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लेखक: पी। श्रावण कुमार
अनुवादक: बी. ब्युला

यहूदा पत्रिका पर टिप्पणी

यहूदा पत्रिका धर्मत्यागि एवं अधर्मी लोगों का वर्णन करते हुए लिखी गई थी। इस पत्रिका मैं यहूदा (लेखक) ने उन लोगों का विवरण दिया की वे कैसे लोग है, उनके कार्य क्या हैं और उन्हें क्या सज़ा मिलेगी। ऐसे लोग कलीसिया में संघर्ष पैदा करते है और वे खुद प्रभु येशु मसीही और उनके वचनो को अस्वीकार करते है। हालाँकि वे ऊपरी तौर पर अच्छे मसीही प्रतीत होते हैं, परंतु वे कलीसिया के विकास के बजाय उसका विनाश चाहते हैं।

लेखक चाहता है कि हम ऐसे लोगों के बारे में जानें और उनकी शिक्षाओं से खुद को बचाएं, न कि उनकी तरह अपना विश्वास त्यागें और हमें सौंपी गई विश्वास के लिए लड़ें।

यदि हम भी प्रभु यीशु मसीह की शिक्षा को भूल जाएं और विश्वास को त्याग दें,तो हमें भी वही दंड मिलेगा जो ऐसे लोगों के लिए नियुक्त किया गया है, और हमें उन धर्मत्यागियों के समूह में शामिल किया जाएगा जिन्होंने प्रभु येशु मसीह को त्यागा। यहूदा की इच्छा है की हम अपने विश्वासी जीवन में आगे बड़े, प्रभु से प्रेम करें, उनके वचन का पालन करें और अन्य शिक्षाओं का विरोध करते हुए कलीसिया को बचाऐ।

न केवल वचन के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए, बल्कि उस ज्ञान के साथ परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए इस टिप्पणी को प्रार्थनापूर्वक पढ़ें।

लेखक के बारे में

इस पत्रिका का लेखक यहूदा है। यह प्रेरित यहूदा नहीं है, बल्कि वह खुद का परिचय "याकूब का भाई यहूदा" के रूप में करता है। यह याकूब भी प्रेरित नहीं था, परन्तु 30 वर्षों तक यरूशलेम की कलीसिया में एक प्राचीन था और याकूब पत्रिका का लेखक भी था। उनके अलावा यीशु मसीह के अन्य भाई-बहन भी हैं।

क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उस की बहिनें यहां हमारे बीच में नहीं रहतीं? इसलिये उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। [मरकुस 6:3]

यद्यपि याकूब और यहूदा यीशु के भाई थे, फिर भी उन्होंने उसकी सेवा के आरम्भ में उस पर विश्वास नहीं किया।

क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे। [यूहन्ना 7:5]

हमें पवित्र ग्रंथ में कहीं भी यहाँ नहीं दिखता कि यीशु के भाई उसके जीवित रहने तक उस पर विश्वास करते थे, परन्तु उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद हम उन्हें उन लोगों के साथ देखते हैं जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह के नाम पर प्रार्थना की थी।

और जब वहां पहुंचे तो वे उस अटारी पर गए, जहां पतरस और यूहन्ना और याकूब और अन्द्रियास और फिलेप्पुस और थोमा और बरतुलमाई और मत्ती और हलफई का पुत्र याकूब और शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे। [प्रेरितों के काम 1:13,14]

जब यीशु जीवित थे तब यहूदा ने भी उन पर विश्वास नहीं किया,परंतु उनके पुनरुत्थान के बाद उसने अपना मन फिराया और यीशु के नाम पर विश्वास किया।इसके बाद वह अपने आप को मसीह का भाई नहीं मानता बल्कि मसीह का सेवक बताता है।

वचन पर टिप्पणी

यहूदा की ओर से जो यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई है, उन बुलाए हुओं के नाम जो परमेश्वर पिता में प्रिय और यीशु मसीह के लिये सुरक्षित हैं॥ [यहूदा 1:1]

यहाँ यहूदा खुद का परिचय देते हुए अपने आप को येशु मसीह का दास बता रहा है। हिंदी में दास का अनुवादित शब्द ग्रीक में "DOULOS" है, इस शब्द का अर्थ है "बंधक नौकर" या "गुलाम"। यहूदा स्वयं को आजीवन मसीह का गुलाम बनाना चुन रहा है।

सभी प्रेरित स्वयं को मसीह के सेवक मानते थे।।यह उनके खुद के विचार नहीं थे, उन्होंने मसीह के उदाहरण का अवलोकन किया और उन्हें इस बात का एहसास था की मसीह ने उनके लिए क्या किया। इस एहसास से वे स्वयं को मसीह के दास मानने लगे।

पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास(DOULOS) है…[रोमियो 1:1]

शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास( DOULOS)… [2 पतरस 1:1]

गुलाम कौन हैं? 'गुलाम कानूनी तौर पर किसी की (मालिक की) संपत्ति है। उस गुलाम की जिम्मेदारी है कि वह ठीक वैसा ही करे जैसा उसके मालिक ने उसे करने को कहा है। एक गुलाम को न तो नागरिक अधिकार दिए जाते थे और न ही मजदूरी।कभी-कभी उन्हें उनके मालिकों द्वारा गंभीर रूप से प्रताड़ित किया जाता था। वे केवल सेवा करना जानते थे, न की सेवा पाना।

इस्राएली 400 वर्षों तक मिस्रवासियों के गुलाम रहे। उस गुलामी में उन्होंने अनेक कष्ट सहे। उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वे उन्हें इससे मुक्ति दिलायें। परमेश्वर ने उनकी पुकार सुनी और मूसा के द्वारा इस्राएलियों को दासता से मुक्त किया। परन्तु परमेश्वर ने चेतावनी दी कि यदि वे अब परमेश्वर के आज्ञाकारी नहीं रहे जिसने उन्हें गुलामी से मुक्त कराया, तो उन्हें सज़ा मिलेगी। जैसे इन इस्राएलियों को परमेश्वर ने छुड़ाया , वैसे ही हम भी मसीह में छुड़ाए हैं। इसे समझते हुए, ईसा मसीह के शिष्यों ने स्वयं को "मसीह के दास" ।

उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। [कुलुस्सियों 1:13]

क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो॥ [1 कुरिन्थियों 6:20]

लेकिन मसीह का गुलाम होना इस दुनिया का गुलाम होने के विपरीत है। क्योंकि मसीह सच्चा, न्यायकारी और प्रेममय है।इस संसार के स्वामी बलपूर्वक कब्ज़ा कर के दास बनाते हैं, परन्तु मसीह ने अपने प्राण देकर हमें दास के रूप में मोल लिया है। हमें दासता से मुक्त करने के लिए हमारे प्रभु इस दुनिया में दास (DOULOS) बनकर आए। “ वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल करी जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे”। उस अद्वितीय, सर्वोच्च मसीह ने हमारे लिए “अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया”। ऐसे स्वामी का दास होना हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है।हालाँकि हम एक तरह से ईसा मसीह के गुलाम हैं, किन्तु हम उनके बेटे/बेटियाँ भी हैं।

जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास (DOULOS) का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। [फिलिप्पियों 2:6,7]

यहूदा यहाँ यही कह रहा है - मैं मसीह का दास हूँ, केवल उसके लिए काम कर रहा हूँ और केवल उसे प्रसन्न करना चाहता हूँ। क्योंकि मैं मसीह का दास हूं, जो बातें मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं वे सच हैं, क्योंकि मैं मसीह को प्रसन्न करने और तुम्हारे कल्याण के लिए ये बातें लिख रहा हूं।

हमें यहाँ संदेह हो सकता है की यहूदा ने अपना परिचय याकूब के भाई के रूप में क्यों दिया। यहूदा (Jude/Judah) नाम यहूदियों के लिए बहुत सामान्य नाम है।बाइबल में "यहूदा" नाम के कई लोग हैं, इस्करियोती यहूदाह उनमें से एक है। उसने अपना परिचय इस प्रकार दिया कि इस पत्री को प्राप्त करने वाले समझ जाएँ कि यह कौन सा यहूदा है। इतना ही नहीं, बल्कि जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, "याकूब" यरूशलेम की कलीसिया में एक प्राचीन था, इसलिए जब पत्री पढ़ने वालों को पता चलेगा कि लेखक "याकूब का भाई" है, तो वे सुनेंगे और जो भी वह कहते हैं उससे सहमत होंगे।लेकिन हमें यहां ध्यान देने की जरूरत है कि यहूदा ने पहले अपना परिचय "याकूब के भाई" के रूप में नहीं दिया था, उसने पहले खुद को "यीशु मसीह के दास" के रूप में पेश किया।

पत्रिका यह नहीं बताती कि प्राप्तकर्ता कौन हैं, या किस क्षेत्र से हैं, पर यह बताती है कि वे कैसे हैं।

जिन लोगों ने इस पत्रिका को प्राप्त किया वह वास्तव में यीशु मसीह में सुरक्षित किये गए थे। उनमें न केवल यहूदी बल्कि अन्यजाति भी थे। यह पत्रिका उन बुलाऐ हुओ के लिए था जिन के बारे मे वचन यह कहता है - “ जिस ने हमारा उद्धार किया, और पवित्र बुलाहट से बुलाया, और यह हमारे कामों के अनुसार नहीं; पर अपनी मनसा और उस अनुग्रह के अनुसार है जो मसीह यीशु में सनातन से हम पर हुआ है। पर अब हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु के प्रगट होने के द्वारा प्रकाश हुआ, जिस ने मृत्यु का नाश किया, और जीवन और अमरता को उस सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया।” [2 तीमुथियुस 1: 9,10]

परमेश्वर ने हमें,अर्थात्,जो उसकी शाश्वत इच्छा द्वारा चुने गए हैं उन्हें सुसमाचार द्वारा पवित्र बुलाहट के साथ बुलाया,उपहार स्वरूप हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह में विश्वास दिया,पवित्र आत्मा की प्रेरणा से हमें अपने पापों का पश्चाताप कराया। परमेश्वर ने हमें ऐसा क्यों बुलाया इसका उत्तर वचनों में कुछ इस तरह है - “कि उसके उस अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो, जिसे उस ने हमें उस प्यारे में सेंत मेंत दिया।” [इफिसियों 1:6]

