हिट्स:18.
मुद्रण
लेखक: K. Vidya Sagar
अनुवादक: B. Beulah

पुराने नियम में “यहोवा के दूत” का परिचय हमें पहली बार तब आता है जब हागर सारा से भाग जाती है (उत्पत्ति 16:6–13)।बाइबल में स्वर्गदूतों का ज़िक्र कई जगह है, लेकिन यह “यहोवा का दूत” कोई साधारण स्वर्गदूत नहीं है।क्योंकि स्वर्गदूत कभी खुद को परमेश्वर या यहोवा नहीं कहते, और वचनो में भी कहीं उन्हें परमेश्वर या यहोवा नहीं कहा गया — और ऐसा करना निंदा माना जाएगा। इसी प्रकार वे परमेश्वर के योग्य महिमा को कभी स्वीकार नहीं करते (इस विषय पर अंत में चर्चा होगी)। लेकिन “यहोवा का दूत” हर बार परमेश्वर के सामन उसी नाम से दिखाई देता है, लोग उसे परमेश्वर मानते हैं, और वचन भी उसे परमेश्वर और यहोवा कहता है।क्योंकि वह वास्तव में परमेश्वर ही है — वह प्रभु यीशु मसीह है, जो पिता के साथ “यहोवा” नाम को धारण करता है।इस विषय को स्पष्ट करने के लिए, पहले मैं वे वचन दिखाऊँगा जहाँ “यहोवा के दूत” को स्पष्ट रूप से परमेश्वर कहा गया है; फिर, इस पर उठाई जाने वाली आपत्तियों और गलतफहमियों का उत्तर दूँगा; और अंत में सिद्ध करूँगा कि वह प्रभु यीशु मसीह ही हैं।

पुराने नियम में “यहोवा के दूत” का परिचय हमें पहली बार तब आता है जब हागर सारा से भाग जाती है (उत्पत्ति 16:6–13)।बाइबल में स्वर्गदूतों का ज़िक्र कई जगह है, लेकिन यह “यहोवा का दूत” कोई साधारण स्वर्गदूत नहीं है।क्योंकि स्वर्गदूत कभी खुद को परमेश्वर या यहोवा नहीं कहते, और वचनो में भी कहीं उन्हें परमेश्वर या यहोवा नहीं कहा गया — और ऐसा करना निंदा माना जाएगा। इसी प्रकार वे परमेश्वर के योग्य महिमा को कभी स्वीकार नहीं करते (इस विषय पर अंत में चर्चा होगी)। लेकिन “यहोवा का दूत” हर बार परमेश्वर के सामन उसी नाम से दिखाई देता है, लोग उसे परमेश्वर मानते हैं, और वचन भी उसे परमेश्वर और यहोवा कहता है।क्योंकि वह वास्तव में परमेश्वर ही है — वह प्रभु यीशु मसीह है, जो पिता के साथ “यहोवा” नाम को धारण करता है।इस विषय को स्पष्ट करने के लिए, पहले मैं वे वचन दिखाऊँगा जहाँ “यहोवा के दूत” को स्पष्ट रूप से परमेश्वर कहा गया है; फिर, इस पर उठाई जाने वाली आपत्तियों और गलतफहमियों का उत्तर दूँगा; और अंत में सिद्ध करूँगा कि वह प्रभु यीशु मसीह ही हैं।

  1. यहोवा का दूत परमेश्वर है

तब यहोवा के दूत ने उसको जंगल में शूर के मार्ग पर जल के एक सोते के पास पाकर कहा, हे सारै की लौंडी हाजिरा, तू कहां से आती और कहां को जाती है? उसने कहा, मैं अपनी स्वामिनी सारै के साम्हने से भाग आई हूं। यहोवा के दूत ने उससे कहा, अपनी स्वामिनी के पास लौट जा और उसके वश में रह। और यहोवा के दूत ने उससे कहा, मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊंगा, यहां तक कि बहुतायत के कारण उसकी गणना न हो सकेगी।(उत्पत्ति 16:7-10)

इस घटना में सारे की दासी हाजिरा से जंगल में मिलने वाला “यहोवा का दूत” कहता है, “मैं तेरे वंश को बढ़ाऊँगा।” ध्यान दें — ऐसा वादा केवल परमेश्वर ही कर सकता है, क्योंकि वृद्धि देने वाला केवल वही है (व्यवस्थाविवरण 1:10)। इससे स्पष्ट है कि यहाँ यहोवा का दूत स्वयं को परमेश्वर के रूप में प्रकट कर रहा है। यही नहीं आगे के वचन में देखिये की हाजिरा उसे कैसे पेहचानति है :

तब उसने यहोवा का नाम जिसने उससे बातें की थीं, अत्ताएलरोई रखकर कहा कि, क्या मैं यहां भी उसको जाते हुए देखने पाई जो मेरा देखनेहारा है?(उत्पत्ति 16:13)

इस वचन में हाजिरा ने उस दूत को, परमेश्वर के रूप में पहचाना। हाजिरा ही नहीं, बल्कि इस घटना को पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखने वाले मूसा ने भी यही बताया कि जो हागर से बातें कर रहा था, वह “यहोवा” ही था। आईए हम इस “यहोवा के दूत” को परमेश्वर सिद्ध करने वाले और घटनाये देखे।

और परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, हे हाजिरा तुझे क्या हुआ? मत डर; क्योंकि जहां तेरा लड़का है वहां से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पड़ी है। उठ, अपने लड़के को उठा और अपने हाथ से सम्भाल क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊंगा।(उत्पत्ति 21:17,18)

इस घटना में यहोवा का दूत फिर से हाजिरा को दिखाई देता है और इश्माएल के विषय में पहले किया गया वादा उसे याद दिलाता है। अब आइए देखें, जब यहोवा का दूत इब्राहीम के सामने प्रकट हुआ।

जब इब्राहीम अपने पुत्र को बलि करने के लिए हाथ बढ़ाकर छुरी ले ही लेता है, तब “यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकार के कहा, हे इब्राहीम, हे इब्राहीम; उसने कहा, देख, मैं यहाँ हूँ। उसने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उससे कुछ कर; क्योंकि तू ने जो मुझ से अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मैं अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है।” और इब्राहीम आँखें उठाकर देखता है कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपने सींगों से झाड़ी में फँसा हुआ है, तब वह जाकर उस मेढ़े को लेता है और अपने पुत्र की सन्ती होमबलि चढ़ा देता है। फिर “इब्राहीम ने उस स्थान का नाम यहोवा–यिरे रखा; इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है कि यहोवा के पहाड़ पर उपाय किया जाएगा।” (उत्पत्ति 22:10–14)

इस वचन में यहोवा का दूत इब्राहीम को रोकते हुए यह कहता है कि उसने अपने एकलौते पुत्र को “मुझसे नहीं रख छोड़ा”, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जिस परमेश्वर की आज्ञा से इब्राहीम इसहाक को अर्पण करने जा रहा था (उत्पत्ति 22:1–2), उसी परमेश्वर को यहोवा का दूत अपने लिए “मैं” कहकर प्रकट कर रहा था। इब्राहीम द्वारा उस स्थान का नाम यहोवा–यिरे रखना यह फिर सिद्ध करता है कि वह दूत वास्तव में यहोवा ही था। इसी प्रकार, जैसे उसने पहले हाजिरा से इश्माएल के विषय में प्रतिज्ञा की थी, वैसे ही यहाँ भी “यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को पुकारा, और कहा, मैं अपने आप से शपथ खाता हूँ, यहोवा की यह वाणी है, कि क्योंकि तू ने यह काम किया और अपने पुत्र को, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं तुझे आशीष दूँगा, और तेरे वंश को आकाश के तारों और समुद्र तट की बालू के समान बहुत बढ़ाऊँगा; और तेरा वंश अपने शत्रुओं के द्वार पर अधिकार करेगा।” (उत्पत्ति 22:15–18)। इब्राहीम के वंश को बढ़ाने वाला केवल यहोवा ही है (व्यवस्थाविवरण 1:10), और वही प्रतिज्ञा यहाँ यहोवा का दूत करते हुए दिखाई देता है।

इस प्रकार, पुराने नियम को ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि पिता परमेश्वर के साथ-साथ एक और व्यक्तित्व भी है, जिसे यहोवा कहा गया है उद्धरण के लिए एक और वचन देखते है।

तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई। (उत्पत्ति 19:24)

नोट: हिन्दी अनुवाद में “यहोवा ने अपनी ओर से…” लिखा गया है, जिससे दो व्यक्तियों की यह भिन्नता स्पष्ट दिखाई नहीं देती। परन्तु अंग्रेज़ी बाइबल (जैसे KJV, NASB, ESV आदि) के मूल अनुवाद में यह वचन इस प्रकार है: “Then the LORD rained brimstone and fire from the LORD out of heaven.” (Genesis 19:24)

यहाँ दो अलग-अलग व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से “LORD”(यहोवा) कहा गया है। इसी घटना के विषय में लिखा गया एक और विवरण को पड़ते है।

मैं ने तुम में से कई एक को ऐसा उलट दिया, जैसे परमेश्वर ने सदोम और अमोरा को उलट दिया था; और तुम आग से निकाली हुई लकटी के समान ठहरे; तौभी तुम मेरी ओर फिरकर न आए — यहोवा की यही वाणी है।(आमोस 4:11)

इस वचन में स्वयं यहोवा बोल रहा है—इसलिए वह अन्त में कहता है, “यहोवा की यही वाणी है।” वह कहता है कि जैसे सदोम और अमोरा को परमेश्वर ने उलट दिया, वैसे ही मैं ने तुम में से कई लोगों को उलट दिया, फिर भी तुम मेरी ओर नहीं लौटे। यदि यह शब्द केवल कोई मनुष्य-प्रवक्ता बोल रहा होता, तो वह कैसे कह सकता कि “मैं ने तुम्हें उलट दिया” और “तुम मेरी ओर नहीं लौटे”?

