास्त्र केवल पिता को ही “परमेश्वर” नहीं कहता (यूहन्ना 17:3), बल्कि पुत्र को भी (यूहन्ना 1:1–14) और पवित्र आत्मा को भी (प्रेरितों के काम 5:3–4) “परमेश्वर” कहता है।

हालाँकि शास्त्रों में और भी कई व्यक्तियों को “परमेश्वर” कहा गया है, परन्तु इन तीनों के समान दिव्य गुण और स्वभाव किसी और में नहीं हैं। कुछ लोगों को यह उपाधि केवल इसलिए दी गई थी क्योंकि वे परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे थे, पर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को जो सच्ची दिव्यता, अधिकार और परमेश्वरत्व दिए गए हैं, वैसे गुण किसी और में नहीं पाए जाते।

(B) “यहोवा” नाम केवल परमेश्वर के लिए ही उपयुक्त है।उसकी नित्य उपस्थिति को यह नाम - “जो है” दर्शाता है। परंतु वचन केवल पिता को ही नहीं (निर्गमन 23:20), पुत्र को भी (यशायाह 48:12–16), और पवित्र आत्मा को भी (2 शमूएल 23:2–3; व्यवस्थाविवरण 32:12; यशायाह 63:14; भजन संहिता 95:6–11; इब्रानियों 3:6–11) “यहोवा” कहता है।

(C) “सृष्टिकर्ता” नाम केवल परमेश्वर के लिए ही उपयुक्त है।परंतु वचन केवल पिता को ही नहीं (इफिसियों 3:9; प्रेरितों के काम 4:24–25), बल्कि पुत्र को (यूहन्ना 1:2–3) और पवित्र आत्मा को भी (अय्यूब 33:4; भजन संहिता 33:6)यह नाम देता है।

(D) नित्य उद्धार देने वाला उद्धारकर्ता केवल परमेश्वर ही है। परंतु शास्त्र केवल पिता को ही नहीं (2 थिस्सलुनीकियों 2:13), पुत्र को (तीतुस 2:13) और पवित्र आत्मा को भी (तीतुस 3:5; यूहन्ना 3:6) उस नित्य उद्धार को देने वाले उद्धारकर्ता के रूप में पेचानता है।

(E) मसीह का देहधारण करना केवल परमेश्वर का ही कार्य है। इसमें इन तीनों का सहभाग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है (यशायाह 48:12–16; लूका 1:35)।

(F) सम्पूर्ण धर्म को पूरा करने वाले पुत्र का बपतिस्मा परमेश्वर का कार्य है (मत्ती 3:13–17)। इसमें इन तीनों का सहभाग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है (मरकुस 1:10–11)।

(G) पवित्र आत्मा को अपने स्थान पर भेजे जाने के दैवी कार्य में इन तीनों की भूमिका प्रभु ने स्वयं बताई है (यूहन्ना 14:16–17)।

(H) प्रभु की मृत्यु ही वह बलिदान है जिसने शाश्वत धर्म को प्राप्त किया। उस दैवी कार्य में इन तीनों का सहभाग है (जकर्याह 13:7; यूहन्ना 10:17; इब्रानियों 9:14)।

(I) प्रभु का पुनरुत्थान ही मसीही विश्वास की सत्यता का प्रमाण है। इस महान दैवी कार्य में इन तीनों का सहभाग है (रोमियों 6:4; यूहन्ना 2:19; रोमियों 8:11–13)।

(J) इन तीनों के नाम में बपतिस्मा देने की आज्ञा स्वयं प्रभु ने दी थी (मत्ती 28:20)। परंतु जब प्रेरितों के काम में लिखा है कि शिष्यों ने यीशु के नाम में बपतिस्मा दिया (प्रेरितों के काम 2:38; 8:16; 10:48; 19:5), तो कुछ लोग यह गलत निष्कर्ष निकालते हैं कि प्रभु की आज्ञा से भिन्न होकर केवल यीशु के नाम में ही बपतिस्मा दिया गया। यह समझ खेदजनक है। उन्होंने यह नहीं देखा कि शास्त्रों में “मसीह के नाम में” या “मसीह के नाम के कारण” जैसे वाक्यांश अक्सर केवल यह बताने के लिए प्रयोग किए गए हैं कि कोई कार्य मसीह से संबंधित है (लूका 24:44; प्रेरितों के काम 15:26; 26:9; रोमियों 15:20)।

(K) प्रेरितों ने इन तीनों के नाम में आशीर्वचन दिए (2 कुरिन्थियों 13:14; प्रकाशितवाक्य 1:4–8)। पुत्र से अनुग्रह, पिता से प्रेम, और पवित्र आत्मा से शांति मांगना — अर्थात इन तीनों से प्रार्थना करना ही है परमेश्वर ही वह है जिसे प्रार्थना की जानी चाहिए, क्योंकि वही उसे सुनने और पूरा करने में समर्थ और योग्य है। और यही कार्य — जो केवल परमेश्वर कर सकता है — प्रेरितों ने इन तीनों को समान रूप से समर्पित किया।