उसने न केवल हमें उद्धार के लिए बुलाया बल्कि हमें यीशु मसीह में सुरक्षित रखा।यदि हमारे उद्धार की निरंतरता हमारे हाथों में होता तो हम उसे कब की खो चुके होते।परन्तु परमेश्वर,जिसने हमें बुलाया, वह हर परिस्थिति में हमें सुरक्षित रखेगा और हमें अंत तक ले जाएगा। जब हम भटक जाते हैं तो परमेश्वर पिता हमें ताड़ना देकर वापस सही रास्ते पर लाते हैं। वह हमें पवित्र कर के मसीह की छवि में रूपान्तरित करता है। यही वह बातें है जो यहूदा इस पत्रिका के प्राप्तकर्ताओं को याद दिलाना चाहता है।

दया और शान्ति और प्रेम तुम्हें बहुतायत से प्राप्त होता रहे॥ [यहूदा 1:2]

यहाँ, लेखक प्रार्थना कर रहा है की “दया”, “शांति” और “प्रेम” जो परमेश्वर दे सकता है, वह उन लोगों को आदिक मात्रा में प्राप्त हो।पौलुस ने अपने पत्रों में "अनुग्रह" शब्द का प्रयोग आशीर्वाद के रूप में किया है जबकि यहूदा ने "दया" शब्द का प्रयोग किया है। अनुग्रह और दया शब्द एक जैसे लगते हैं, लेकिन वे एक नहीं हैं। अनुग्रह का अर्थ है "वह पाना जिसके हम हकदार नहीं हैं",जबकि दया का अर्थ है "वह न पाना जिसके हम हकदार हैं"।

हम वास्तव में अपने पाप के कारण परमेश्वर के क्रोध के पात्र है, पाप की मजदूरी तो मृत्यु है और क्योँकि परमेश्वर पापियों का न्यायपूर्वक न्याय करता है, हम मृत्यु और शाश्वत नरक के पात्र है। लेकिन यह “दया” ही है जो इन चीज़ों को हमारे साथ घटित होने से रोकती है।हम अनन्त जीवन प्राप्त करने के योग्य नहीं हैं, परमेश्वर के साथ शांति से रहने के अयोग्य हैं, परमेश्वर का प्रेम और उनके वादे और आशीर्वाद प्राप्त करने के अयोग्य हैं, फिर भी यह परमेश्वर की "अनुग्रह" है जो उसने हमें दिया है।परमेश्वर का यही प्रचुर अनुग्रह हमें बढ़ने और यीशु मसीह की छवि में परिवर्तित होने में सहायता करेगा।

ऐसे परमेश्वर की "शांति" और "प्रेम" और ज्यादा विस्तार हो ऐसा आशीर्वाद यहूदा उन्हें दे रहा है। हम जो परमेश्वर के साथ मतभेद में हैं, मसीह की कृपा से उनके साथ मेल मिलाप करते हैं।इस शांति की स्थिति पर निर्भर हमारे जीवन में अनुभवात्मक शांति होती है।हालाँकि हम अपनी शांति नहीं खो सकते , लेकिन जब हम पाप करते हैं तो हम अनुभवात्मक शांति खो देते हैं। जितना अधिक हम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं, उतना ही अधिक हम उसकी शान्ति को अपने जीवन में विस्तार होते हुए अनुभव कर सकते है। यहूदा आशीर्वाद दे रहा है कि तुम्हारे जीवन में भी ऐसा ही हो। परमेश्वर के साथ हमारी शांति का कारण परमेश्वर का प्रेम है।उस प्रेम की गहराई, ऊंचाई, लंबाई और चौड़ाई को जानने के लिए एक जीवनकाल पर्याप्त नहीं है।यहूदा आशीर्वाद दे रहे हैं कि ऐसा ईश्वर का प्रेम हमारे जीवन में भरपूर रहे, और हम उस में दिन-ब-दिन बढ़ते रहें।

हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिस में हम सब सहभागी हैं; तो मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। [यहूदा 1:3]

यहूदा वास्तव में "मसीह में हमें जो उद्धार मिला है" (जो परमेश्वर द्वारा दिया गया है) उसके बारे में लिखना चाहता था, लेकिन पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर वह "विश्वासियों को दी गई शिक्षा उसके लिए यत्न करने" (अर्थात् हम) के बारे में लिख रहा है।यहूदा अपने प्रिय भाइयों को मजबूत करने में विशेष रुचि लेते हुए उन से विनती करता है कि वे इस विश्वास से विमुख न हों, बल्कि इसके लिए यत्न करें।

"एक बार सौंपा गया सिद्धांत" इस वाक्यांश का शाब्दिक अनुवाद "एक बार सौंपा गया विश्वास" किया जा सकता है।आइए जानें कि 'एक बार सौंपा गया' का क्या अर्थ है।पुराने नियम के ग्रंथ लगभग 1500 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व के बीच लिखे गए थे। इसका मतलब है कि परमेश्वर लगभग एक हजार वर्षों से कई लोगों को अपने वचन की सच्चाइयों को प्रकट कर रहे हैं। लेकिन नया नियम पहली सदी के दौरान लिखा गया था।हमारे पास जो पवित्र ग्रन्थ है, उसमें कोई भी वचन या किताब ऐसी नहीं है जो पहली सदी के बाद जोड़ी गयी हो।अर्थात्, नये नियम की शिक्षा एक बार ही सौंपी गयी थी, इसे परमेश्वर के प्रेरितों के माध्यम से उसकी कलीसिया को सौंपा गया था।अतः हमें प्रेरितिक अधिकार के तहत जो नया और पुराना नियम दिया गया है, उसे 'एक बार सौंपी गई शिक्षा' माना जाना चाहिए। इस प्रकार परमेश्वर ने पवित्र ग्रन्थ में अपने वचन को पूर्णतः प्रकट किया है, इसमें कुछ भी जोड़ने या घटाने की आवश्यकता नहीं है।लेकिन इस दौर में कई लोगों का दावा है कि उन्हें दर्शन हुए, परमेश्वर ने उनसे सपनों में बात की या कई अन्य तरीकों से बात की। यदि यहीं सच है तो हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर ने "अपना वचन एक ही बार में नहीं सौंपा"; लेकिन इसके विपरीत यहूदा यहाँ कहता है की "सिद्धांत एवं विश्वास एक बार ही सौंपी गयी है।"क्या यहूदा जो कह रहा है वह सच है या इस अवधि के प्रचारक जो कहते हैं कि परमेश्वर अभी भी दर्शन और सपनों के माध्यम से कई चीजें प्रकट कर रहे हैं? इस पर विचार करें।

यह विश्वास ईसा मसीह और उनके प्रेरितों द्वारा दिए गए सैद्धांतिक सत्यों पर आधारित है।कोई भी पवित्र ग्रंथ की व्याख्या अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता।हमें वचन को उसी अर्थ में समझना चाहिए जिस अर्थ में प्रेरितों ने उसे सिखाया था।हमें प्रेरितों द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों को ठीक से समझना चाहिए (उदाहरण के लिए: 'पाप का सिद्धांत', 'उद्धार का सिद्धांत', 'परमेश्वर के चुनाव का सिद्धांत', 'पवित्र आत्मा का सिद्धांत', 'मसीह का सिद्धांत' आदि)।

उदाहरण के लिए: मसीह जो हमारे लिये श्रापित बना, उसने हमें मोल लेकर श्राप से छुड़ाया ,अर्थात्, जब हम पापी थे, मसीह ने हमारे पापो का दंड अपने ऊपर ले लिया और हमें अपनी धार्मिकता (जिस तरह से वह इस संसार में धार्मिकता से जीया) दी और हमें धार्मिक बनाया।उद्धार विश्वास से आता है, हमारे कार्यों से नहीं।रोमन कैथोलिकों का मानना है की 'न केवल यीशु मसीह में विश्वास बल्कि हमारे अच्छे कार्य भी हमारे उद्धार में योगदान करते हैं '। लेकिन वचनों में स्पष्ट है की "क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा"। जो कोई भी इस झूठी शिक्षा (कि उद्धार के लिए कर्म आवश्यक है) के अनुसार जीता है, उसका उद्धार सच्चा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके नैतिक आचरण के आधार पर उन्हें उद्धार मिल सकती है।इसलिए, हम क्या विश्वास करते हैं, इस सेअधिक महत्वपूर्ण है कि हम किस पर विश्वास करते हैं।इसी तरह, बहुत लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक शक्ति है। लेकिन वचन स्पष्ट रूप से साबित करता है कि पवित्र आत्मा त्रिएक में एक है, और वह एक व्यक्ति है।यह भी कहा जाता है कि मसीह परमेश्वर नहीं है, बल्कि परमेश्वर और मनुष्य के बीच केवल एक मध्यस्थ है, जिसे परमेश्वर ने बनाया था, लेकिन वचन यह स्पष्ट करता है कि मसीह 'परमेश्वर' है।इस प्रकार, हमें प्रेरितों द्वारा सौंपी गई शिक्षा को समझना चाहिए और झूठी शिक्षा के विरुद्ध लड़ना चाहिए।ऐसा करने के लिए हमें सत्य में स्थिर होकर उसमें बने रहना चाहिए। अगर हम नियमित रूप से पवित्र ग्रंथ नहीं पढ़ते तो यह संभव नहीं है।

लेकिन हमें यह सवाल आ सकता है कि जब परमेश्वर ने हमसे वादा किया है कि वह हमारी सुरक्षा करेंगे (पहले वचन में), तो हमें क्यों लड़ें? क्या परमेश्वर ने हमें जीत का वादा नहीं किया था? तो हम और क्या करें?हम ऐसा सोच सकते हैं. यह सच है कि परमेश्वर हमारी सुरक्षा करेगा, लेकिन पवित्र ग्रंथ हमें यह नहीं सिखाती कि हम संगर्ष न करें।इसके विपरीत, मसीह और प्रेरितों ने हमें झूठी शिक्षा के विरुद्ध लड़ना सिखाया, यहाँ तक कि यदि आवश्यक हो तो सत्य के लिए अपने प्राण को भी जोखिम में डालना सिखाया।लेकिन हमारी लड़ाई ईर्ष्या और घृणा से नहीं, बल्कि इस शिक्षा के लिए "साफ़ विवेक, नम्रता और भय के साथ" लड़ी जानी चाहिए।

इन वचनों को ध्यानपूर्वक पढ़िए

तुम क्यों नहीं समझते कि मैं ने तुम से रोटियों के विषय में नहीं कहा फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकस रहना।तब उन को समझ में आया, कि उस ने रोटी के खमीर से नहीं, पर फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से चौकस रहने को कहा था।[मत्ती 16:11,12]