उत्पत्ति 18 से 19 अध्याय तक के विवरण को देखने पर पता चलता है कि पहले तीन व्यक्ति इब्राहीम के सामने प्रकट होते हैं। इब्राहीम उनमें से केवल एक को “प्रभु” कहकर आदर देता है और उनका सत्कार करता है। उन तीन में से एक यहोवा था और बाकी दो स्वर्गदूत थे (उत्पत्ति 18:1–4)। उनके भोजन करने के बाद वे दो स्वर्गदूत सदोम और अमोरा की ओर लूत के घर जाते हैं (उत्पत्ति 18:16, 22; 19:1), परन्तु यहोवा इब्राहीम के पास ही ठहरकर उससे संवाद करता है, और बातचीत के बाद वहाँ से चला जाता है (उत्पत्ति 18:16–33)। अगले दिन वही यहोवा सदोम और अमोरा जाता है, वहाँ उन स्वर्गदूतों द्वारा नगर से बाहर निकाले गए लूत से बात करता है, और फिर दूसरे यहोवा की ओर से आग और गन्धक बरसाकर उन नगरों को नाश करता है (उत्पत्ति 19:17–25)।

(कुछ लोग ने पूछा कि इब्राहीम के घर आए यहोवा ने उन नगरों को कैसे नष्ट किया, जबकि वह इब्राहीम से बातचीत के बाद “चला गया”, और नाश तो अगले दिन हुआ? परंतु इब्राहीम के पास आने का दूसरा कारण यह था कि वह सदोम और अमोरा के नाश के विषय में इब्राहीम को बता दे—उत्पत्ति 18:17–21—इसलिए अगले दिन उन्हीं नगरों को नष्ट करने वाला वही यहोवा था।)

इस प्रकार सदोम और अमोरा के नाश के समय दो यहोवा दिखाई देते हैं—यह सत्य पुराने नियम में हमें स्पष्ट रूप से दिखाता है। इन दो यहोवा का उल्लेख हमें आगे यशायाह और जकर्याह की पुस्तकों में भी मिलेगा, जिन्हें हम बाद में देखेंगे।

इसी तरह, जैसा इब्राहीम और हाजिरा के सामने यहोवा “यहोवा के दूत” के रूप में प्रकट हुआ और उनसे बात की, और इन घटनाओं को लिखने वाले पवित्र आत्मा से प्रेरित लेखक भी स्पष्ट रूप से उसे परमेश्वर कहते हैं। अब हम देखते हैं कि वही यहोवा याकूब के सामने कैसे प्रकट हुआ।

जब याकूब बताता है कि उसके झुंडों के गाभिन होने के समय उसने एक स्वप्न देखा, तो वह कहता है — “भेड़-बकरियोंके गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियों पर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है। और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब: मैं ने कहा, क्या आज्ञा। उसने कहा, आंखे उठा कर उन सब बकरों को, जो बकरियों पर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है। मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी थी: अब चल, इस देश से निकल कर अपनी जन्मभूमि को लौट जा।” (उत्पत्ति 31:10–13)

यहाँ याकूब स्वयं गवाही देता है कि स्वप्न में प्रकट होने वाला एक दूत उससे कहता है कि “मैं बेतेल का ईश्वर हूँ," अर्थात वही यहोवा जिसे उसने स्तम्भ पर तेल डालकर मन्नत मानकर पूजा था। अब प्रश्न यह है कि बेतेल में याकूब को प्रकट हुआ दूत था या यहोवा? इसे समझने के लिए वह घटना फिर देखनी होगी —

“और उसने किसी स्थान में पहुंच कर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; सो उसने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बना कर रखा, और उसी स्थान में सो गया। तब उसने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है: और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। और यहोवा उसके ऊपर खड़ा हो कर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं: जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा… और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा… तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था… भोर को याकूब तड़के उठा, और अपने तकिए का पत्थर ले कर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया।” (उत्पत्ति 28:11–18)

इस विवरण के अनुसार बेतेल में याकूब को यहोवा स्वयं प्रकट हुआ था। इसलिए उत्पत्ति 31 में जो “यहोवा का दूत” कहता है कि “मैं बेतेल का ईश्वर हूँ,” वह दूत कोई सामान्य दूत नहीं, बल्कि वही यहोवा है जिसने बेतेल में याकूब को दर्शन दिया था। ध्यान देने की बात है कि “यहोवा का दूत” और "यहोवा” — दोनों एक ही हैं। वह कई स्थानों पर केवल ‘दूत’ भी कहा गया है। यह बात याकूब के आशीर्वाद के समय फिर देखा जा सकता है — “परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक (अपने को जानकर ) चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से ले कर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है; और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशीष दे…” (उत्पत्ति 48:15–16)

यहाँ याकूब बेतेल में प्रकट हुए यहोवा को “दूत” भी कहता है। इसका अर्थ है कि याकूब को प्रकट होने वाला दूत और यहोवा का दूत  — दोनों एक ही व्यक्ति हैं।

यह और भी स्पष्ट होता है जब यहोवा स्वयं इस दूत के बारे में कहता है — “सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा… उसके साम्हने सावधान रहना… क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिये कि उस में मेरा नाम रहता है… इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के यहां पहुंचाएगा, और मैं उन को सत्यनाश कर डालूंगा।” (निर्गमन 23:20–23)

शास्त्र जिस दूत को यहोवा परमेश्वर कहकर प्रस्तुत करता है, उसी दूत को याकूब ने अपनी मृत्यु के समय भी याद किया था, और अब उसी दूत के बारे में यहाँ पिता परमेश्वर बात कर रहा है। इन वचनों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उस दूत के पास परमेश्वर का नाम है, इसलिए वह दूत यहोवा कहलाता है। पिता परमेश्वर के अनुसार वही दूत इस्राएलियों को मिस्र से निकालकर कनान की ओर ले जाएगा। अब देखें कि उस दूत के बारे में क्या लिखा है —

“और यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जा कर कहने लगा, कि मैं ने तुम को मिस्र से ले आकर इस देश में पहुंचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी। और मैं ने कहा था, कि जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है, उसे मैं कभी न तोडूंगा; इसलिये तुम इस देश के निवासियों वाचा न बान्धना; तुम उनकी वेदियों को ढा देना। परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्यों किया है? इसलिये मैं कहता हूं, कि मैं उन लोगों को तुम्हारे साम्हने से न निकालूंगा; और वे तुम्हारे पांजर में कांटे, और उनके देवता तुम्हारे लिये फंदे ठहरेंगे।” (न्यायियों 2:1–3)

पिता परमेश्वर ने इस्राएलियों के आगे जिस दूत या परमेश्वर के दूत को भेजा था, उसी दूत को यहाँ “यहोवा का दूत” कहा गया है। इसलिए यहोवा के रूप में प्रकट होने वाला परमेश्वर का दूत, दूत, और यहोवा का दूत — ये सब एक ही हैं। आगे बढ़ते हुए हम इसे फिर याद करेंगे। फिलहाल हम कुछ और ऐसे उदाहरण देखें जो यह सिद्ध करते हैं कि यहोवा का दूत स्वयं परमेश्वर है। यह बात पहले देखे गए वचनों में भी स्पष्ट लिखी है। कहाँ ?

निर्गमन 34:11–13 में यहोवा परमेश्वर मूसा से कहता है —“जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को निकालता हूं। इसलिये सावधान रहना कि जिस देश में तू जाने वाला है उसके निवासियों से वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिये फंदा ठहरे। वरन उनकी वेदियों को गिरा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूतिर्यों को काट डालना;”

इन्हीं बातों को यहोवा का दूत अपने कहे हुए शब्दों के रूप में बताता है —“मैं ने तुम को मिस्र से ले आकर, जिस देश के विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी, उसमें पहुंचाया, और जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है उसे मैं कभी न तोडूंगा।तुम इस देश के निवासियों से वाचा न बान्धना; और उनकी वेदियों को ढा देना — परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी।”

चलिए आगे बढ़ते हैं;

मूसा अपने ससुर यित्रो नाम मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियों को चराता था; और वह उन्हें जंगल की परली ओर होरेब नाम परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली फाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उसने दृष्टि उठाकर देखा कि फाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। तब मूसा ने सोचा कि मैं उधर फिर के इस बड़े आश्चर्य को देखूँगा, कि यह फाड़ी क्यों नहीं जल जाती। जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने फाड़ी के बीच से उसको पुकारा— हे मूसा, हे मूसा। और उसने कहा — क्या आज्ञा। तब उसने कहा — इधर पास मत आ; अपने पांवों से जूतियाँ उतार दे, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है। फिर उसने कहा — मैं तेरे पिता का परमेश्वर, इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ। तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता था, अपना मुँह ढाँप लिया।(निर्गमन 3:1-6)

इस घटना में यहोवा का दूत मूसा के सामने प्रकट होकर स्वयं को परमेश्वर कहता है, और शास्त्र ने भी उसे यहोवा कहा है। मूसा भी अपनी अंतिम दिनों में उसी दूत को याद करते हुए उसे यहोवा-परमेश्वर मानता है।

“और पृथ्वी और जो अनमोल पदार्थ उस में भरे हैं, और जो झाड़ी में रहता था उसकी प्रसन्नता — इन सभों के विषय में यूसुफ के सिर पर, अर्थात उसी के सिर के चाँद पर जो अपने भाइयों से न्यारा हुआ था, आशीष ही आशीष फले।” (व्यवस्थाविवरण 33:16)

इस संदर्भ में जो दूत मूसा को पुकारता है वह अपना परिचय ऐस देता है - "मैं जो हूँ सो हूँ, ... तुम इस्राएलियों से कहना कि ‘मैं हूँ’ ने मुझे भेजा है… इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर — यहोवा — यही मेरा नाम है, और इसी से मेरा स्मरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता रहेगा।”(निर्गमन 3:14-15)

अब आइये उस घटना को देखे जब वह बिलाम के सामने प्रकट हुआ;

