1
तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूँ उत्तर दिया*,
2
“यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है?
3
पुरुष के समान अपनी कमर बाँध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे। (अय्यूब 40:7)
4
“जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली, तब तू कहाँ था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे।
5
उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा?
6
उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गई, या किस ने उसके कोने का पत्थर बैठाया,
7
जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?
8
“फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार बन्दकर उसको रोक दिया;
9
जब कि मैंने उसको बादल पहनाया और घोर अंधकार में लपेट दिया,
10
और उसके लिये सीमा बाँधा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़ें लगा दिए,
11
'यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमण्डनेवाली लहरें यहीं थम जाएँ।'
12
“क्या तूने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है,
13
ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे, और दुष्ट लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ?
14
वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएँ मानो वस्त्र पहने हुए दिखाई देती हैं।
15
दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बाँह तोड़ी जाती है।
16
“क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुँचा है, या गहरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?
17
क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए*, क्या तू घोर अंधकार के फाटकों को कभी देखने पाया है?
18
क्या तूने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बता दे।
19
“उजियाले के निवास का मार्ग कहाँ है, और अंधियारे का स्थान कहाँ है?
20
क्या तू उसे उसके सीमा तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहचान सकता है?
21
निःसन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था, और तू बहुत आयु का है।
22
फिर क्या तू कभी हिम के भण्डार में पैठा, या कभी ओलों के भण्डार को तूने देखा है,
23
जिसको मैंने संकट के समय और युद्ध और लड़ाई के दिन के लिये रख छोड़ा है?
24
किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, और पूर्वी वायु पृथ्वी पर बहाई जाती है?
25
“महावृष्टि के लिये किस ने नाला काटा, और कड़कनेवाली बिजली के लिये मार्ग बनाया है,
26
कि निर्जन देश में और जंगल में जहाँ कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर,
27
उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए?
28
क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूँदें किस ने उत्पन्न की?
29
किस के गर्भ से बर्फ निकला है, और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है?
30
जल पत्थर के समान जम जाता है, और गहरे पानी के ऊपर जमावट होती है।
31
“क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूँथ सकता या मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?
32
क्या तू राशियों को ठीक-ठीक समय पर उदय कर सकता, या सप्तर्षि को साथियों समेत लिए चल सकता है?
33
क्या तू आकाशमण्डल की विधियाँ जानता और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है?
34
क्या तू बादलों तक अपनी वाणी पहुँचा सकता है, ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले?
35
क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए, और तुझ से कहे, 'मैं उपस्थित हूँ?'
36
किस ने अन्तःकरण में बुद्धि उपजाई, और मन में समझने की शक्ति किस ने दी है?
37
कौन बुद्धि से बादलों को गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पों को उण्डेल सकता है,
38
जब धूलि जम जाती है, और ढेले एक-दूसरे से सट जाते हैं?
39
“क्या तू सिंहनी के लिये अहेर पकड़ सकता, और जवान सिंहों का पेट भर सकता है,
40
जब वे मांद में बैठे हों और आड़ में घात लगाए दबक कर बैठे हों?
41
फिर जब कौवे के बच्चे परमेश्वर की दुहाई देते हुए निराहार उड़ते फिरते हैं, तब उनको आहार कौन देता है?