इसलिये, हे प्रियो, जब कि तुम इन बातों की आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके साम्हने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो।और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस न भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है।वैसे ही उस ने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है जिन में कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्थों को भी पवित्र शास्त्र की और बातों की नाईं खींच तान कर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं।इसलिये हे प्रियो तुम लोग पहिले ही से इन बातों को जान कर चौकस रहो, ताकि अधमिर्यों के भ्रम में फंस कर अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो।पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन॥[2 पतरस 3:14-18]

हेप्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं।[1 यूहन्ना 4:1]

क्योंकि बहुत से लोग निरंकुश बकवादी और धोखा देने वाले हैं; विशेष करके खतना वालों में से।इन का मुंह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखा कर घर के घर बिगाड़ देते हैं।[तीतुस 1:10,11]

अतीत में ऐसे बहुत से झूठे शिक्षक थे और आज भी हैं। कलेसिए के रखवाले की यह जिम्मेदारी है कि वह इन लोगों की झूठी शिक्षाओं का विरोध करे और कलेसिए में मौजूद लोगों को सच्चाई की ओर ले जाए। इसी तरह, हर विश्वासी की जिम्मेदारी है कि वह सच्चाई को जाने और मसीह विरोधी के झूठ का विरोध करे।

क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिन के इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहिले ही से लिखा गया था: ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं॥ [यहूदा 1:4]

ऊपर के वचनों में यहूदा ने "अपने विश्वास के लिये पूरा यत्न करो" ऐसा क्यों कहा हमें इस वचन से पता चलता है। इसकी वजह थी की “कई मनुष्य चुपके से उनसे आ मिले है”।वे मसीही होने का दावा करते हैं और कलीसिया में उपदेश देते हैं।लेकिन ये सच्चे शिक्षक नहीं हैं, और वे जो कहते थे वह प्रेरितों द्वारा सिखाई गई बातों के अनुरूप नहीं था। ये न्याय पाने के लिए नियुक्त किए गए हैं, अर्थात्, उन्होंने प्रभु येशु मसीह को त्यागा और अपने आप को उस दण्ड के योग्य चुना जो परमेश्वर ने पहले से अविश्वासियों के लिए नियुक्त किया था।इसलिए, उनके लिए पहले से तय की गई सज़ा बिना देर किये उन पर आ जायेगी।

यहूदा न केवल यह बताता है कि ऐसे धर्मत्यागी मौजूद हैं, बल्कि उनकी विशेषताओं का भी वर्णन करता है। प्रथमतः, वे "भक्‍तिहीन" हैं।हालाँकि वे भक्त होने का दावा करते हैं, लेकिन उनमें कोई भक्ति नहीं है। जैसा कि यीशु ने कहा था “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हिड्डयों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं।”[मत्ती 23:27]

न केवल वे भक्‍तिहीन हैं, बल्कि वे अपने "वासना के लिए परमेश्वर के अनुग्रह का दुरुपयोग करते हैं", अर्थात्, वे यह सिखाते हुए कि परमेश्वर अनुग्रहकारी है, उसी अनुग्रह को अपनी अनैतिक वासनाओं के लिए उपयोग कर के परमेश्वर के अनुग्रह का अपमान करते हैं। यहाँ शब्द व्यभिचार, के लिए अनुवादित शब्द ग्रीक में “aselgia” है। इस शब्द का अर्थ "बेलगाम वासना", "व्यभिचार", "रोमांस" है। उस कलेसिया में धर्मत्यागी ऐसी हरकतों से भरे हुए थे।वे अपने पाप को सही ठहराने के लिए 'औचित्य' के सिद्धांत (DOCTRINE OF JUSTIFICATION) का ग़लत उपयोग कर रहे हैं। वे पौलुस के शब्द "जहां पाप बहुत हुआ, वहां अनुग्रह उस से भी कहीं अधिक हुआ" का गलत मतलब निकल के यह बताते थे की जहाँ पाप है, वहाँ अनुग्रह भी है, इसलिए यदि हम पाप भी करें, तो भी परमेश्वर का अनुग्रह हम पर बना रहेगा। वे इस गलत सोच में जीते हैं कि परमेश्वर का अनुग्रह पाप करने के लिए छूट है और कई लोगों को उस दिशा में ले जाते है।हालाँकि “हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो?कदापि नहीं, हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिताएं?”[रोमियो 6:1,2] क्या उन्होंने पौलुस के वचन नहीं सुने? उन्होंने पौलुस की शिक्षाओं को गलत समझा और अपने जीवन में उसी गलत अर्थ को लगाया। इन्हें यह एहसास होना चाहिए कि वे "पाप के लिए मरे हुए (बचाए गए)" लोगों में से नहीं हैं।

वे न केवल परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ करते हैं, बल्कि वे "प्रभु यीशु मसीह को भी अस्वीकार करते हैं।" भले ही वे अपनी बातों से यीशु मसीह की दिव्यता और उनकी शिक्षाओं को अस्वीकार न करें, वे अपने व्यवहार से यीशु मसीह को अस्वीकार करते हैं।ऐसे लोगों के बारे में वचन यहाँ कहता है: “वे कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं: परअपने कामों से उसका इन्कार करते हैं, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न मानने वाले हैं: और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं॥”[तीतुस 1:16]

पर यद्यपि तुम सब बात एक बार जान चुके हो, तौभी मैं तुम्हें इस बात की सुधि दिलाना चाहता हूं, कि प्रभु ने एक कुल को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद विश्वास न लाने वालों को नाश कर दिया।[यहूदा 1:5]

यहूदा कहता है, " तुम सब बात एक बार जान चुके हो," जिसका अर्थ है कि उस कलेसिया के लोगों को , झूठे शिक्षको को होने वाले सज़ा के बारे में पहले से पता था। हालाँकि, लेखक फिर से उसी बात को याद कर रहा है।यहूदा ने वही बात फिर से इसीलिए लिखा ताकि वे जो जानते थे उसे न भूले, वह अपने आप को उन चीज़ो से बचाये रखे और इतना ही नहीं यह बातें उनके लिए फायदेमंद भी होगा।पौलुस, पतरस और अन्य प्रेरितो ने भी यही किया। उन्होंने कलीसिया के लोगों को वही बातें बार बार बताई जो वह पहले से जानते थे।यदि प्रेरितों ने कलीसिया को बार-बार याद दिलाया कि विश्वासियों को कैसा रहना चाहिए, मसीह ने उनसे कैसा प्रेम किया, उनकी आशा कैसी होनी चाहिए,[फिलिप्पियों 4:4; 2 पतरस 1:12 ] यहूदा यहाँ बार-बार याद दिला रहा है कि उन लोगों के लिए क्या दण्ड होगा जो विश्वासी होने का दावा करते हुए मसीह के विरुद्ध कार्य करते हैं।

प्रभु (मसीह) ने अपने पराक्रमी हाथ से इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाया।उसने मुक्त हुए इस्रायलियों को वह ज़मीन देने का वादा किया जिसके बारे में उसने उनके पूर्वज इब्राहीम, इसहाक और याकूब को वादा किया था।लेकिन उन में जो अविश्वासि लोग, परमेश्वर का तिरस्कार करने वालों और उसके महान कार्यों पर हमेशा संदेह करने वालों के साथ परमेश्वर ने क्या किया? पौलुस इस्राएलियों के साथ घटित घटनाओं का वर्णन कुछ इस प्रकार करता है: “हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब बाप दादे बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए।और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपितिस्मा लिया।और सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया।और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उन के साथ-साथ चलती थी; और वह चट्टान मसीह था।परन्तु परमेश्वर उन में के बहुतेरों से प्रसन्न न हुआ, इसलिये वे जंगल में ढेर हो गए।ये बातें हमारे लिये दृष्टान्त ठहरी, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें।और न तुम मूरत पूजने वाले बनों; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: एक दिन में तेईस हजार मर गये ।और न हम प्रभु को परखें; जैसा उन में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए।और न तुम कुड़कुड़ाएं, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करने वाले के द्वारा नाश किए गए।परन्तु यें सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टान्त की रीति पर भी: और वे हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।”[1 कुरिन्थियों 10:1-11]

उनके अविश्वास के कारण, केवल कालेब, यहोशू और अगली पीढ़ी (अर्थात् मिस्र से बाहर आने वालों के वंशज) ही प्रतिज्ञात देश के अधिकारी हो सके।बाकी सभी को परमेश्वर ने नष्ट कर दिया क्योंकि वे अपने अविश्वास, व्यभिचार, प्रलोभन और कुड़कुड़ाहट के कारण परमेश्वर को अप्रसन्न कर रहे थे। इसीलिए यहूदा ने कहा है, “कि प्रभु ने एक कुल को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद विश्वास न लाने वालों को नाश कर दिया”।

इनके विपरीत, सच्चे विश्वासी वे लोग हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करने और उसके मार्गों पर चलने की इच्छा रखते हैं।विश्वास कोई भावना नहीं है जो हम अपने मन में बनाते हैं बल्कि एक सिद्धांत है जो हमारे जीवन को बदल देता है।हालाँकि, आजकल बहुत से लोग 'यीशु पर विश्वास' करने का दावा करते हैं, लेकिन वे सच्चे उद्धार के गुण नहीं दिखाते।सच्चे विश्वासी केवल अपने मुँह से 'मै विश्वासी हु' नहीं कहते, परन्तु वे मसीह के लिये परिश्रम करते हैं, पाप से घृणा करते हैं, भाइयों से प्रेम करते हैं, झूठे शिक्षकों का विरोध करते हैं, और "अपने कामों से अपने आप को मसीह का प्रमाणित करते हैं।"

क्योंकि उस कलीसिया के धर्मत्यागि अपने आप को 'बचाये गये' होने का दावा करते हैं, भले ही उनमें ऊपर बताई गयी कोई भी विशेषता नहीं थी, यहूदा उन को चेतावनी देता है कि वे अविश्वासी इस्राएलियों की तरह नष्ट हो जायेंगे। ये पाखंडी विश्वासी, 'मसीह में विश्वास' करने का दावा करते हुए, न केवल कलीसिया में शिक्षा देने का स्थान लेते हैं, बल्कि दावा करते हैं कि उन्हें यह अधिकार परमेश्वर से प्राप्त हुआ है,वे प्रेरितों की सच्ची शिक्षा को तुच्छ समझते हैं और कलीसिया को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करते हैं कि वे जो कहते हैं वह सत्य है, ऐसा करके वे अपने ऊपर अनन्त विनाश ला रहे हैं।परमेश्वर, जिन्होंने इस्राएलियों को नहीं छोड़ा, "उन लोगों को भी नहीं छोड़ेंगे जो उसकी कृपा का दुरुपयोग करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं।"