(गिनती22:31-35) “तब यहोवा ने बिलाम की आंखें खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह झुक गया, और मुंह के बल गिरके दण्डवत की। यहोवा के दूत ने उससे कहा, तू ने अपनी गदही को तीन बार क्यों मारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूं, इसलिये कि तू मेरे साम्हने उलटी चाल चलता है; और यह गदही मुझे देखकर मेरे साम्हने से तीन बार हट गई। जो वह मेरे साम्हने से हट न जाती, तो नि:सन्देह मैं अब तक तुझ को मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता। तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता था कि तू मेरा साम्हना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिये अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूं। यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, इन पुरुषों के संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूंगा। तब बिलाम बालाक के हाकिमों के संग चला गया।”

इन वचनो में यह स्पष्ट दीखता  है कि यहोवा का दूत बिलाम से परमेश्वर की तरह बात करता है, और बिलाम भी उसे परमेश्वर मानकर उसके सामने दण्डवत करता है।

उस अवसर को देखे जब वह गिदोन को प्रकट होता है ;

यहोवा का दूत आकर उस बांजवृक्ष के तले बैठ गया, जो ओप्रा में अबीएजेरी योआश का था, और उसका पुत्र गिदोन एक दाखरस के कुण्ड में गेहूं इसलिये झाड़ रहा था कि उसे मिद्यानियों से छिपा रखे। उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा— हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है। गिदोन ने उससे कहा— हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर यह सब विपत्ति क्यों पड़ती? और जितने आश्चर्यकर्मों का वर्णन हमारे पुरखा यह कहकर करते थे कि क्या यहोवा हम को मिस्र से छुड़ा नहीं लाया— वे कहाँ रहे? अब तो यहोवा ने हम को त्याग दिया और मिद्यानियों के हाथ कर दिया है। तब यहोवा ने उस पर दृष्टि करके कहा— अपनी इसी शक्ति पर जा, और तू इस्राएलियों को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाएगा; क्या मैंने तुझे नहीं भेजा? उसने कहा— हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, मैं इस्राएल को क्योंकर छुड़ाऊँ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सबसे कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सबसे छोटा हूँ। यहोवा ने उससे कहा— निश्चय मैं तेरे संग रहूँगा; सो तू मिद्यानियों को ऐसा मार लेगा जैसा एक मनुष्य को। गिदोन ने उससे कहा— यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मुझे इसका कोई चिन्ह दिखा कि तू ही मुझ से बातें कर रहा है। जब तक मैं तेरे पास फिर आकर अपनी भेंट निकाल कर तेरे सामने न रखूँ, तब तक तू यहाँ से न जा। उसने कहा— मैं तेरे लौटने तक ठहरा रहूँगा। तब गिदोन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक एपा मैदे की अखमीरी रोटियाँ तैयार कीं; तब मांस को टोकरी में और जूस को तसले में रखकर बांजवृक्ष के तले उसके पास ले जाकर दिया। परमेश्वर के दूत ने उससे कहा— मांस और अखमीरी रोटियों को लेकर इस चट्टान पर रख दे और जूस को उण्डेल दे। उसने ऐसा ही किया। तब यहोवा के दूत ने अपने हाथ की लाठी को बढ़ाकर मांस और अखमीरी रोटियों को छुआ, और चट्टान से आग निकली, जिससे मांस और अखमीरी रोटियाँ भस्म हो गईं; तब यहोवा का दूत उसकी दृष्टि से अन्तर्धान हो गया। जब गिदोन ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था, तब गिदोन कहने लगा— हाय, प्रभु यहोवा! मैंने तो यहोवा के दूत को साक्षात देखा है।(न्यायियों 6:11–22)

इस घटना में पहले गिदोन के सामने यहोवा का दूत प्रकट होता है, और आगे चलकर वही दूत “यहोवा” के रूप में गिदोन से बात करता है। इन वचनो में  उसे “यहोवा का दूत” और “परमेश्वर का दूत” दोनों नामों से संबोधित किया गया है। इससे यह और अधिक स्पष्ट होता है कि यहाँ जो अपनी उपस्थिति को यहोवा/परमेश्वर के समान दिखा रहा था— वही यहोवा का दूत है, वही परमेश्वर का दूत है, और वही दूत है और ये तीनो एक ही है।

और आगे बढ़ने पर एक और संदर्भ में हमें यह स्पष्टता फिर दिखाई देती है जब वह संसन के माता-पिता को प्रकट होता है -

“तब मानोह ने अन्नबलि समेत बकरी का एक बच्चा ले कर चट्टान पर यहोवा के लिये चढ़ाया। और मानोह तथा उसकी पत्नी के देखते-देखते उस दूत ने एक अद्भुत काम किया।
 अर्थात जब लौ उस वेदी पर से आकाश की ओर उठ रही थी, तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में होकर, मानोह और उसकी पत्नी के सामने-सामने ऊपर चढ़ गया; तब वे भूमि पर मुंह के बल गिर पड़े। परन्तु यहोवा के दूत ने मानोह और उसकी पत्नी को फिर कभी दर्शन न दिया। तब मानोह ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था। तब मानोह ने अपनी पत्नी से कहा— ‘हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हमने परमेश्वर का दर्शन पाया है।’ ” (न्यायियों 13:19–22)

इस घटना में यहोवा का दूत संसन के माता-पिता को प्रकट होता है। मानोह को जब यह समझ आया कि जिसने उन्हें दर्शन दिया वह साधारण दूत नहीं बल्कि यहोवा का दूत है—तभी उसे एहसास हुआ कि वह तो परमेश्वर को देख चुका है। इसी कारण वह डर गया और अपनी पत्नी से कहने लगा कि “हम तो मर ही जाएँगे, क्योंकि परमेश्वर को देखने वाला जीवित नहीं बचता!” यहाँ भी इस दूत का उल्लेख “यहोवा का दूत” और साथ-साथ “दूत” दोनों रूपों में आया है, जो फिर यह स्पष्ट करता है कि वह दूत, और यहोवा का दूत—दो नहीं, बल्कि एक ही है।

और आगे पढ़ने पर हमें एक और संदर्ब में यही स्पष्टता से  दिखाई देती है कि यहोवा का दूत वास्तव में कौन था। उस सन्दर्भ को देखे जब वह दाऊद को प्रकार प्रकट हुआ:

“फिर परमेश्वर ने एक दूत यरूशलेम को भी उसे नाश करने को भेजा; और वह नाश करने ही पर था, कि यहोवा दु:ख देने से खेदित हुआ, और नाश करने वाले दूत से कहा, बस कर; अब अपना हाथ खींच ले। और यहोवा का दूत यबूसी ओर्नान के खलिहान के पास खड़ा था। और दाऊद ने आंखें उठा कर देखा, कि यहोवा का दूत हाथ में खींची हुई और यरूशलेम के ऊपर बढ़ाई हुई एक तलवार लिये हुए आकाश के बीच खड़ा है, तब दाऊद और पुरनिये टाट पहिने हुए मुंह के बल गिरे। तब दाऊद ने परमेश्वर से कहा, जिसने प्रजा की गिनती लेने की आज्ञा दी थी, वह क्या मैं नहीं हूँ? हां, जिसने पाप किया और बहुत बुराई की है, वह तो मैं ही हूँ। परन्तु इन भेड़-बकरियों ने क्या किया है? इसलिये हे मेरे परमेश्वर यहोवा! तेरा हाथ मेरे पिता के घराने के विरुद्ध हो, परन्तु तेरी प्रजा के विरुद्ध न हो, कि वे मारे जाएं। तब यहोवा के दूत ने गाद को दाऊद से यह कहने की आज्ञा दी, कि दाऊद चढ़ कर यबूसी ओर्नान के खलिहान में यहोवा की एक वेदी बनाए। गाद के इस वचन के अनुसार जो उसने यहोवा के नाम से कहा था, दाऊद चढ़ गया।” (1 इतिहास 21:15–19)

इस घटना में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि दाऊद के पाप के कारण जब परमेश्वर ने इस्राएल पर विपत्ति भेजी, तब नाश करने का कार्य यहोवा का दूत कर रहा था। दाऊद ने उस दूत को देखा, उसके सामने गिर पड़ा और अपनी प्रजा के लिए विनती की—और वह विनती सीधे यहोवा से की। उसके बाद वही यहोवा का दूत गाद भविष्यद्वक्ता को यह आज्ञा देता है कि दाऊद उस स्थान पर यहोवा के लिए एक वेदी बनाए।

और यही बात हम दो अन्य स्थलों में और भी स्पष्ट रूप से पढ़ते हैं:

“तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिय्याह नाम पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था।” (2 इतिहास 3:1)

“परन्तु जब दूत ने यरूशलेम का नाश करने को उस पर अपना हाथ बढ़ाया, तब यहोवा वह विपत्ति डालकर शोकित हुआ, और प्रजा के नाश करने वाले दूत से कहा, ‘बस कर; अब अपना हाथ खींच।’ और यहोवा का दूत उस समय अरौना नाम एक यबूसी के खलिहान के पास था। तो जब प्रजा का नाश करने वाला दूत दाऊद को दिखाई पड़ा, तब उसने यहोवा से कहा, ‘देख, पाप तो मैं ही ने किया, और कुटिलता मैं ही ने की है; परन्तु इन भेड़ों ने क्या किया है? सो तेरा हाथ मेरे और मेरे पिता के घराने के विरुद्ध हो।”  (2 शमूएल 24:16–17)

“सो दाऊद यहोवा की आज्ञा के अनुसार गाद का वह वचन मान कर वहां गया।” (2 शमूएल 24:19)

इन दोनों वचनों में यह स्पष्ट लिखा है कि उस स्थान पर दाऊद को दर्शन देने वाला स्वयं यहोवा परमेश्वर था, और उसी ने वेदी बनाने की आज्ञा दी। दूसरी ओर इतिहास की उसी घटना के वर्णन में उस प्रकट होने वाले को “यहोवा का दूत” कहा गया है, और वह वही है जो दाऊद के सामने तलवार लिए खड़ा था।