इन सभी संदर्भों से यह स्पष्ट है कि इन तीनों में से किसी एक को हटाना या किसी और को जोड़ना उचित नहीं है। इसलिए, एक ही परमेश्वर में विद्यमान यह बहुलता केवल तीन व्यक्तियों तक सीमित है — न उससे अधिक, न उससे कम।

समापन

बाइबल हमें जिस परमेश्वर को प्रकट करती है, वह तीन व्यक्तियों में विद्यमान एक ही परमेश्वर है। हमारी सीमित बुद्धि और तर्क में समाने वाला परमेश्वर मनुष्य की कल्पना से उत्पन्न होता है। हमारी कल्पना से परे इस त्रित्व परमेश्वर को हम केवल उसके प्रकाशन द्वारा ही जान सकते हैं।

यदि उसने अपने वचन में स्वयं को इस प्रकार प्रकट न किया होता, तो हम भी एकेश्वरवादियों की तरह परमेश्वर को एक ही व्यक्ति मानते, या मूर्तिपूजकों की तरह अनेक देवताओं पर विश्वास रखते, या सर्वेश्वरवादियों की तरह परमेश्वर को संसार से अलग न मानते। ये सब मानव तर्क में समाने वाले विचार हैं।

परंतु वचन कहता है कि एक ही परमेश्वर तीन व्यक्तियों में है, और ये तीनों पूर्ण रूप से परमेश्वर होते हुए भी तीन नहीं, एक ही परमेश्वर हैं। यह तर्क के अनुसार नहीं, बल्कि तर्क से परे सत्य है। इसलिए वह हमारी कल्पना, तर्क और विचारों से परे परमेश्वर है।

उसके समान प्रकृति में कुछ भी नहीं है। हम किसे उसके बराबर मान सकते हैं?इसलिए सृष्टि में ऐसा कोई उदहारण नहीं जिससे उसकी तुलना की जा सके। कोई भी उदाहरण उसे पूरी तरह प्रकट नहीं कर सकता। इसी कारण उदाहरणों के द्वारा त्रिएकत्व को समझाने का प्रयास व्यर्थ है।

अंडा, पानी, अग्नि, सूर्य, या मनुष्य के शरीर–आत्मा–प्राण जैसे अनेक उदाहरण लोग देते हैं, पर ये सभी केवल तीन भागों, तीन अवस्थाओं या तीन गुणों वाले एक ही वस्तु के रूप हैं।

उदाहरण के लिए सूर्य को लें — उसमें अग्नि, ऊष्मा और प्रकाश हैं; पर अग्नि स्वयं सूर्य नहीं है, प्रकाश स्वयं सूर्य नहीं है, और ऊष्मा स्वयं सूर्य नहीं है। परंतु पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है, और पवित्र आत्मा परमेश्वर है, फिर भी वे तीन परमेश्वर नहीं, एक ही परमेश्वर हैं।

इसी प्रकार, पानी बर्फ, द्रव और भाप — तीन रूपों में रह सकता है। यदि एक ही व्यक्ति पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में बदलता रहता, तो यह उदाहरण कुछ हद तक सही होता; पर यह त्रित्व को नहीं दर्शाता, क्योंकि पिता पुत्र नहीं है, और पुत्र पवित्र आत्मा नहीं है।

इसलिए कोई भी भौतिक उदाहरण पवित्र त्रिएकत्व को सही रूप में प्रकट नहीं कर सकता। परमेश्वर की त्रिएकता (एकता में त्रित्व) का कोई भी सृष्टि मै उदहारण नहीं है।

पवित्र त्रिएकत्व को समजना संभव नहीं है; बाइबल प्रकट करती है कि परमेश्वर त्रित्वमय है, इसे सत्य को हमें स्वीकार करना ही होगा। और यह केवल वचनो को ध्यान क्रम से करके प्रमाणित किया जा सकता है, जैसे इस लेख में किया गया है। अन्य सभी प्रयास व्यर्थ हैं।

परमेश्वर का वचन सत्य है। उसमें जो कुछ प्रकट किया गया है, वह चाहे समझ आए या न आए, वे सभी सत्य है। इसलिए बाइबल में प्रकट किया गया त्रिएक परमेश्वर, भले ही मेरी समझ से परे हो, वही सच्चा परमेश्वर है। उससे भिन्न हर विचार असत्य है, क्योंकि वह विचारो में न बताए गए किसी अन्य देवता की रचना है। ऐसे हर विचार का विरोध, परमेश्वर की संतानो को करना चाहिए।

केवल सच्चा, पवित्र, त्रिएक परमेश्वर पर ही विश्वास करना, उसी की आराधना करना और उसी का प्रचार करना। उसके सिवा कोई अन्य परमेश्वर नहीं है।

 

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