फिर जो र्स्वगदूतों ने अपने पद को स्थिर न रखा वरन अपने निज निवास को छोड़ दिया, उस ने उन को भी उस भीषण दिन के न्याय के लिये अन्धकार में जो सदा काल के लिये है बन्धनों में रखा है।[यहूदा 1:6]

यहां यहूदा कह रहा है कि न केवल इस्राएलियों को, जिन्हें उसने (परमेश्वर ने) मुक्त किया था, बल्कि वे स्वर्गदूत , जिन्हें उसने पवित्र बनाया , पाप करने पर उन्हें भी नहीं छोड़ा।यह परमेश्वर की पवित्रता का प्रतीक है।जो लोग सोचते हैं कि हम सच्चे मसीही हैं पर वे बिना किसी सच्चे मसीही गुण के जीते हैं, उन्हें इन उदाहरणों से डरना चाहिए।परमेश्वर ने इस्राएलियों, स्वर्गदूतों और उस समुदाय के धर्मत्यागियों को नहीं छोड़ा; यदि आप उसकी कृपा में न ठहरे तो परमेश्वर आपको भी नहीं छोड़ेगा।

लेकिन आइए हम स्वर्गदूतों द्वारा किये गए पाप के बारे में थोड़ा विचार करें।कई लोग इस अनुच्छेद को उत्पत्ति 6:2 के साथ जोड़ते हैं, जो कहता है कि स्वर्गदूतों ने स्त्रियों के साथ स्वयं को अशुद्ध किया।“तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिस को चाहा उन से ब्याह कर लिया।”[उत्पत्ति 6:2]

इसके दो मुख्य कारण हैं कि वे (कुछ बाइबल टिप्पणीकार) ऐसी व्याख्या क्यों देते हैं।

1.पवित्र ग्रंथ में स्वर्गदूतों को "परमेश्वर के पुत्र" के रूप में वर्णित किया गया है।[अय्यूब 1:6] 

जबकि यह स्पष्टीकरण कि स्वर्गदूतों ने पृथ्वी पर स्त्रियों से विवाह किया और भगवान ने उन्हें इसके लिए शाप दिया, कई प्राचीन ग्रंथों से स्वीकार्य है,लेकिन यह कहने के लिए पवित्र ग्रंथो में कोई समर्थन नहीं है कि यही पूर्ण सत्य है।अय्यूब की पुस्तक के प्रथम अध्याय की 6 वीं वचन में, हिंदी में जिस शब्द का अनुवाद "स्वर्गदूत" किया गया है, वह ग्रिक में "परमेश्वर के पुत्र" है।हालाँकि, इस प्रकार की व्याख्या की कुछ सीमाएँ हैं। परमेश्वर का वचन कहता है कि स्वर्गदूत आत्माएँ हैं[भजन संहिता 104:4; इब्रानियों1:14]।हालाँकि इन दो वचन (भजन संहिता, इब्रानियों) का हिंदी में अनुवाद "पवनों" के रूप में किया गया है, लेकिन मूल ग्रीक शब्द का अर्थ "आत्माएँ" है।परमेश्वर ने मनुष्य को फूलने -फलने, और पृथ्वी में भरने का आशीष दिया।इस प्रकार आशीर्वाद देते हुए, परमेश्वर ने पुरुषों और महिलाओं में प्रजनन के लिए आवश्यक शारीरिक प्रक्रिया भी रखी। बच्चा पैदा करने के लिए शुक्राणु(sperm) और अंडाणु(ovum) का मिलना ज़रूरी है।लेकिन इस बात का कोई प्रमाण पवित्र ग्रंथ में नहीं है कि परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को ऐसी जैविक प्रक्रिया दी है।स्वर्गदूत शुक्राणु जारी नहीं कर सकते क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें प्रजनन (शादी करने और बच्चे पैदा करने) के लिए नहीं बनाया है।

पवित्र ग्रंथ में मनुष्यों को "परमेश्वर के पुत्र" कहा गया है।उदाहरण के लिए, इस्राएलियों को "परमेश्वर के पुत्र" कहा गया है।[यिर्मयाह 31:20;व्यवस्थाविवरण 14:1;भजन संहिता 82:6इसलिए, यह कहने के बजाय कि स्वर्गदूतों ने पाप किया, यह स्पष्टीकरण उचित है कि परमेश्वर के पुत्र ,हनोक के पुत्र, ने परमेश्वर के विपरीत कुंवारियों से विवाह किया।

2. कुछ ग्रंथों को स्यूडिपिग्राफा (pseudepigrapha) कहा जाता है, अर्थात ऐसे ग्रंथ जो पुराने नियम के कुछ पात्रों के नामों का उपयोग करके लिखे गए हैं ताकि लोगों को विश्वास दिलाया जा सके कि वे परमेश्वर से प्रेरित थे, जैसे कि 1हनोक(1 Enoch), जुबलीस(Jubilees) में स्वर्गदूतों का कुछ ऐसा ही वर्णन मिलता है (ऐसी कई अन्य पुस्तकें हैं)।

यहूदा के शब्द की हनोक ने भविष्यवाणी की थी[यहूदा 1:14,15],1 हनोक की पुस्तक जो एक स्यूडेपिग्राफा है उनमे है,लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि यहूदा ने वह पुस्तक पढ़ी थी और उसमें से ये शब्द लिए थे।इसके विपरीत, "मौखिक परम्परा" के वजह से यहूदा को यह भविष्यवाणी के बारे में पता होगा ऐसा हम मान सकते है और यह सत्य है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा ने यहूदा के द्वारा ये वचन लिखे थे।इसी तरह, यद्यपि स्वर्गदूतों द्वारा पृथ्वी पर स्त्रियों से विवाह करने के बारे में हनोक की पुस्तक में हैं, फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि यहूदा ने उन शब्दों के आधार पर स्वर्गदूतों के बारे में लिखा था।

तो फिर इसका क्या मतलब है कि स्वर्गदूतों ने अपना निवास स्थान छोड़ दिया?हम जानते हैं कि शैतान ने पाप किया और उसके कई साथी स्वर्गदूतों को निकाल दिया गया।वचन यह कहता है “जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपनी सारी चालचलन में निर्दोष रहा।”[यहेजकेल 28:15] “तेरे अधर्म के कामों की बहुतायत से और तेरे लेन-देन की कुटिलता से तेरे पवित्र स्थान अपवित्र हो गए;”[यहेजकेल 28:18] “तू मन में कहता तो था कि मैं स्वर्ग पर चढूंगा; मैं अपने सिंहासन को ईश्वर के तारागण से अधिक ऊंचा करूंगा; और उत्तर दिशा की छोर पर सभा के पर्वत पर बिराजूंगा;मैं मेघों से भी ऊंचे ऊंचे स्थानों के ऊपर चढूंगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊंगा।परन्तु तू अधोलोक में उस गड़हे की तह तक उतारा जाएगा।”[यशायाह 14:13-15] इस घमंडी शैतान के साथ-साथ, परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को भी नहीं बख्शा जिन्होंने उसकी मदद की थी।यही बात पतरस ने अपनी पत्रिका में लिखा है “क्योंकि जब परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को जिन्हों ने पाप किया नहीं छोड़ा, पर नरक में भेज कर अन्धेरे कुण्डों में डाल दिया, ताकि न्याय के दिन तक बन्दी रहें।”[2 पतरस 2:4]

इस प्रकार उन्होंने अपने पाप के कारण उस महान निवास को खो दिया जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था, यानी स्वर्ग में उनकी (परमेश्वर की) उपस्थिति में रहने का विशेषाधिकार।परमेश्वर द्वारा निष्कासित, वे "भीषण दिन के न्याय के लिये बन्धनों में है ", अर्थात, उन्हें एक दिन "अन्धकार में जो सदा काल के लिये है" में धकेल दिया जाएगा जिसे परमेश्वर ने शैतान के दूतों के लिए तैयार किया है।उस दिन शैतान के अनुयायियों (स्वर्गदूतों, मनुष्यों) को अनन्त विनाश मिलेगा।यहूदा भी यही बात कह रहा है।इन झूठों, अविश्वासियों और शब्दों को तोड़-मरोड़कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वालों के साथ भी ऐसा ही होगा।उसने पाप करने वाले इस्राएलियों को नहीं छोड़ा, न ही उसने अतिमानवीय स्वर्गदूतों को छोड़ा, और यदि आप उस पापपूर्ण मार्ग पर चलते रहेंगे तो क्या परमेश्वर आपको छोड़ेगा?

जिस रीति से सदोम और अमोरा और उन के आस पास के नगर, जो इन की नाईं व्यभिचारी हो गए थे और पराये शरीर के पीछे लग गए थे आग के अनन्त दण्ड में पड़ कर दृष्टान्त ठहरे हैं।[यहूदा 1:7]

परमेश्वर ने सदोम और अमोरा के लोगों को नष्ट कर दिया। उसी प्रकार, ये अविश्वासी झूठे भविष्यद्वक्ता भी नष्ट हो जायेंगे।परमेश्वर ने उस नगर को क्यों नष्ट किया इसके दो कारण हैं, पहला उनका पाप भारी था और उनका पाप पूर्ण था।[उत्पत्ति 18:20]दूसरा, उसने इसे अधर्मियों के लिए एक उदाहरण के रूप में नष्ट कर दिया।[2 पतरस 2:6] लेकिन उनका पाप क्या था, "व्यभिचार" ,"अधमिर्यों के अशुद्ध चाल-चलन", जैसा कि2 पतरस 2:7में कहा गया है। यहूदा का कहना है कि उन का "व्यभिचार", "पराये शरीर के पीछे लगना" था। ये सदोम और अमोरी लोग अपनी स्त्रियों को छोड़कर पुरुषों के साथ व्यभिचार करते थे।

“उस नगर के पुरूषों ने, जवानों से ले कर बूढ़ों तक, वरन चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया;और लूत को पुकार कर कहने लगे, कि जो पुरूष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं?उन को हमारे पास बाहर ले आ, कि हम उन से भोग करें।”[उत्पत्ति 19:4,5] उस नगर ने लूत के घर आए स्वर्गदूतों के साथ व्यभिचार करने की सोची। यानी की “ पुरूष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषों ने पुरूषों के साथ निर्लज्ज़ काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया॥”[रोमियो 1:27]

ये न केवल कामुक कृत्य करते थे बल्कि कई पाप भी करते थे और ईश्वर के विपरीत थे।ये “खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे”[लूका 17:28] ये सब करना गलत नहीं है लेकिन उनका ध्यान परमेश्वर पर नहीं बल्कि सिर्फ खाना-पीना और अन्य शारीरिक जरूरतों को पूरा करना होता है।इतना ही नहीं, अहंकार, लोलुपता, असंयमी भोग-विलास और जरूरतमंदों की मदद न करना उनकी आदतें थीं। [यहेजकेल 16:48-50]वे ईश्वर द्वारा निर्धारित किये गए प्राकृतिक व्यवस्था(natural order) के विपरीत जीते थे।