इसीलिए इस प्रसंग से भी यह बात फिर सिद्ध होती है कि— यहोवा का दूत ही यहोवा परमेश्वर है। और इस पूरे विवरण में उसी को “यहोवा का दूत” और “दूत” दोनों नामो से सम्बोधित किया गया है, जैसे पहले के सभी संदर्भो में देखा गया है।

पुुराने नियम में इससे संबंधित और भी बातें हैं, पर क्योंकि अब कई बार यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुका है कि यहोवा का दूत ही यहोवा है—इसलिए अब आगे बढ़ते है।

  1. बाइबिल के इस शिक्षा के खिलाफ तर्क कि यहोवा का दूत ही यहोवा है

कुछ लोग यहोवा के दूत के विषय में यह कहते हुए तर्क करते हैं कि वह वास्तव में यहोवा नहीं है। उनका कहना है कि भक्त लोग किसी स्वर्गदूत को देखकर अनजाने में उसे परमेश्वर कहकर पुकारते हैं, और क्योंकि उस दूत के वचन परमेश्वर के होते हैं, इसलिए शास्त्रों में उस दूत को परमेश्वर कहा गया है। इसी के समर्थन में वे नये नियम से एक वचन भी लेते हैं -

प्रेरितों के काम 7:30 — “जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्ग दूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया।”

इस वचन में स्तिफनुस उस यहोवा के दूत (निर्गमन 3:1,2) को, जो मूसा को दिखाई दिया था, “स्वर्ग दूत” कहता है। इसी के आधार पर वे यह तर्क देते हैं कि यहोवा का दूत परमेश्वर नहीं है, बल्कि केवल एक सामान्य स्वर्गदूत ही है।

अब इन तर्कों का उत्तर देखते है। सबसे पहले — पुराने नियम में जिन्हें यहोवा का दूत दिखाई दिया था, उन्हें यह स्पष्ट रूप से मालूम था कि सामान्य स्वर्गदूत और इस दूत, जो परमेश्वर के रूप में प्रकट होता है, दोनों में कितना अंतर है। यह बात उन्हीं के बातों से स्पष्ट होती है।

उत्पत्ति 32:1-2 “और याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले। और उन को देखते ही याकूब ने कहा, यह तो परमेश्वर का दल है; सो उसने उस स्थान का नाम महनैम रखा।”

इस घटना में, जब याकूब को स्वर्गदूत मिले, तो उसने उन्हें देखकर समझ लिया कि ये साधारण दूत नहीं, बल्कि परमेश्वर की सेना हैं। लेकिन इसी याकूब ने पहले, स्वप्न में उसे दिखाई देने वाले यहोवा के दूत—या परमेश्वर के दूत—को परमेश्वर और यहोवा के रूप में पहचाना था (उत्पत्ति 31:10-13).

(न्यायियों 13:20-23) “अर्थात जब लौ उस वेदी पर से आकाश की ओर उठ रही थी, तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में हो कर मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते चढ़ गया; तब वे भूमि पर मुंह के बल गिरे। परन्तु यहोवा के दूत ने मानोह और उसकी पत्नी को फिर कभी दर्शन न दिया। तब मानोह ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था। तब मानोह ने अपनी पत्नी से कहा, हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हम ने परमेश्वर का दर्शन पाया है। उसकी पत्नी ने उस से कहा, यदि यहोवा हमें मार डालना चाहता, तो हमारे हाथ से होमबलि और अन्नबलि ग्रहण न करता, और न वह ऐसी सब बातें हम को दिखाता, और न वह इस समय हमें ऐसी बातें सुनाता।”

इस घटना में, संसन के पिता मानोह को भी साधारण देवदूत और परमेश्वर के दूत अर्थात्‌ यहोवा के दूत में स्पष्ट अन्तर समझ आया; इसलिए यह जानकर कि उन्हें दिखाई देने वाला यहोवा का दूत, यहोवा था, उन्होंने घबराकर कहा कि परमेश्वर को देखने के कारण हम मारे जाएंगे। यदि वह केवल सामान्य दूत होता, तो मानोह को इस प्रकार डरने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

लेकिन नए नियम में, जकरयाह—जो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता थे—और मरियम—जो यीशु मसीह की माता बनीं—जब उनके सामने एक दूत प्रकट हुआ, तो वे भी भयभीत हुए (लूका 1:11-12; 1:28-30). परन्तु उनका भय मर जाने के कारण नहीं था, बल्कि उस दूत द्वारा लाए गए संदेश के कारण था। परन्तु ऊपर जिन भक्तों का उल्लेख किया गया, उनका भय इसलिए था कि जिस दूत को उन्होंने देखा, वह स्वयं परमेश्वर का दूत—यहोवा —था, इसलिए वे डर गए कि परमेश्वर को देखकर वे मर जाएंगे।

(न्यायियों 6:22,23) “जब गिदोन ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत था, तब गिदोन कहने लगा, हाय, प्रभु यहोवा! मैं ने तो यहोवा के दूत को साक्षात देखा है। यहोवा ने उस से कहा, तुझे शान्ति मिले; मत डर, तू न मरेगा।”

इस घटना में जब गिदोन को समझ में आया कि उसने यहोवा के दूत को सामने से देखा है, तब वह डर गया और बोला कि उसने यहोवा के दूत को मुखामुख देखा है। तब यहोवा ने ही उससे कहा कि तुझे शान्ति मिले, मत डर, तू नहीं मरेगा। यदि गिदोन को दिखाई देने वाला दूत केवल एक साधारण स्वर्गदूत होता, तो उसे इस तरह का आश्वासन देने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इस से स्पष्ट होता है कि पुराने नियम के भक्तों को सामान्य दूत और परमेश्वर के दूत—यहोवा के दूत—के बीच का अन्तर मालूम था, और वे उसी कारण उस दूत को परमेश्वर मानकर ही भयभीत होते थे।

और यदि कुछ देर के लिए इस तर्क को न सोचकर यह मान लिया जाए कि इन भक्तों ने एक साधारण देवदूत को देखकर उसे परमेश्वर समझने में भूल की, तब भी हम जिन सभी प्रसंगों को ऊपर देख चुके हैं, उनमें न केवल वे भक्त बल्कि वही घटनाएँ लिखने वाले प्रेरित लेखक भी, पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, उस दूत को परमेश्वर और यहोवा कहकर ही लिखते हैं। यदि कोई यह तर्क देता है कि दूत ने परमेश्वर के वचन कहे, इसलिए उसे परमेश्वर कहा गया, तो फिर बाकी स्थानों पर जहां साधारण स्वर्गदूतो ने बात किया, वहां लेखक ने उन्हें परमेश्वर क्यों नहीं लिखा? और वहां उन दूतों को देखकर भक्तों ने भी उन्हें परमेश्वर क्यों नहीं कहा?

उदाहरण के लिए—जकरयाह (यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता), मरियम (यीशु की माता), प्रकाशितवाक्य लिखने वाला यूहन्ना, पतरस, और कुरनेलियुस के सामने दूत प्रकट हुए, तब कहीं भी लेखक ने उन दूतों को परमेश्वर नहीं कहा, और न ही इन लोगों ने उन्हें परमेश्वर कहकर पुकारा। क्या उन दूतों के वचन परमेश्वर के वचन नहीं थे? ध्यान रहे—शास्त्र किसी भी परिस्थिति में परमेश्वर की महिमा या नाम को साधारण दूतों को नहीं देता; ऐसा करना ईश्वर -निन्दा होता, जैसा कि पहले ही बताया गया था।

अब देखते हैं कि स्तेफन ने मूसा को दिखाई देने वाले यहोवा के दूत—जो वास्तव में परमेश्वर ही था—उसे “स्वर्गदूत” क्यों कहा (प्रेरितों के काम 7:30)।

  1. “यहोवा का दूत”, “दूत”, और “परमेश्वर का दूत” कहे जाने वाला यह व्यक्त‍ि वास्तव में परमेश्वर ही था, और उस में स्वयं यहोवा का नाम था; फिर भी उसे “दूत” इसलिए कहा गया क्योंकि वह परमेश्वर का संदेश लेकर अपने लोगों के पास आता था। संदेश पहुँचाने के कारण उसे दूत कहा गया—परन्तु स्वभाव और अधिकार में वह साधारण स्वर्गदूत नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर ही था। यही कारण है कि पुराने नियम में वही व्यक्त‍ि कभी “यहोवा” कहलाता है, और कभी “यहोवा का दूत”—नाम अलग, पर व्यक्त‍ि वही, जो परमेश्वर है। इसी तरह स्तेफन ने भी उसे “स्वर्गदूत” कहकर उल्लेख किया। इसके बाद स्तेफन ने उसी दूत के बारे में आगे यह कहा:

(प्रेरितों के काम 7:30-34)“जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्गदूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिये पास गया, तो प्रभु का यह शब्द हुआ, कि मैं तेरे बाप-दादों इब्राहीम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूं। तब मूसा कांप उठा, यहां तक कि उसे देखने का साहस न रहा। तब प्रभु ने उससे कहा, अपने पांवों से जूती उतार ले, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है। मैं ने सचमुच अपने लोगों की दुर्दशा को जो मिस्र में हैं, देखा है, और उनकी आहट और रोना सुन लिया है; इसलिये उन्हें छुड़ाने को उतर आया हूं। अब आ, मैं तुझे मिस्र में भेजूंगा।”

निर्गमन 3 में जब यहोवा का दूत मूसा पर प्रकट हुआ, तब उस दूत को कैसे यहोवा, अर्थात् स्वयं परमेश्वर के रूप में वर्णित किया गया है — इसे स्तेफ़न भी यहाँ उसी तरह उल्लेख करता है। परन्तु यहाँ वह यहोवा के दूत की जगह केवल स्वर्गदूत कहता है। उसे यह अच्छी तरह पता था कि परमेश्वर, जो अपने लोगों के लिये सन्देश लेकर आता है, उसे स्वर्गदूत कहना कोई समस्या नहीं है। वास्तव में उस समय के यहूदी “यहोवा” नाम का उच्चारण नहीं करते थे, बल्कि उसकी जगह “प्रभु” (अदोनाई, एलोहिम) कहकर संबोधित करते थे। यही कारण है कि नये नियम में “यहोवा” नाम कहीं भी नहीं मिलता। इसलिए स्तेफ़न ने वहाँ “यहोवा” की जगह “प्रभु” और “यहोवा के दूत” की जगह “स्वर्गदूत” का उल्लेख किया। इस प्रकार, यहोवा का दूत—जो यहोवा स्वयं है— केवल स्तेफ़न की बातों में ही नहीं, बल्कि पुराने नियम में भी एक स्थान पर “स्वर्गदूत” कहलाया गया है।

