बाइबिल

  • 2 थिस्सलुनीकियों अध्याय-2
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1
हे भाइयों, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं।
2
कि किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा जो कि मानो हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुँचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाए; और न तुम घबराओ।
3
किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक विद्रोह नहीं होता, और वह अधर्मी पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट न हो।
4
जो विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्‍वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्‍वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्‍वर प्रगट करता है। (यहे. 28:2, दानि. 11:36-37)
5
क्या तुम्हें स्मरण नहीं, कि जब मैं तुम्हारे यहाँ था, तो तुम से ये बातें कहा करता था?
6
और अब तुम उस वस्तु को जानते हो, जो उसे रोक रही है, कि वह अपने ही समय में प्रगट हो।
7
क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता जाता है, पर अभी एक रोकनेवाला है, और जब तक वह दूर न हो जाए, वह रोके रहेगा।
8
तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा*, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा। (अय्यू. 4:9, यशा. 11:4)
9
उस अधर्मी का आना शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ्य, चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ।
10
और नाश होनेवालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा; क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिससे उनका उद्धार होता।
11
और इसी कारण परमेश्‍वर उनमें एक भटका देनेवाली सामर्थ्य को भेजेगा ताकि वे झूठ पर विश्वास करें*।
12
और जितने लोग सत्य पर विश्वास नहीं करते, वरन् अधर्म से प्रसन्‍न होते हैं, सब दण्ड पाएँ।
13
पर हे भाइयों, और प्रभु के प्रिय लोगों चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते रहें, कि परमेश्‍वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य पर विश्वास करके उद्धार पाओ। (इफि. 1:4-5, 1 पत. 1:1-5, व्य. 33:12)
14
जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो।
15
इसलिए, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो शिक्षा तुमने हमारे वचन या पत्र के द्वारा प्राप्त किया है, उन्हें थामे रहो।
16
हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्‍वर जिस ने हम से प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है।
17
तुम्हारे मनों में शान्ति दे*, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।।
 

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