यहूदा, जिस कलीसिया को यह पत्र लिख रहा है, उसे संबोधित करते हुए चेतावनी देता है कि तुम्हारे बीच में ऐसे लोग हैं, अर्थात् उनके आचरण और व्यव्हार सदोम और अमोरी लोगों जैसे हैं, जिनके लिए वे एक उदाहरण हैं, और जो दण्ड उस नगर को मिला था वही इनको भी मिलेगा।आज अनेक लोग परमेश्‍वर के सेवक होते हुए भी कलीसिया में स्त्रियों के साथ व्यभिचार करने की स्थिति में हैं।उदाहरण के लिए: जेरोक ली दक्षिण कोरिया में मैनमिन सेंट्रल कलीसिया के रखवाले हुआ करता था। वह अपने कलीसिया की आठ महिलाओं के साथ व्यभिचार करता था और उनसे कहता था, 'मैं परमेस्वर के आदेश पर ऐसा कर रहा हूं।'दक्षिण कोरियाई पुलिस ने उसे पकड़ लिया और 15 साल जेल की सजा सुनाई। हमारे बीच भी ऐसे कई लोग हैं।यद्यपि ये शब्द सुनने में कठिन हैं, परन्तु हमारे प्रभु के अनुसार "जो कोई किसी स्त्री को कामुख दृष्टि से देखता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है"। ऐसा देखा जाए तो आज के किए मसीही इसी स्थिति मै है।

सदोम और अमोरा के नगर न केवल इस संसार में नष्ट हो गए, बल्कि उन्हें अनन्त विनाश (नरक) के लिए नियत किया गया।परन्तु इस काल में कई झूठे भविष्यवक्ताओं को इसी संसार में दंड नहीं मिल रहा है। इस वजह से, सच्चे विश्वासियों को यह नहीं सोचना चाहिए की, 'जो लोग ईश्वर का तिरस्कार कर के जी रहे है वे अच्छे हैं, तो मैं, जो ईश्वर से प्रेम करता हूं, इतना कष्ट क्यों उठाता हूं?' चाहे उन्हें इस दुनिया में दंडित किया जाए या नहीं, वे शाश्वत विनाश से नहीं बच सकते। तुम जो परमेश्वर से प्रेम रखते हो, अनन्त जीवन पाओगे।

उसी रीति से ये स्वप्नदर्शी भी अपने अपने शरीर को अशुद्ध करते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं; और ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहते हैं।[यहूदा 1:8]

इस वचन में "ये" वही लोग है (धर्मत्यागी) जिनके लिए यह पत्री लिखी गयी है।ऐसे लोग "स्वप्नदर्शी" है। यह शब्द "स्वप्नदर्शी" के दो अर्थ है।पहला की वे, कलीसिया को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करते हैं कि उन्हें सपनों में परमेश्वर से दर्शन/भविष्यवाणियां मिलती हैं।[ प्रेरितों के काम 2:17] दूसरा की वे, परमेश्वर के अधिकार के विरुद्ध कार्य कर के, उन्ही से अपने लाभ के ज़रूरतों को पूरा करने की अपेक्षा रखते है।[नीतिवचन 10:28]

“और तुम्हारे पुरिनए स्वप्न देखेंगे”[प्रेरितों के काम 2:17]उन्होंने शायद यह वचन दिखा कर कहा होगा कि उन्हें भी स्वप्न आते हैं। इन स्वप्न देखने वालों का व्यवहार कुछ इस प्रकार होता है।पहला ये अपने शरीर को अशुद्ध कर रहे होते हैं।जैसे सदोम और अमोरा के नगरवासियों ने अपने शरीर को अशुद्ध किया, वैसे ही ये लोग भी "सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से करने"[इफिसियों 4:19] वालों में है।इसी बात को यहूदा चौथे वचन में कहाता है की "ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं।"

दूसरा, वे "प्रभुता को अस्वीकार करते हैं", अर्थात, वे इस दुनिया की प्रभुता को अस्वीकार करते हैं।इस संसार के स्वामियों और प्रभुताओं की आज्ञा न मानकर, यह कहकर अपने अपवित्र व्यवहार को उचित ठहराते हैं कि यह वचन के अनुसार है। चौथे वचन में, यहूदा, जो ने इनके बारे में कहा रहा था की ये "प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं" इस वचन में कहा रहा की ये प्रभुता को भी इंकार करते है। इस दुनिया की प्रभुता के प्रति आज्ञाकारी होने का उदहारण सवयं येशु मसीही और प्रेरितो ने कलीसिया को सिखाया। “क्योंकि हाकिम अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं; सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी;”[रोमियो 13:3] इससे यह जान लेना चाहिए कि जो लोग इस संसार के प्रभुता की सत्ता को अस्वीकार करते हैं, वे परमेश्वर की सत्ता को भी अस्वीकार कर रहे हैं।इसका मतलब यह नहीं है कि सच्चे विश्वासियों को उन मामलों में ऊँचे पद वालों के उन आज्ञो का पालन करना चाहिए जो परमेश्वर के वचन के खिलाफ हैं, परन्तु विश्वासियों को इस दुनिया के अधिकारियों का पालन तब तक करना चाहिए जब तक कि वे परमेश्वर के वचन का खंडन नहीं करते।

तीसरा, वे " ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहते हैं"। "ऊंचे पद वाले" इस शब्द का अनुवाद ग्रीक में "doxa" है। इस शब्द का प्रयोग नए नियम में 150 बार हुई है। संदर्भ के आधार पर इस शब्द के विभिन्न अर्थ हैं, लेकिन शब्द का मूल अर्थ "सौंदर्य", "चमक" है।ऊंचे पद वाले ये शब्द संदर्भ के आधार पर परमेश्वर, स्वर्गदूतों और पुरुषों का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।हालाँकि, कुछ टिप्पणीकार का माना है कि इस वचन में यहूदा द्वारा इस शब्द का उपयोग "उज्ज्वल स्वर्गदूतों" के बारे में है।और कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि "ऊंचे पद वालों" का अर्थ उन लोगों से जिन्हे प्रभु ने कलीसिया के रखवाली के लिया रखा।यह धारणा कि वे स्वर्गदूतों की निन्दा कर रहे थे, शायद इतनी विश्वसनीय न हो, लेकिन यह व्याख्या विश्वसनीय है कि वे परमेश्वर द्वारा नियुक्त रखवालों (कलीसिया के रखवाले) के विरुद्ध थे। जैसे की ग्यारहवीं वचन में यहूदा कहता है "जिस प्रकार कोरह मूसा और हारून के विरुद्ध हो गया", ये लोग भी उसी प्रकार प्रेरितों और प्रेरितों द्वारा नियुक्त अधिकारियों का विरोध (ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहते हैं) कर रहे हैं।

परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विवाद करता था, तो उस को बुरा भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, कि प्रभु तुझे डांटे।[यहूदा 1:9]

यहाँ हम देख सकते है की "मीकाईल" और "शैतान" वाद विवाद कर रहे है। लेकिन ये मीकाईल कौन है ? उस विषय में यहूदा हमें यह बताता है की मीकाईल "प्रधान स्वर्गदूत" है।अर्थात मीकाईल अधिकार में था (अन्य स्वर्गदूतों पर)।गेब्रियल स्वर्गदूत दानिय्येल के दस्स्वी अद्याय में ऐसा कहता है "फारस के राज्य का प्रधान इक्कीस दिन तक मेरा साम्हना किए रहा; परन्तु मीकाएल जो मुख्य प्रधानों में से है, वह मेरी सहायता के लिये आया, इसलिये मैं फारस के राजाओं के पास रहा"[दानिय्येल 10:13] दानिय्येल के बारावी अद्याय में "उसी समय मीकाएल नाम बड़ा प्रधान, जो तेरे जाति-भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है" [दानिय्येल 12:1] और प्रकाशित वाक्य के बारावी अद्याय में “फिर स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर ओर उसके दूत उस से लड़े।” [प्रकाशित वाक्य 12:7] इन वचनों से हम इस निष्कर्ष पर आ सकते है की मीकाईल अधिकार में था। प्रेरित पतरस भी यही बात कहता है।“तौभी स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्थ में उन से बड़े हैं, प्रभु के साम्हने उन्हें बुरा भला कह कर दोष नहीं लगाते।”[2 पतरस 2:11]

अधिकारित मीकाईल और एक समय पर अभिषिक्त करूब "शैतान" मूसा की लोथ के विषय पर वाद विववाद कर रहे है।यह घटना पुराने नियम के किसी ग्रन्थ में दर्ज नहीं है। इस से हमें यह सवाल आ सकता है की यहूदा को इस घटना के बारे में कैसे पता चला? क्युकी यहूदा पवित्र आत्मा परमेश्वर से प्रेरित था तो, परमेश्वर ने स्वयं उसे यहाँ बातें दिव्य प्रकाश से बताए होंगे।हालाँकि, यहूदी इतिहास की किताबों में से एक, "THE TESTAMENT OF MOSES" में इस वाद विवाद का प्रस्ताव है। इसीलिए कई बाइबिल टिपणिकारियो का यह मानना है की यहूदा ने यह सारी बातें वही से ली होंगी।

लेकिन यह वचन यहूदा एक ऐतिहासिक सत्य (की मूसा की लोथ कहाँ है )की पुष्टि करने के लिए नहीं बल्कि इस लिए लिख रहा है ताकि वह 'ऊंचे पद वालों को बुरा भला' कहने वालों में और 'मीकाईल' में अंतर बता सके। मीकाईल ने बुरा भला कहने या दोष लगाने का साहस नहीं किया, बल्कि उसने कहा " प्रभु तुझे डांटे" क्योंकि वह न्यायकारी है।

पर ये लोग जिन बातों को नहीं जानते, उन को बुरा भला कहते हैं; पर जिन बातों को अचेतन पशुओं की नाईं स्वभाव ही से जानते हैं, उन में अपने आप को नाश करते हैं।[यहूदा 1:10]