(1 राजा 19:5-8)”चह झाऊ के पेड़ तले लेटकर सो गया और देखो एक दूत ने उसे छूकर कहा, उठ कर खा। उसने दृष्टि करके क्या देखा कि मेरे सिरहाने पत्थरों पर पकी हुई एक रोटी, और एक सुराही पानी धरा है; तब उसने खाया और पिया और फिर लेट गया। दूसरी बार यहोवा का दूत आया और उसे छूकर कहा, उठ कर खा, क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है। तब उसने उठ कर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा।”

एलिय्याह को हुई इस प्रकटता में, पहले उसका उल्लेख “दूत” के रूप में किया गया है और बाद में “यहोवा के दूत” के रूप में किया गया है। इससे हमें समझना चाहिए कि “दूत”, “यहोवा का दूत”, और “परमेश्वर का दूत” जैसे शब्दों को केवल पद या नाम के आधार पर नहीं समझना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि शास्त्र उस दूत के बारे में क्या कहता है और भक्तों ने उसे किस रूप में पहचाना। इन्हीं बातों के आधार पर हमें यह पता चलता है कि वास्तव में उन्हें कौन दिखाई दिया था।

इसी तरह कुछ वचनो में सामान्य स्वर्गदूतों और याजकों के लिए भी “यहोवा के दूत” जैसा शब्द प्रयोग किया गया है। परन्तु जब हम उन वचनो को ध्यान से देखते हैं, तब स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि वहाँ सामान्य स्वर्गदूतों और मनुष्यों के बारे में ही कहा गया है (उनका विवरण नीचे दिया गया है)।

  1. यद्यपि यहोवा का दूत स्वयं परमेश्वर ही था, फिर भी वह अपने भक्तों के पास दूत के रूप में दिखाई दिया; इसलिए उन्होंने उसे दूत, यहोवा का दूत, स्वर्गदूत , और परमेश्वर का दूत कहकर पुकारा। पवित्र शास्त्र भी पहले उसे इसी प्रकार प्रस्तुत करता है, और उसके बाद यह स्पष्ट करता है कि वह परमेश्वर ही है। उदाहरण के लिए यह घटना देखिए —

(उत्पति 32:24-30) "और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा। जब उसने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई। तब उसने कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ चाहता है; याकूब ने कहा जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा। और उसने याकूब से पूछा, तेरा नाम क्या है? उसने कहा याकूब। उसने कहा तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध कर के प्रबल हुआ है। याकूब ने कहा, मैं बिनती करता हूं, मुझे अपना नाम बता। उसने कहा, तू मेरा नाम क्यों पूछता है? तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया। तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।"

इस घटना में याकूब से मल्लयुद्ध करने वाले व्यक्ति का परिचय पहले एक मनुष्य के रूप में दिया गया है, परन्तु नीचे की बातों में यह स्पष्ट हो जाता है कि वह परमेश्वर ही था। याकूब से मल्लयुद्ध करने वाला परमेश्वर ही था, पर वह उसके पास मनुष्य के रूप में आया; इसलिए शास्त्र पहले उसे ऐसा ही बताता है और अंत में स्पष्ट करता है कि वह परमेश्वर है। इसी संदर्ब से संबंदित एक और वचन देखते है:

(होषेया 12:3–5) "अपनी माता की कोख ही में उसने अपने भाई को अड़ंगा मारा, और बड़ा हो कर वह परमेश्वर के साथ लड़ा। वह दूत से लड़ा, और जीत भी गया, वह रोया और उसने गिड़गिड़ाकर बिनती की। बेतेल में वह उसको मिला, और वहीं उसने हम से बातें की। यहोवा, सेनाओं का परमेश्वर, जिसका स्मरण यहोवा नाम से होता है।"

इन वचनो में, जब याकूब से मल्लयुद्ध हुआ, तब मनुष्य के रूप में दिखाई देने वाला वही परमेश्वर के दूत को यहोवा का दूत कहा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यहोवा दूत के रूप में प्रकट होने वाला परमेश्वर, अपने प्रकट होने के तरीके को बताने के लिए ही दूत और मनुष्य कहा गया है। इसी कारण सतेफनुस के शब्दों में भी, और एलिय्याह के प्रसंग में भी, उसे देवदूत कहा गया है — पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वह साधारण स्वर्गदूत है।

यहोवा दूत परमेश्वर नहीं है—ऐसा कहने वाले लोग एक और तर्क भी लाते हैं। बाइबल में कई स्थानों पर लिखा है कि परमेश्वर यहोवा ने सीनै पर्वत पर मूसा को व्यवस्था दी है (निर्गमन 19, 20 अध्याय)।

(नेहेम्याह 9:13–14) "फिर तू ने सीनै पर्वत पर उतर कर आकाश में से उनके साथ बातें की, और उन को सीधे नियम, सच्ची व्यवस्था, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं। और उन्हें अपने पवित्र विश्राम दिन का ज्ञान दिया, और अपने दास मूसा के द्वारा आज्ञाएं और विधियां और व्यवस्था दीं।"

लेकिन नये नियम में तीन स्थानों पर यह लिखा गया है कि व्यवस्था मूसा को स्वर्गदूतों ने दी थी (गलातियों 3:19, प्रेरितों के काम 7:53, इब्रानियों 2:2)। यहोवा दूत परमेश्वर नहीं है — ऐसा कहने वाले लोग इन सब बातों को दिखाते हुए यह कहते हैं कि पुराने नियम में तो मूसा को व्यवस्था देने वाला परमेश्वर लिखा गया है, पर नये नियम में वही व्यवस्था स्वर्गदूतों के द्वारा दी गई बताई गई है। उनके अनुसार, जब व्यवस्था स्वर्गदूतों ने दी, तो लोगों को समझाने के लिये उसे परमेश्वर से आया हुआ कहा गया। और इसी प्रकार, पुराने नियम में यहोवा का दूत प्रकट होने पर भी, वह साधारण स्वर्गदूत ही था, पर लोगों की समझ के लिये उसे परमेश्वर और यहोवा लिख दिया गया — ऐसा वे कहते हैं।

लेकिन पुराने नियम में व्यवस्था मूसा को देने वाला यदि स्वयं परमेश्वर ही था (और वही परमेश्वर 24वें अध्याय से यहोवा दूत के रूप में भी प्रकट होता है), तो नये नियम में उसे स्वर्गदूतों ने दिया लिखा जाने का कारण क्या है — इसे समझने के लिये इस वचन को ध्यान से देखिए।

उसने कहा, यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिये उदय हुआ; उसने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखों पवित्रों के मध्य में से आया, उसके दाहिने हाथ से उनके लिये ज्वालामय विधियां निकलीं। वह निश्चय देश देश के लोगों से प्रेम करता है; उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं: वे तेरे पांवों के पास बैठे रहते हैं, एक एक तेरे वचनों से लाभ उठाता है। मूसा ने हमें व्यवस्था दी, और याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।(व्यवस्थाविवरण 33:2-4)

इस वचन में, सीनै पर्वत पर जब परमेश्वर व्यवस्था दे रहा था, उस समय क्या हुआ — उसी को मूसा यहाँ लिख रहा है। यहाँ यह बात स्पष्ट दिखाई देती है कि उस समय उसके साथ पवित्र समूह (स्वर्गदूत) भी मौजूद थे। इसी विषय पर अब एक और वचन देखिए।

परमेश्वर के रथ बीस हजार, वरन हजारों हजार हैं; प्रभु उनके बीच में है, जैसे वह सीनै पवित्र स्थान में है।(भजन संहिता 68:17)

यहाँ भी सीनै पर्वत पर परमेश्वर अपने सैन्य दल के साथ उतरा था। इसी पद को जब अंग्रेज़ी बाइबल में पढ़ते हैं, तो उस सेना में हज़ारों स्वर्गदूत थे यह बात स्पष्ट रूप से लिखी गई है:

Psalm 68:17 — The chariots of God are twenty thousand, even thousands of angels: the Lord is among them, as in Sinai, in the holy place.

इस प्रकार, जब परमेश्वर ने मूसा को व्यवस्था दी, तब उसके साथ स्वर्गदूत भी थे। अर्थात उस कार्य में उनका भी सहभाग था। इसी कारण नये नियम के जिन वचनों को हम देखते हैं, वहाँ यह लिखा है कि मूसा को व्यवस्था स्वर्गदूतों के द्वारा दी गई।

ध्यान दो—पुराने नियम में जब व्यवस्था दिए जाने का वर्णन आता है, तो वहाँ यह लिखा है कि परमेश्वर ने व्यवस्था दी, न कि परमेश्वरो ने। यदि वह परमेश्वर, जैसा ये लोग कहते हैं, वास्तव में एक साधारण स्वर्गदूत ही होता, और लोगों को समझ में आने के लिये लेखक ने उस स्वर्गदूत को “परमेश्वर” लिखा होता, तो नये नियम के जिन वचनों को वे आधार के रूप में दिखाते हैं, उनमें यह लिखा होना चाहिए था कि एक स्वर्गदूत ने मूसा को व्यवस्था दी। लेकिन ऐसा नहीं है—प्रेरितों के काम 7:53 और गलातियों 3:19 में हम स्पष्ट देखते हैं कि वहाँ स्वर्गदूतों (बहुवचन) के द्वारा व्यवस्था दिए जाने का उल्लेख है। तो फिर यदि केवल एक ही स्वर्गदूत था, तो बहुवचन “स्वर्गदूतों” का प्रयोग क्यों किया गया?

अब इब्रानियों 2:2 में लिखे हुए “स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया वचन स्थिर ठहरा” — इस बात का अर्थ देखने से पहले, ऊपर जिस तर्क का हम उत्तर देख चुके हैं, उसी के आगे वे लोग यह भी कहते हैं कि नये नियम में लिखा है कि किसी ने भी कभी परमेश्वर को नहीं देखा और न उसकी आवाज़ सुनी। इसलिए, उनके अनुसार, मूसा को दिखाई देकर व्यवस्था देने वाला परमेश्वर नहीं था, बल्कि स्वर्गदूत ही थे; और इसी तरह यहोवा का दूत भी एक साधारण स्वर्गदूत ही था, ऐसा वे कहते हैं। अब इस तर्क का भी उत्तर देख लें।

यूहन्ना 1:18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में है, उसी ने उसे प्रगट किया॥

इस वचन में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसी ने भी कभी पिता परमेश्वर को नहीं देखा। अब इन घटनाओं पर ध्यान दीजिए।

(यशायाह 6: 1-3) “जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया। उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुंह को ढांपे थे और दो से अपने पांवों को, और दो से उड़ रहे थे। और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।”

(दानिय्येल 7:9-10) “मैं ने देखते देखते अन्त में क्या देखा, कि सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला, और सिर के बाल निर्मल ऊन सरीखे थे; उसका सिंहासन अग्निमय और उसके पहिये धधकती हुई आग के से देख पड़ते थे। उस प्राचीन के सम्मुख से आग की धारा निकल कर बह रही थी; फिर हजारोंहजार लोग उसकी सेवा टहल कर रहे थे, और लाखों लाख लोग उसके साम्हने हाजिर थे; फिर न्यायी बैठ गए, और पुस्तकें खोली गईं।”

(यहेजकेल 1:26-28) “और जो आकाशमण्डल उनके सिरों के ऊपर था, उसके ऊपर मानो कुछ नीलम का बना हुआ सिंहासन था; इस सिंहासन के ऊपर मनुष्य के समान कोई दिखाई देता था। और उसकी मानो कमर से ले कर ऊपर की ओर मुझे झलकाया हुआ पीतल सा दिखाई पड़ा, और उसके भीतर और चारों ओर आग सी दिखाई पड़ती थी; फिर उस मनुष्य की कमर से ले कर नीचे की ओर भी मुझे कुछ आग सी दिखाई पड़ती थी; और उसके चारों ओर प्रकाश था। जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारों ओर का प्रकाश दिखाई देता था। यहोवा के तेज का रूप ऐसा ही था। और उसे देख कर, मैं मुंह के बल गिरा, तब मैं ने एक शब्द सुना जैसे कोई बातें करता है।”

इन वचनो में, और भी कई स्थानों पर यह लिखा हुआ मिलता है कि यहोवा अपने भक्तों को प्रकट हुआ। तो फिर यूहन्ना 1:18 में यह क्यों लिखा है कि किसी ने भी कभी पिता परमेश्वर को नहीं देखा? इसका कारण यह है कि ऊपर बताए गए सभी अनुभव केवल दर्शन या स्वप्न थे। यूहन्ना 1:18 में यूहन्ना यह नहीं कह रहा कि पुराने नियम में किसी ने भी दर्शन या स्वप्न में परमेश्वर को नहीं देखा। उसका अर्थ यह है कि परमेश्वर ने कभी प्रत्यक्ष रूप से, भौतिक रूप में किसी मनुष्य को स्वयं को नहीं दिखाया। परमेश्वर ने अपने आप को पूर्ण और प्रत्यक्ष रूप से केवल देहधारी मसीह में ही प्रगट किया। यदि इस वचन को उसके पूरे संदर्भ में पढ़ें तो स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि यूहन्ना यहाँ मसीह के देहधारण की बात कर रहा है, और यह बता रहा है कि तद्वारा ही परमेश्वर पूरी तरह से प्रगट हुआ।

(यूहन्ना 1:14) “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।”

इसी कारण यीशु मसीह यह साक्ष्य देते हैं कि “जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है”(यूहन्ना 14:9) — क्योंकि देहधारी रूप में वही पिता को प्रगट कर रहे थे। इसी प्रकार कुलुस्सियों 2:9 में भी लिखा है कि "देवत्व की पूरी परिपूर्णता मसीह में शारीरिक रूप में वास करती है"। इसलिए पुराने नियम में भविष्यवक्ताओं ने जो परमेश्वर के दर्शन और स्वप्न देखे, उनका यूहन्ना 1:18 में कही गई बात से कोई संबंध नहीं है। देहधारी, भौतिक रूप में परमेश्वर को किसी ने नहीं देखा; परमेश्वर केवल मसीह के देहधारण में ही सभी को दिखाई दिए। इस बात को और स्पष्ट रूप से समझने के लिये एक और वचन देखते है।

(1 तिमुथियुस 6:14-16) “कि तू हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने तक इस आज्ञा को निष्कलंक और निर्दोष रख। जिसे वह ठीक समयों में दिखाएगा, जो परमधन्य और अद्वैत अधिपति और राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है। और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है: उस की प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा। आमीन॥”

इस पूरे वचन में यीशु मसीह के विषय में ही लिखा गया है। हम भी उसी के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते हैं। पर यहाँ पौलुस कहता है कि इस यीशु मसीह को किसी ने नहीं देखा और न देख सकता है। परन्तु यीशु मसीह के मरने, जी उठने और स्वर्गारोहण के बाद, अननियास ने उन्हें देखा (प्रेरितों के काम 9:10). पौलुस ने भी उन्हें देखा (प्रेरितों के काम 22:17). इसी प्रकार स्टीफन (प्रेरितों के काम 7:55) और यूहन्ना ने भी उन्हें देखा (प्रकाशित 1:13-16). तो 1 तिमुथियुस 6:14-16 के अनुसार—क्या इन सब ने यीशु मसीह को नहीं देखा? क्या वे किसी स्वर्गदूत को देख रहे थे? नहीं, उन्होंने यीशु मसीह ही को देखा। पर “उसे किसी मनुष्य ने नहीं देखा, और न कभी देख सकता है” ऐसा इसलिए लिखा गया है कि उन्होंने जो देखा, वह केवल दर्शन था, प्रत्यक्ष और भौतिक रूप में देखना नहीं। दर्शन में देखना अलग है, और प्रत्यक्ष रूप में देखना अलग। उदाहरण के लिये, जब यीशु यूहन्ना को दर्शन में दिखाई दिए, तो उन्हें अपने दाहिने हाथ में सात तारे पकड़े हुए बताया गया; पर उसी अध्याय में लिखा गया है कि वे सात तारे सात कलीसियाओं के दूत हैं (प्रकाशित 1:16,20). अर्थात वह दर्शन अलंकारात्मक था। इसी प्रकार वह वध किए हुए मेम्ने की तरह भी दर्शन में दिखाई दिए (प्रकाशित. 5:6). ऐसे ही पुराना नियम में भी पिता परमेश्वर को भक्तों ने केवल दर्शन और स्वप्न में ही देखा; पर देहधारी मसीह में प्रगट हुए जिस रूप में, उस प्रकार उन्हें प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा। यूहन्ना 1:18 में यही बात कही गई है। इसी बात को वह अपनी पहली पत्री में भी स्मरण कराता है (1 यूहन्ना 4:12). मूसा ने भी व्यवस्था लेते समय और अन्य अवसरों पर केवल परमेश्वर की महिमा देखी और उसकी आवाज़ सुनी; पर देहधारी मसीह में प्रगट हुए परमेश्वर को प्रत्यक्ष रूप में नहीं देखा। इसलिए यूहन्ना 1:18 के आधार पर यह सिद्ध करना कि सीनै पर व्यवस्था परमेश्वर ने नहीं, बल्कि स्वर्गदूतों ने दी — सही नहीं है। अब इस वाद के विपरीत जो वचन उद्धृत किया जाता है, उसे भी देखें।

(यूहन्ना 5:37) “और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।”

इस वचन में हम देखते हैं कि प्रभु यीशु मसीह यहूदियों से कहते हैं, “तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।” इस आधार पर कुछ लोग यह भी तर्क करते हैं कि पुराने नियम के नबियों में से किसी ने भी न तो परमेश्वर को देखा और न उसकी आवाज़ सुनी। लेकिन जब हम इस प्रसंग को ध्यान से देखते हैं, तब स्पष्ट होता है कि यहाँ प्रभु यीशु मसीह पुराने नियम में नबियों को मिली हुई प्रत्यक्षताओं के बारे में नहीं बोल रहे हैं, बल्कि यहूदियों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परमेश्वर की प्रकृति, उसके गुणों और उसकी आज्ञाओं के प्रति उनकी अवज्ञा और हृदय की कठोरता के बारे में कह रहे हैं। इसी कारण वह इन बातों को “और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है” कहकर शुरू करते हैं, और उनके द्वारा पिता की गवाही को न मानने को उजागर करते हुए “तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है” कहकर समाप्त करते हैं। इस बात को और अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिये यह वचन देखें।

यूहन्ना 8:19 — “उन्होंने उस से कहा, तेरा पिता कहां है? यीशु ने उत्तर दिया, कि न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।”

इस वाक्य में प्रभु यीशु उन्हीं यहूदियों से, जो उसे अस्वीकार कर रहे थे, कह रहा है कि “तुम न तो मुझे जानते हो और न मेरे पिता को।” यहूदी अगर पिता परमेश्वर को नहीं जानते, तो फिर वे मन्दिर बनाकर किसकी उपासना कर रहे हैं? क्या वे पिता परमेश्वर की उपासना नहीं करते? वही तो करते हैं! परन्तु यीशु यह बात उनके परमेश्वर के प्रति अवज्ञा को दिखाने के लिये कह रहा है। इसलिए “तुम ने कभी उसका शब्द नहीं सुना, और न उसका रूप देखा” जैसी बातें परमेश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन के बारे में नहीं कही गईं, बल्कि परमेश्वर की आज्ञाओं और उसके स्वभाव के प्रति यहूदियों की अवज्ञा को दिखाने के लिये कही गईं। इसी के साथ, पुराना नियम में जिसने दर्शन दिया और अपनी आवाज सुनाई—वह “परमेश्वर नहीं, केवल दूत ही था”—इस तर्क का भी यहीं अंत हो जाता है।