यहूदा का कहना है की, "ये लोग" (झूठे शिक्षकों और मीकाईल के बीच अंतर दिखाते हुए) उन बातों को बला बुरा कहते है जो उन्हें न पता होता है और न समझ आती है।वह मीकाईल और उन लोगों के बीच अंतर इसलिए कर रहा है क्योंकि यद्यपि मीकाईल शैतान के बारे में सब कुछ जानता था, फिर भी उसने परमेश्वर का स्थान न लेते हुए न्याय नहीं किया, बल्कि मामले को प्रभु की डांट पर छोड़ दिया।लेकिन ‘ये लोग’ उन चीज़ों के बारे में, जो वे जानते तक नहीं, उन पर मनमर्ज़ी बाते करते है और उनको बला बुरा भी कहते है। तो क्या हो सकती है वो चीज़े जो वे समझ न सके? वो बातें स्वर्गदूतों के बारे में हो सकता है, या फिर परमेश्वर के प्रेरितों के बारे में हो सकता हैं, या वचन के बारे में हो सकता हैं।ये लोग उन चीजों को इसलिए नहीं समझ पा रहे है क्युकी वे "शारीरिक मनुष्य" है। "शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता"[1 कुरिन्थियों 2:14]ये लोग प्रेरितों की निन्दा, उनकी शिक्षाओं का तिरस्कार, और वचन के प्रति आज्ञाकारितो की निन्दा करने वाले में थे। इन कामो को वह इस ब्रम्ह के कर के जी रहे है की "फिर वे कहते हैं, ईश्वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है?"[भजन संहिता 73:11]

पतरस उनके विषय में यह कहता है “पर ये लोग निर्बुद्धि पशुओं ही के तुल्य हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिये उत्पन्न हुए हैं; और जिन बातों को जानते ही नहीं, उन के विषय में औरों को बुरा भला कहते हैं, वे अपनी सड़ाहट में आप ही सड़ जाएंगे।”[2 पतरस 2:12] उन लोगो को आध्यात्मिक समझ न होने की वजह से “उन ही आंखों में व्यभिचार बसा हुआ है, और वे पाप किए बिना रूक नहीं सकते: वे चंचल मन वालों को फुसला लेते हैं; उन के मन को लोभ करने का अभ्यास हो गया है, वे सन्ताप के सन्तान हैं।वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं; जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना।”[2 पतरस 2:14,15]

“धर्म के मार्ग को जान कर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी..जैसे कि कुत्ता अपनी छांट की ओर और धोई हुई सुअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है”[2 पतरस 2:21,22]ऐसा उन लोगो का व्यव्हार है।वे बिना कुछ सोचे, उनके मन में जो आता है, वह कर देते है। ऐसे लोग “सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्षा से भरपूर हो गए, और चुगलखोर,बदनाम करने वाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरों का अनादर करने वाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनाने वाले, माता पिता की आज्ञा न मानने वाले।निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मायारिहत और निर्दय”[रोमियो 1:29-31]होते है। क्योंकि पवित्र आत्मा उनमे वास नहीं करता, वे स्वेच्छाचारी रूप से बर्ताव करते है और हर बुराई से बारे हुए है, वे शारीरिक कामों को करने में दिलचस्पी लेते है बिना अपने आत्मा के बारे में विचार करे।यहूदा का कहना है कि ऐसे पाखंडी विश्वासी/शिक्षक "खुद को नष्ट कर रहे हैं।" “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”[गलातियों 6:7]वे परमेश्वर के प्रेरितों की निन्दा करते हुए, शारीरिक अंगो को जानवरों के बाति शरीर के लिये बोते है, इसीलिए वे शरीर के द्वारा विनाश की कटनी ही काटेंगे।

उन पर हाय! कि वे कैन की सी चाल चले, और मजदूरी के लिये बिलाम की नाईं भ्रष्ट हो गए हैं: और कोरह की नाईं विरोध करके नाश हुए हैं।[यहूदा 1:11]

यहूदा इन पाखंडी शिक्षकों को "हाय"लगाता है।उन्हें वह ये हाय इसलिए लगा रहा है क्योंकि वे परमेश्वर द्वारा बताये गये मार्ग को मिटा कर उसके विपरीत मार्गों पर चल रहे हैं।उनके इन्ही विपरीत मार्गो के बारे में इस वचन में प्रस्ताव है।

कैन का मार्ग क्या था ? वचनों में ऐसा लिखा गया है “और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई को घात किया: और उसे किस कारण घात किया? इस कारण कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धर्म के थे॥” [1 यूहन्ना 3:12]कैन ईर्ष्या, हत्या, अहंकार और अन्याय जैसे पापों से भरा हुआ था।ऐसे ही ये पाखंडी शिक्षक दूसरों के आध्यात्मिक उपहारों से ईर्ष्या करके, अपनी झूठी शिक्षाओं के माध्यम से कई आत्माओं को शाश्वत विनाश की ओर ले जा रहे हैं।हाय है उन पर जो कैन के मार्ग में चलते है।

जब बिलाम को मोआब के राजा बालाक ने इस्राएल के लोगों को, जिन्हें परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया था, श्राप देने के लिए बुलाया, तो परमेश्वर ने उसे जाने से मना किया।पहली बार तो बिलाम नहीं गया। लेकिन दूसरी बार जब राजा बालाक के पास से लोग आए, तो परमेश्वर के उसे न जाने को कहने के बावजूद , उसके धन की लालसा के कारण उसने उनसे कहा, 'तुम आज रात यहीं रुको और मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा।'बिलाम के झूठे इरादे के कारण परमेश्वर ने उसे राजा बालाक के पास जाने की अनुमति दी।परन्तु परमेश्वर ने बिलाम को जाने की अनुमति इसीलिए दी ताकि उसे अपनी गलती पता चल सके, न कि इस्राएलियों को श्राप देने के लिए।जो सब बाते बिलाम को इस्राएलियों के बारे में परमेश्वर बताते है वही उसने राजा बालाक को बताया।तब बालाक ने उससे पूछा, ‘मैंने तुझे इस्राएलियों को शाप देने के लिये बुलाया था, परन्तु तू ने उनको आशीर्वाद दिया?’ यह क्या है?उस पर बालाम ने उत्तर दिया, "परमेश्वर जो कहता है उसके अतिरिक्त मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता।"वह राजा से यह भी कहता है कि मैं उन लोगों को शाप नहीं दे सकता जिन्हें परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया है।[गिनती 22-24]यह सब कहानी सुनने के बाद,हमें लग सकता है की बिलाम ने तो वही कहा जो परमेश्वर ने उसे कहने को कहा था। और उसने वही किया जो परमेश्वर ने उसे करने को बताया। तो फिर यहाँ यहूदा ऐसा क्यों कह रहा है की वे लोग "बिलाम की नाईं भ्रष्ट हो गए हैं"।

परन्तु यह जानते हुए कि परमेश्वर इस्राएलियों को शाप नहीं देगा,बिलाम,राजा बालाक को एक सलाह देता है की 'मोआब की स्त्रियों को इस्राएलियों के साथ व्यभिचार करने बेजे, ताकि तब परमेश्वर इस्राएलियों को दण्ड दे।'मोआब का राजा वैसा ही करता है जिस के वजह से बहुत से इस्राएलियाँ मोआब की स्त्रियों के साथ व्यभिचार करते है। तदनुसार, परमेश्वर ने 24,000 इस्राएलियों को महामारी से नष्ट कर दिया। “पर मुझे तेरे विरूद्ध कुछ बातें कहनी हैं, क्योंकि तेरे यहां कितने तो ऐसे हैं, जो बिलाम की शिक्षा को मानते हैं, जिस ने बालाक को इस्त्राएलियों के आगे ठोकर का कारण रखना सिखाया, कि वे मूरतों के बलिदान खाएं, और व्यभिचार करें।”[प्रकाशित वाक्य 2:14]

बिलाम वह व्यक्ति बन गया जिसने धन के प्रति प्रेम और पुरस्कार पाने की लालच में परमेश्वर के लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध मूर्तिपूजा और व्यभिचार में धकेला था।इसी प्रकार, ये पाखंडी शिक्षक परमेश्वर के लोगों को गुमराह कर रहे हैं और उन्हें व्यभिचार और मूर्तिपूजा में धकेला रहे है।जैसे परमेश्वर ने बिलाम को यहोशू के हाथों मरवाया, वैसे ही इन लोगों को दण्ड देने के लिये मसीह द्वारा नियुक्त किये गए है।

कोरह ने मूसा, जिसे परमेश्वर ने अधिकार में रखा था, उसके विरुद्ध बोलने के लिए, वह और उसके साथ 250 सभासद और नामी को ले गया। “और वे मूसा और हारून के विरुद्ध उठ खड़े हुए, और उन से कहने लगे, तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिये तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पद वाले क्यों बन बैठे हो?यह सुनकर मूसा अपने मुंह के बल गिरा;फिर उसने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, कि बिहान को यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपने समीप बुला लेगा; जिस को वह आप चुन लेगा उसी को अपने समीप बुला भी लेगा।” [गिनती 16:3-5]

इस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें (कोरह और उसके साथियों को) नष्ट कर दिया क्योंकि उन्होंने परमेश्वर द्वारा नियुक्त अधिकार को अस्वीकार करके परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया था। “और पृथ्वी ने अपना मुंह खोल दिया और उनका और उनका घरद्वार का सामान, और कोरह के सब मनुष्यों और उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया।और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पड़े; और पृथ्वी ने उन को ढांप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए।” [गिनती 16:32,33]

यहूदा का कहना है कि ये झूठे भविष्यद्वक्ता, प्रेरितों की शिक्षा के विपरीत शिक्षा देकर, स्वयं को परमेश्वर द्वारा नियुक्त अधिकार से ऊपर उठाकर पाप कर रहे हैं, इसलिए उन पर हाय है और परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देगा।ये झूठे भविष्यद्वक्ता उसी मार्ग पर चल रहे हैं जिस पर कैन, बिलाम और कोरह चले, यह जानते हुए कि यह परमेश्वर के मार्ग के विपरीत है।तो आप किस मार्ग पर है ? क्या आप भी मसीही होने का दावा करते हुए, परमेश्वर के बताये मार्ग के विपरीत चल रहे है या एक सच्चे मसीही के तरह प्रभु को प्रसन्न करने वाली जीवन जी रहे है?