अब इन शब्दों पर ध्यान दीजिए। “स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया वचन स्थिर रहा”—इस वाक्य का क्या अर्थ है, इसे समझते हैं।

इब्रानियों 2:1-4 — “परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया। इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं और भी मन लगाएं, ऐसा न हो कि बहक कर उन से दूर चले जाएं। क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था जब वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक ठीक बदला मिला। तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से निश्चिन्त रह कर क्योंकर बच सकते हैं? जिस की चर्चा पहिले पहिल प्रभु के द्वारा हुई, और सुनने वालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। और साथ ही परमेश्वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ के कामों, और पवित्र आत्मा के वरदानों के बांटने के द्वारा इस की गवाही देता रहा॥”

इस पूरे वचन को देखने पर, हम पाते हैं कि हिब्रियों का लेखक विश्वासियों को चेतावनी दे रहा है कि पहले जिन लोगों ने स्वर्गदूतों द्वारा कही गई बातों की अवज्ञा की, उन्हें उचित दंड मिला; इसलिए यदि हम सीधे प्रभु द्वारा बताई गई इस महान उद्धार की बातों को अनदेखा करें, तो हम कैसे बच सकेंगे? यहाँ उसका उद्देश्य प्रभु द्वारा शुरू की गई इस उद्धार की शिक्षा को ऊँचा दिखाना है।

अब, “स्वर्गदूतों द्वारा कही गई बातें” — इस वाक्य का अर्थ दो तरीकों से समझा जा सकता है।

  1. जब परमेश्वर ने मूसा को व्यवस्था दी, तब उसमें स्वर्गदूतों की सम्मिलित भूमिका भी थी — यह बात हम ऊपर देख चुके हैं. इसी प्रकार, कुछ और प्रसंगों में भी परमेश्वर ने अपने भक्तों तक अपना वचन स्वर्गदूतों के द्वारा पहुँचाया था — इस बात का यही अर्थ है.
  2. इब्रानियों की पत्री में इस भाग में स्वर्गदूतों का जिक्र होने के कारण, यह जरूरी नहीं कि हम वहाँ बताए गए “स्वर्गदूत” को वही स्वर्गदूत मानें जिनके बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। बाइबल में “दूत” शब्द का प्रयोग कई बार परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं के लिये भी किया गया है। उदाहरण के लिये;

(हाग्गै 1:13) “तब यहोवा के दूत हाग्गै ने यहोवा से आज्ञा पाकर उन लोगों से यह कहा, यहोवा की यह वाणी है, मैं तुम्हारे संग हूं।”

इस वचन में भविष्यद्वक्ता हाग्गै को दूत कहा गया है।

(नये नियम में यहोवा नाम को यहूदी उच्चारण नहीं करते थे, इसलिए ‘यहोवा का दूत’ के आगे का ‘यहोवा’ हटाकर उसे ‘दूत’ कहा गया — यह बात हम ने स्टीफ़न के शब्दों की व्याख्या में देखी है।)

इसी प्रकार,

(मलाकी 3:1) “देखो, मैं अपने दूत को भेजता हूं, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा"

इस वचन में बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना को दूत कहा गया है।

इसी प्रकार,

(मलाकी 2:7) “क्योंकि याजक को चाहिये कि वह अपने ओंठों से ज्ञान की रक्षा करे, और लोग उसके मुंह से व्यवस्था पूछें, क्योंकि वह सेनाओं के यहोवा का दूत है।”

(नये नियम में यहोवा नाम को यहूदी उच्चारण नहीं करते थे, इसलिए ‘यहोवा का दूत’ के आगे का ‘यहोवा’ हटाकर उसे ‘दूत’ कहा गया — यह बात हम ने स्टीफ़न के शब्दों की व्याख्या में देखी है।)

(2 इतिहास 36:15-16) “और उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने बड़ा यत्न कर के अपने दूतों से उन के पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपनी प्रजा और अपने धाम पर तरस खाता था; परन्तु वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उस के वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे। निदान यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।”

इन वचनो में भी हम देखते हैं कि याजकों और नबियों को संबोधित करते हुए ‘यहोवा (परमेश्वर)-दूत’ जैसा शब्द प्रयोग किया गया है। भविष्यद्वक्ता और याजक, दोनों ही, परमेश्वर की व्यवस्था और उसके वचनों को लोगों तक पहुँचाते थे। और उनकी बात न मानने वाले इस्राएली, पुराने नियम में बार-बार परमेश्वर से उचित दण्ड पाते हुए दिखाई देते हैं। इसलिए हम मान सकते हैं कि इब्रानियों के लेखक ने वहाँ इसी बात का उल्लेख किया है।

इसके अनुसार—और ऊपर दिए गए विवरणों के आधार पर—यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मूसा को व्यवस्था स्वयं परमेश्वर ने ही दी थी, और आत्मा-प्रेरित लेखकों ने अपने लिखित वचनों में कभी भी साधारण दूतों को परमेश्वर या यहोवा कहकर नहीं पुकारा।

  1. यहोवा का दूत स्वयं येशु मसीह है

चलें, अब इस दूत के बारे में यहोवा परमेश्वर ने जो बातें कहीं, उन्हें एक बार फिर याद करे।

(निर्गमन 23:20–23) “सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, और जिस स्थान को मैं ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा। उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिये कि उस में मेरा नाम रहता है। और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे, तो मैं तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियों का द्रोही बनूंगा। इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के यहां पहुंचाएगा, और मैं उन को सत्यनाश कर डालूंगा।”

इस वचन में यहोवा परमेश्वर उस दूत के बारे में बात कर रहा है जिसे ‘यहोवा का दूत’, ‘परमेश्वर का दूत’ और ‘दूत’  भी कहा गया है।  परमेश्वर यह स्पष्ट करता है कि “मेरा नाम उसमें है,” और जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं इसी कारण से उसे ‘यहोवा’ कहा गया है। इस वचन से स्पष्ट होता है कि मिस्र से कनान तक इस्राएलियों का मार्गदर्शन करने वाला वही दिव्य दूत था। यात्रा के दौरान इस्राएली बार-बार अपने आगे चलने वाले उसी परमेश्वर को परखते रहे—जिसकी गवाही स्वयं शास्त्र हमें देती है (भजन 78:18; भजन 78:41; भजन 106:14). अर्थात, कनान की ओर ले जाने के लिए परमेश्वर ने अपने दूत को उनके आगे भेजा था, और इस्राएलियों ने उसी परमेश्वर थता यहोवा का दूत को परखा। अब पौलुस के शब्दों में देखें कि वास्तव में उन्होंने किसे परखा था।

(1 कुरिन्थियों 10:8,9) "और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: एक दिन में तेईस हजार मर गये ।और न हम प्रभु को परखें; जैसा उन में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए।"

इस संदर्भ में पौलुस कहता है कि हम प्रभु को न परखें, क्योंकि इस्राएलीयों ने उसे परखा और नाश हो गए। प्राचीन प्रतियों में प्रभु के जगह “मसीह” लिखा हुआ है — इसका अर्थ यह निकलता है की दूत त्रिएकता में दूसरे व्यक्ति, अर्थात् प्रभु यीशु मसीह थे। अब कुछ और संदर्भ देखें;

(यूहन्ना 5:43) “मैं अपने पिता के नाम से आया हूं”

इस संदर्भ में प्रभु यीशु मसीह स्वयं अपने बारे में यह गवाही देते हैं कि वे अपने पिता के नाम को लिए हुए आए हैं। और हम पहले ही देख चुके हैं कि यहोवा परमेश्वर ने अपने दूत के बारे में कहा था कि “उसमें मेरा नाम है” (निर्गमन 23:20–21).

(मलाकी 3:1) देखो, मैं अपने दूत को भेजता हूं, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा, और प्रभु, जिसे तुम ढूंढ़ते हो, वह अचानक अपने मन्दिर में आ जाएगा; हां वाचा का वह दूत, जिसे तुम चाहते हो, सुनो, वह आता है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।

इस वचन में बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के बारे में , और प्रभु यीशु मसीह के बारे में भविष्यवाणी लिखी गई है। वचन के शुरुआत में जिस दूत की बात की गई है, वह यूहन्ना है; और उसके बाद जिस “वाचा के दूत” का उल्लेख है, वह स्वयं प्रभु यीशु मसीह हैं। यहाँ मसीह को दूत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इससे और भी स्पष्ट हो जाता है कि यहोवा का दूत त्रित्व के दूसरे व्यक्ति — अर्थात् प्रभु यीशु मसीह — ही हैं।

(जकर्याह 2:5-11) “और यहोवा की यह वाणी है, कि मैं आप उसके चारों ओर आग की से शहरपनाह ठहरूंगा, और उसके बीच में तेजोमय हो कर दिखाई दूंगा॥ यहोवा की यह वाणी है, देखो, सुनो उत्तर के देश में से भाग जाओ, क्योंकि मैं ने तुम को आकाश की चारों वायुओं के समान तितर बितर किया है। हे बाबुल वाली जाति के संग रहने वाली, सिय्योन को बच कर निकल भाग! क्योंकि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, उस तेज के प्रगट होने के बाद उसने मुझे उन जातियों के पास भेजा है जो तुम्हें लूटती थीं, क्योंकि जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है। देखो, मैं अपना हाथ उन पर उठाऊंगा, तब वे उन्हीं से लूटे जाएंगे जो उनके दास हुए थे। तब तुम जानोगे कि सेनाओं के यहोवा ने मुझे भेजा है। हे सिय्योन, ऊंचे स्वर से गा और आनन्द कर, क्योंकि देख, मैं आकर तेरे बीच में निवास करूंगा, यहोवा की यही वाणी है। उस समय बहुत सी जातियां यहोवा से मिल जाएंगी, और मेरी प्रजा हो जाएंगी; और मैं तेरे बीच में बास करूंगा,”

इस प्रसंग में यहोवा यह कह रहा है कि (मैं उसके चारों ओर आग की शहरपनाह ठहरूंगा…), बहुत से अन्यजाति यहोवा से लिपट जाएंगे और उसकी प्रजा बनेंगे, और वे यह भी जान लेंगे कि यहोवा ने ही मुझे भेजा है। हमारे बीच आकर निवास करने वाला (इब्रानियों 2:14-16, फिलिप्पियों 2:6-8) और जिसने अन्यजातियों को पिता यहोवा से लिपट जानेवाले, उसके राज्य के लोग बनने योग्य बना दिया (प्रकाशितवाक्य 5:9,10), वह और कोई नहीं, वही प्रभु यीशु मसीह है, है न!

(यशायाह 48:11-17) “अपने निमित्त, हां अपने ही निमित्त मैं ने यह किया है, मेरा नाम क्यों अपवित्र ठहरे? अपनी महिमा मैं दूसरे को नहीं दूंगा॥ हे याकूब, हे मेरे बुलाए हुए इस्राएल, मेरी ओर कान लगाकर सुन! मैं वही हूं, मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूं। निश्चय मेरे ही हाथ ने पृथ्वी की नेव डाली, और मेरे ही दाहिने हाथ ने आकाश फैलाया; जब मैं उन को बुलाता हूं, वे एक साथ उपस्थित हो जाते हैं॥ तुम सब के सब इकट्ठे हो कर सुनो! उन में से किस ने कभी इन बातों का समाचार दिया? यहोवा उस से प्रेम रखता है: वह बाबुल पर अपनी इच्छा पूरी करेगा, और कसदियों पर उसका हाथ पड़ेगा। मैं ने, हां मैं ही ने कहा और उसको बुलाया है, मैं उसको ले आया हूं, और, उसका काम सफल होगा। मेरे निकट आकर इस बात को सुनो: आदि से ले कर अब तक मैं ने कोई भी बात गुप्त में नहीं कही; जब से वह हुआ तब से मैं वहां हूं। और अब प्रभु यहोवा ने और उसकी आत्मा ने मुझे भेज दिया है॥ यहोवा जो तेरा छुड़ाने वाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।”

इस वचन में भी, इस्राएल के पवित्र परमेश्वर यहोवा स्वयं बोलते हुए यह कह रहा है कि एक और यहोवा और उसकी आत्मा ने मिलकर उसे भेजा है। और पिता यहोवा की ठहराई हुई इच्छा के अनुसार (गलातियों 4:4, 1 यूहन्ना 4:9,10), तथा पवित्र आत्मा के अद्भुत कार्य के परिणामस्वरूप (लूका 1:35; यशायाह 11:1-2), जो इस पृथ्वी पर दैवी-मानव रूप में आया — अर्थात् भेजा गया — वह प्रभु यीशु मसीह ही है!

इसी प्रकार, “यहोवा का दूत परमेश्वर नहीं है” — इस तर्क का उत्तर देते हुए, मैंने पहले यूहन्ना 1:18 का उल्लेख किया था और यह स्पष्ट किया था कि वह वचन “दरशन और स्वप्नों” के बारे में नहीं है, बल्कि इस बात को दृढ़ता से बताने के लिए है कि परमेश्वर पूर्ण, देहधारी रूप में केवल मसीह में ही प्रगट हुआ। परन्तु जब यह कहा गया— “किसी ने कभी परमेश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले इकलौते पुत्र ने ही उसे प्रगट किया” — तो यह सत्य केवल नये नियम में ही नहीं दिखा। यहोवा / यहोवा के दूत ने जब भी देहधारण कर के प्रकट हुआ— जैसे उत्पत्ति 18 में अब्राहाम के सामने, या जब वह याकूब से मनुष्य के रूप में लड़ा, या जब वह मनोहा (शिमशोन के पिता) को दिखाई दिया— तब भी उसी में उन्होंने पिता (परमेश्वर) को देखा। इस प्रकार, “किसी ने कभी परमेश्वर को नहीं देखा; इकलौते पुत्र ने ही उसे प्रगट किया” — इन वचनों में वे देहधारी, प्रत्यक्ष दर्शन भी सम्मिलित हैं, जहाँ परमेश्वर स्वयं दृश्य रूप में उपस्थित हुआ। क्योंकि जैसा मैंने पहले समझाया, स्वप्नों और दर्शनों के अतिरिक्त, किसी ने भी पिता परमेश्वर को प्रत्यक्ष रूप में कभी नहीं देखा। यहोवा के दूत के रूप में देह धरकर जब भी वह प्रकट हुआ, तभी किसी ने वास्तव में पिता को देखा। इस तरह, पुराने नियम में यहोवा का दूत जिस रूप में प्रकट होता रहा — यह भी यहुन्ना 1:18 के लिए एक सशक्त प्रमाण है कि वह और कोई नहीं, बल्कि प्रभु यीशु मसीह ही थे। पुराने नियम में यहोवा के दूत के रूप वही था। क्योंकि मीका 5:2 में  लिखा है — “हे बेतलेहेम एप्राता… तुझ में से मेरे लिये एक पुरूष निकलेगा… और उसका निकलना प्राचीन काल से, वरन अनादि काल से होता आया है।”

चले अब आखिर में हम समझे की स्वर्गदूत क्यों उस महिमा  नहीं स्वीकारेंगे जो परमेश्वर को मिलनी चाहिए। इस वचन को देखे;

(प्रकाशित 22:8–9) “मैं वही यूहन्ना हूं, जो ये बातें सुनता, और देखता था; और जब मैं ने सुना, और देखा, तो जो स्वर्गदूत मुझे ये बातें दिखाता था, मैं उसके पांवों पर दण्डवत करने के लिये गिर पड़ा।
 और उस ने मुझ से कहा, देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्ताओं और इस पुस्तक की बातों के मानने वालों का संगी दास हूं; परमेश्वर ही को दण्डवत कर॥”

इस वचन में जब यीशु के शिष्य यूहन्ना ने एक स्वर्गदूत को प्रणाम करने की कोशिश की, तब उस स्वर्गदूत ने उसे रोकते हुए कहा कि केवल परमेश्वर को ही प्रणाम करो। इससे हमें समझना चाहिए कि स्वर्गदूत परमेश्वर की महिमा को स्वीकार नहीं करते। क्योंकि “तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।” (मत्ती 4:10)।

परन्तु कुछ लोग लूत द्वारा दो स्वर्गदूतों को प्रणाम करने की घटना दिखाते हुए (उत्पत्ति 19:1,2) यह मानते हैं कि स्वर्गदूत भी भक्तों की आराधना स्वीकार करते हैं। पर उस प्रसंग में लूत के घर आए स्वर्गदूत मनुष्यरूप में अतिथि बनकर आए थे। उस समय अतिथियों और कुछ प्रमुख व्यक्तियों को दण्डवत प्रणाम करना बिल्कुल सामान्य था। और लूत को यह पता ही नहीं था कि वे दोनों व्यक्ति स्वर्गदूत हैं। इसी के बारे में लिखा है, “पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है।” (इब्रानियों 13:2)।

यदि लूत को पता होता कि वे स्वर्गदूत हैं, तो सदोम के लोग जब उन्हें बलात्कार करने को घेर रहे थे, तब वह उन्हें बचाने के लिए अपनी बेटियों को क्यों सौंपने की कोशिश करता? (उत्पत्ति 19:5-9)। क्योंकि यदि उसे पता होता कि वे स्वर्गदूत हैं, तो वह निश्चिंत होता कि वे स्वयं को बचा सकते हैं। इसलिए वे दोनों स्वर्गदूत मनुष्यरूप में अतिथि बनकर लूत के पास आए थे, और उसकी संस्कृति के अनुसार लूत ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया, पर उन्होंने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।

कुछ लोग दानिय्येल के प्रसंग को भी गलत समझकर यह कहते हैं कि पुराने नियम के भक्तों में स्वर्गदूतों के सामने दण्डवत करने की प्रथा थी; उसे भी देखें।

(दानिय्येल 8:17) “तब जहां मैं खड़ा था, वहां वह मेरे निकट आया; और उसके आते ही मैं घबरा गया, और मुंह के बल गिर पड़ा। तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, उन देखी हुई बातों को समझ ले, क्योंकि उसका अर्थ अन्त ही के समय में फलेगा॥”

इस वचन में ऐसा दिखाई देता है कि दर्शन का अर्थ बताने आए गब्रियल के सामने दानिय्येल दण्डवत पड़ा। परन्तु यदि हम नीचे का वाक्यभाग भी देखें, तो समझ में आता है कि दानिय्येल ने जानबूझकर परमेश्वर के लिये की जाने वाली दण्डवत नहीं की, बल्कि भय के कारण उस पर गहरी नींद छा गई और वह भूमि पर औंधे मुंह गिर पड़ा था।

(दानिय्येल 8:18) “जब वह मुझ से बातें कर रहा था, तब मैं अपना मुंह भुमि की ओर किए हुए भारी नींद में पड़ा था, परन्तु उसने मुझे छूकर सीधा खड़ा कर दिया।”

इसी प्रकार एक और प्रसंग भी हमें दिखाई देता है।

(दानिय्येल 10:9–10) “तौभी मैं ने उस पुरूष के वचनों का शब्द सुना, और जब वह मुझे सुन पड़ा तब मैं मुंह के बल गिर गया और गहरी नींद में भूमि पर औंधे मुंह पड़ा रहा॥ फिर किसी ने अपने हाथ से मेरी देह को छुआ, और मुझे उठा कर घुटनों और हथेलियों के बल थरथराते हुए बैठा दिया।”

इस लेख में बताए गए त्रिएकत्व सिद्धांत को समझने के लिये इस लेख को पढ़ें।

त्रिएकत्व सिद्धांत का प्रमाण