यह तुम्हारी प्रेम सभाओं में तुम्हारे साथ खाते-पीते, समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं, और बेधड़क अपना ही पेट भरने वाले रखवाले हैं; वे निर्जल बादल हैं; जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है; पतझड़ के निष्फल पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं; और जड़ से उखड़ गए हैं।ये समुद्र के प्रचण्ड हिलकोरे हैं, जो अपनी लज्ज़ा का फेन उछालते हैं: ये डांवाडोल तारे हैं, जिन के लिये सदा काल तक घोर अन्धकार रखा गया है।[यहूदा 1:12,13]

यहूदा कह रहा है की "यह तुम्हारी प्रेम सभाओं में समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं"। ऐसा वह उनको क्यों कह रहा है इसका वर्णन वह ये कहकर दे रहा है की"बेधड़क अपना ही पेट भरने वाले रखवाले हैं"।ये लोग दूसरों की जरूरतों की तुलना में अपने लाभ को अधिक प्राथमिकता देते हैं।ऐसे लोगो को कलीसिया के प्रति कोई प्रेम नहीं है।कलीसिया को विकसित करने और उसके विकास में योगदान देना इनके इरादा नहीं  है।वे केवल यही सोचते हैं कि उन्होंने कितना कमाया और कलीसिया के छाँव में रह कर पैसा ऐंठते है। वे "तुम्हारे साथ खाते-पीते हैं" अर्थात आप में से एक होने का दिखावा करके स्वयं को धोखा दे रहे हैं। वे सबसे बुरे हैं।यह जानते हुए की उनको कितनी बड़ी सज़ा मिलेगी, यह लोग बेधड़क अपना पेट भर रहे है।इस दौर में भी कई ऐसे लोग हैं।वे परमेश्वर की सेवा में मसीह को लक्ष्य न मानते हुए, धन कमाने का एक माध्यम सोच के आ रहे है। ये चरवाहे नहीं बल्कि भेड़ की भेष में भेड़िये हैं।वे अपने हिसाब से शब्दों को तोड़ मरोड़ कर पेश करते है और कहते है की, यदि आप परमेश्वर के नाम पर पैसे देते हैं, तो परमेश्वर आपको वापस भरपूर देंगे और यदि आप पाप कर रहे हैं तो भी डरने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि परमेश्वर की कृपा आपके साथ है अर्थात, क्योकि परमेश्वर दयामय है वो आपके हर पाप को माफ़ कर देंगे।वे बहुतों के लिए ठोकर खाने की वजह बन रहे है और कई लोगो को पाप में धकेल रहे हैं।

इस युग में कई लोग सच्चे सुसमाचार को त्याग रहे हैं और "समृद्धि सुसमाचार"(Prosperity Gospel) और "स्वास्थ्य और धन सुसमाचार"(Health and Wealth Gospel) का प्रचार कर रहे हैं।कई लोगो के कानो की खुजली के कारण ऐसी शिक्षा का पक्ष लेते हैं जो उन्हें पसंद हो।वे कहते हैं कि परमेश्वर की इच्छा है कि आपको धन-संपत्ति मिले, परमेश्वर आपको परेशान नहीं करना चाहता, उसकी इच्छा नहीं है कि आप बीमार पड़ें।आज की कलीसिया में बहुत से लोग लम्बे समय से कलीसिया जा रहे हैं, परन्तु उन्हें वचन की उचित समझ नहीं है।वे लोग किसी पत्री (पतरस या पौलुस द्वारा लिखित) का सार बताने में सक्षम नहीं है, वे इस बात का उत्तर देने की स्थिति में नहीं हैं कि परमेश्वर ने उस पत्री के माध्यम से उस समय के कलीसिया से क्या कहा था,या वह अब हमसे क्या कहना चाहता है।"मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रखा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं", दाऊद के इस कथन के विरुद्ध जी रहे कई लोग आज के कलीसिया में पाए जा सकते है। इनके हृदय में जितना भी झाँक लो, उसमे वचन नहीं पाया जा सकता।इस प्रकार, जो लोग उन झूठे शिक्षकों की शिक्षाओं को सुनते हैं और परमेश्वर से दूर हो जाते हैं (और पश्चाताप न करके, मन नहीं फिराते) ऐसे लोगो के लिए उन शिक्षकों के साथ "घोर अन्धकार रखा गया है"।

इतना ही नहीं, यहूदा कई तरीकों से उनकी तुलना करके यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वे कितने बेकार हैं। ये "निर्जल बादल" है, यानी बिना पानी के बादल। बारिश होने के लिए, बादल में पानी होना जैसे आवश्यक है, वैसे ही कलीसिया की आध्यात्मिक भलाई के लिए बादलों के तरह जो लोग ऊँचे पद में है उनमे परमेश्वर का वचन होना आवश्यक है। इसके अभाव में उनकी शिक्षा भी जल के बिना बादल के समान है, जिस से कोई अंकुर नहीं फूट सकता। वे "पतझड़ के निष्फल पेड़ हैं"। उनमें नए फल नहीं लगते और जो फल उनके पास थे वे भी मुरझा गए हैं, वे जड़ से सूख गए हैं, अर्थात् वे अपने जीवन में परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले कार्य दिखाने में असमर्थ हैं।जिस तरह समुद्र में लहरें गुस्से में उठती हैं और किनारे पर बर्फ की तरह रुक जाती हैं, भले ही वे घमंडी हों और समुद्र की लहरों की तरह व्यवहार करें, एक दिन उन्हें परमेश्वर के हाथों उचित दंड भुगतना पड़ेगा।आज बहुत से उपदेशकों ने भी परमेश्वर से प्रार्थना करना बंद कर के उन्हें आदेश देना शुरू कर दिया है।वे कहते हैं, 'हे परमेश्वर, अब आप नीचे आइये', 'उन पर अपनी आत्मा उंडेल दीजिये', 'हे परमेश्वर, अब मैं तुझे कहता हूँ, उन्हें इसी क्षण आशीर्वाद दीजिये'। वे सभी अंत में कहेंगे “हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ।” [मत्ती 6:22,23]

और हनोक ने भी जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, इन के विषय में यह भविष्यद्ववाणी की, कि देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया।कि सब का न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उन के अभक्ति के सब कामों के विषय में, जो उन्होंने भक्तिहीन होकर किये हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।ये तो असंतुष्ट, कुड़कुड़ाने वाले, और अपने अभिलाषाओं के अनुसार चलने वाले हैं; और अपने मुंह से घमण्ड की बातें बोलते हैं; और वे लाभ के लिये मुंह देखी बड़ाई किया करते हैं॥[यहूदा 1:14-16]

हनोक, आदम से सातवीं पीढ़ी था, "आदम,शेत, एनोश;केनान, महललेल, येरेद;हनोक, मतूशेलह, लेमेक[1 इतिहास 1:1-3]। हनोक का परिचय इस तरह देने में एक कारण है। यहूदा ने आदम से सातवें हनोक और कैन के बेटे हनोक (कैन के बेटे का नाम भी हनोक है) के बीच अंतर करने और यह बताने के लिए कि यह हनोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चला, इस प्रकार उसका परिचय दिया।

यहूदा यह नहीं कहना चाहता की हनोक की भविष्यवाणी किसी पुस्तक में लिखी गई थी, बल्कि यह कहना चाहता है की भविष्यद्ववाणी हनोक द्वारा की गई थी ।हमें आश्चर्य हो सकता है कि यहूदा को यह भविष्यवाणी कैसे पता चली जबकि यह पुराने नियम में कहीं भी नहीं लिखी गई थी?यहूदी “ORAL TRADITION” का पालन करते थे। यानी मौखिक रूप से किसी बात का प्रचार करना।उदाहरण के लिए, जो कुछ भी मेरे दादाजी ने मुझे बताया, मेरे पिता ने मुझे बताया, मैंने अपने बच्चों को बताया।इस प्रकार लिखित रूप के बजाय मौखिक रूप से प्रसारित जानकारी को "ORAL TRADITION" कहा जाता है।इसी प्रकार, यहूदा को "ORAL TRADITION" के माध्यम से हनोक द्वारा दी गई भविष्यवाणी का पता चला होगा।इस्राएलियों ने परमेश्वर के वचनों को अन्य पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए इस परंपरा का उपयोग किया।सिर्फ इसलिए कि ये वचन (भविष्यवाणी) हनोक की पुस्तक में हैं, हनोक की पुस्तक को ईश्वर का वचन या परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया नहीं कह सकते। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, हनोक की पुस्तक "PSEUDEPIGRAPHA" की श्रेणी से संबंधित है।

इसी प्रकार मूसा और दाऊद को भी यह बात "ORAL TRADITION" के माध्यम से पता रही होगी, जिसके कारण वे यह लिख सके: “आशीर्वाद परमेश्वर के जन मूसा ने अपनी मृत्यु से पहिले इस्राएलियों को दिया वह यह है….उसने(यहोवा) पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखों पवित्रों के मध्य में से आया, उसके दाहिने हाथ से उनके लिये ज्वालामय विधियां निकलीं”[व्यवस्थाविवरण 33:1,2] “परमेश्वर के रथ बीस हजार, वरन हजारों हजार हैं;”[भजन संहिता 68:17]

हनोक का कहना है कि परमेश्वर इन भक्तिहीनों को दो बातों के आधार पर दोषी ठहराएंगे: एक उनके “अभक्ति के सबी कामों के विषय में” और दूसरा “उन सब कठोर बातों के विषय में जो वे भक्तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं”। उनके अभक्तिपूर्ण कार्य ये हैं कि वे परमेश्वर के मार्गों के बजाय अपनी ही वासनाओं के अनुसार चलते हैं और परमेश्वर की अपेक्षा कर के मनुष्यों को प्रसन्न कर रहे थे।इसके अलावा, वे परमेश्वर के विरुद्ध कठोर बातें बोलते हैं, हर बात में कुड़कुड़ाते हैं और स्वयं को बड़ा दिखाने के लिए डींगें मारते हैं।परमेश्वर अवश्य ही उनका न्याय करेंगे।यहूदा का कहना है की "प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया" उनका न्याय करने।परन्तु "आया" का अर्थ, कुछ ऐसा जो घटित हो गया है, तो फिर हनोक ने यह भविष्यवाणी भूतकाल में क्यों कही? इसे "aorist active indicative" कहा जाता है।इसका अर्थ यह है कि चूंकि यह भविष्य में निश्चित रूप से घटित होगा, इसलिए इसे भूतकाल में कहा जाता है, मानो की जैसे यह घटित हो गया हो।क्योंकि प्रभु अवश्य ही उनका न्याय करने आएंगे, इसलिए भविष्यवाणी की गई थी, "प्रभु... आया।" यहाँ "लाखों पवित्र" किसे कहा जा रहा है? ग्रीक में "पवित्र" शब्द का अनुवाद "haigos" है।लेकिन "haigos" शब्द का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है।उदाहरण के लिए: पवित्र (haigos) आत्मा, पवित्र (haigos) स्थान, पवित्र (haigos) स्वर्गदूत, परमेश्वर के पवित्र (haigos) लोग। लेकिन यहां वाक्य के संदर्भ के आधार पर यह समझा जा सकता है कि वह "पवित्र स्वर्गदूतों" के बारे में बात कर रहे हैं। आइए इसके लिए कुछ वाक्यों पर नजर डालें:

“जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिहांसन पर विराजमान होगा।”[मत्ती 25:31]

“जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र(haigos) दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।”[मरकुस 8:38]

“जो कोई मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और अपने पिता की, और पवित्र(haigos) स्वर्ग दूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उस से लजाएगा।”[लूका 9:26]

पर हे प्रियों, तुम उन बातों को स्मरण रखो; जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहिले कह चुके हैं।वे तुम से कहा करते थे, कि पिछले दिनों में ऐसे ठट्ठा करने वाले होंगे, जो अपनी अभक्ति के अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।[यहूदा 1:17,18]

यहूदा यहाँ जिस कलीसिया को वह ये पत्री लिख रहा है, उन्हें प्रेरितों की बातें याद दिलाना चाहता है की: "पिछले दिनों में ऐसे ठट्ठा करने वाले होंगे"

“और यह पहिले जान लो, कि अन्तिम दिनों में हंसी ठट्ठा करने वाले आएंगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई? क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था?”[2 पतरस 3:3,4]

“पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे।क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र।दयारिहत, क्षमारिहत, दोष लगाने वाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी।विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे।वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना।” [2 तीमुथियुस 3:1-5]

चूँकि ये ठट्ठा करने वाले अधर्मी अभिलाषाओं के अनुसार चलते हैं, इसलिए जो लोग उनका अनुसरण करेंगे वे भी उनके समान बन जायेंगे।ये ठट्ठा करने वाले लोग कलीसिया को यह विश्वास दिलाते हैं कि "हम परमेश्वर के लोग हैं", परन्तु वे पवित्रता के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी वासनाओं के अनुसार चलते हैं।यह इन झूठे शिक्षकों को पहचानने का एक चिह्न है।इसका यह अर्थ नहीं है कि ठट्ठा करने वाले नहीं होने चाहिए, परन्तु हमें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह अपने लोगों को इन ठट्ठा करने वालों से और झूठे शिक्षकों की शिक्षाओं से बचाए।

ये तो वे हैं, जो फूट डालते हैं; ये शारीरिक लोग हैं, जिन में आत्मा नहीं।[यहूदा 1:19]

यहाँ "ये तो" से यहूदा का अर्थ उन लोगों से है जो अपनी अधर्मी अभिलाषाओं में चलते है।इससे जोड़कर इन लोगों के बारे में वह यह भी बता रहा है की "वे शारीरिक लोग हैं "मतलब उन में परिशुद्धात्मा का वास नहीं है। ऐसे झूठे शिक्षकों को उद्धार भी नहीं है। “शारीरिक” के लिए अनुवादित ग्रीक शब्द “psuchikoi (प्सूचिकोई)” है।इसका अर्थ "स्वाभाविक", "बिना इन्द्रिय संयम के", "पशु" है।ऐसे लोगों का मुख्य लक्ष्य कलीसिया में अधिक से अधिक लोगों को विभाजित करना या उनके बीच कलह पैदा करना है।ऐसे लोग कलीसिया में दूसरों पर दोष लगाते हैं, अपने भाइयों को अपमानित करते हैं, उन्हें नीचा दिखाते हैं और दूसरों को सच्चाई के खिलाफ़ भड़काते हैं।याद रखें, यदि आप कलीसिया में विभाजन पैदा कर रहे हैं, तो आप सच्चे विश्वासी नहीं हैं।

पर हे प्रियोंतुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए।अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो; और अनन्त जीवन के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहो।[यहूदा 1:20,21]

"प्रियों" अर्थात् उस कलीसिया के सच्चे विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए, यहूदा ने चार उत्साहवर्धक शब्द लिखे।पहला, की वे "अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करे"।इसका शाब्दिक अनुवाद "अपने आप को अपने अति पवित्र विश्वास पर निर्मित करना" हो सकता है।इस विषय पर प्रेरित ऐसा कहते है: “परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैं ने बुद्धिमान राजमिस्री की नाईं नेव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है; परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है। क्योंकि उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।और यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखता है।तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है।”[1 कुरिन्थियों 3:10-13]

“और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो।जिस में सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है।जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो॥”[इफिसियों 2:20-22]

“नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ। यदि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।”[1 पतरस 2:2,3]

जैसा कि ऊपर दिए गए वचनो में कहा गया है, हम जो यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान पर विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं, हमें उस विश्वास में बढ़ने के लिए प्रेरितों की शिक्षा में दृढ़ रहना सीखना चाहिए।ऐसे बनने के लिए हमें पता होना चाहिए कि वह शिक्षा क्या है, अन्यथा हम "उस भूसी के समान हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है"।[भजन संहिता 1:4]

दूसरा, वह कहते हैं की, "पवित्र आत्मा में प्रार्थना करो।"केवल वचन पढ़कर प्रार्थना की उपेक्षा करने वाले मसीही को हतोत्साहित करते हुए,यहूदा उन्हें यह समजाना चाहता है की एक मसीही को, प्रार्थना करना उतना ही ज़रूरी है जितना की वचन पढ़ना।परन्तु पवित्र आत्मा में प्रार्थना करने का क्या अर्थ है? कुछ लोग कहते हैं कि इसका अर्थ "अन्य भाषाओं में बात करना है।" लेकिन वास्तव में यहूदा यहाँ किस बारे में बात कर रहा है?इससे पहले वचनों में झूठे शिक्षकों को वह "आत्महीन" कह रहा है।यहाँ वह अपने "प्रिय" मसीही भाइयों से "पवित्र आत्मा में प्रार्थना" करने को कहता है, जिसका अर्थ है कि ये "प्रिय" वे लोग हैं जिन में पवित्र आत्मा है।

लेकिन कुछ लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि इस प्रार्थना का अर्थ 'अन्य भाषाओं में बात करना' है? क्योंकि 1 कुरिन्थियों 14:12-13 में पौलुस कुरिन्थ की कलीसिया से कहता है कि अन्यभाषाएँ एक आत्मिक वरदान हैं और उन्हें इसकी इच्छा करनी चाहिए। इसी प्रकार, वचन 15 में पौलुस "मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा" कह रहा है। यहूदा की बातें: "पवित्र आत्मा में प्रार्थना करे" और पौलुस की बाते: "मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा" को मिलाकर वे यह निश्कर्ष पर आ रहे है की पवित्र आत्मा में प्रार्थना करने का अर्थ अन्य भाषाओं में बात करना है। परन्तु पौलुस ऐसा कहता है "इसलिये यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूं, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।सो क्या करना चाहिए मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूंगा; मैं आत्मा से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।"[1 कुरिन्थियों 14:14,15]

पवित्र आत्मा में प्रार्थना करने का अर्थ यह एहसास करना है कि हम पवित्र आत्मा की सहायता से मसीह के लहू के द्वारा परमेश्वर की उपस्थिति में आ पा रहे हैं, ये जानते हुए कि वह परमेश्वर हमारा पिता है, और उस पिता से प्रार्थना करने में हमारा सहायक पवित्र आत्मा है जिसे हमे बिना दुःख पहुँचाये, आज्ञाकारी हो कर, उससे प्रार्थना के लिए सहायता माँगना चाहिए।

हम प्रार्थना अपनी शक्ति से नहीं कर सकते है, बल्कि पवित्र आत्मा हमें उसमे सहायता करते है।अब आप पूछ सकते हैं की यदि पवित्र आत्मा हमें प्रार्थना में मदद करते है तो फिर उसमे मेरी क्या भूमिका है ?पवित्र आत्मा हमें यह सीख देते है की क्या सही है, क्या पवित्र वचन के अनुसार है और उस प्रेरणा से हमें प्रार्थना करने और परमेश्वर पिता को धन्यवाद देने में मदद करते है। बस इतना ही, इसका मतलब यह नहीं है कि पवित्र आत्मा हमारी भागीदारी के बिना हमारी ओर से प्रार्थना करते है। हालाँकि, हमारा शारीरिक स्वभाव प्रार्थना का विरोध करता है और हमें प्रार्थना करने से रोकने की पूरी कोशिश करता है।

प्रार्थना करने के लिए प्रबल प्रयास की आवश्यकता होती है।जॉन बनियन ने प्रार्थना पर अपनी वैज्ञानिक चर्चा में ऐसा कहा: निश्चित रूप से मैं आपको अपने अनुभव से परमेश्वर से प्रार्थना करने की कठिनाई के बारे में बता सकता हूँ , और यह आपके गरीब, अंधे, शारीरिख व्यक्ति के लिए मेरे बारे में अजीब सोचने के लिए पर्याप्त है।जहाँ तक मेरे हृदय की बात है, जब मैं प्रार्थना करने जाता हूँ, तो मैं परमेश्वर के पास जाने में अनिच्छुक हो जाता हूँ, और जब मैं उसके साथ होता हूँ, तो उसके साथ रहने में अनिच्छुक हो जाता हूँ, और कई बार अपनी प्रार्थना में मैं बलपूर्वक, सबसे पहले, परमेश्वर से विनती करता हूँ कि वह मेरा हृदय लेकर उसे मसीह पर स्थापित करे, और जब वह वहाँ हो, तो उसे उस स्थान पर स्थापित रहने दे।[भजन संहिता 86:11]कई बार अंधों की तरह में यह नहीं जानता कि किस बात के लिए प्रार्थना करू और कई बार अज्ञानियों की तरह में यह नहीं जानता कि प्रार्थना कैसे करू, परन्तु सिर्फ उस धन्य अनुग्रह के कारण ही पवित्र आत्मा हमारी कमजोरी को देखता है और मदद करता है।प्रार्थना के दौरान मेरे हृदय का आश्रय स्थल!कोई नहीं जानता कि हृदय कितने चक्कर लगा सकता हैं, परमेश्वर की उपस्थिति से दूर जाने के लिए कितने पीछे के रास्ते हैं उसके पास।भावनाएँ कितना अभिमान जगाती हैं?कितना दिखावा है दूसरों के सामने?यदि मध्यस्थ करने के लिए पवित्र आत्मा हमारे साथ न होता तो हम परमेश्वर और हमारी आत्मा के बीच गुप्त प्रार्थनाओँ में कितनी कम सोच-विचार करते?(THE DOCTRINE OF THE LAW & GRACE UNFOLDED and I WILL PRAY WITH THE SPIRIT, ed Richard L Greaves, Oxford, 1976, p 256-257)

तीसरा, "अनन्त जीवन के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहो", अर्थात अपनी दैनिक कमज़ोरियों और पापों को उसके सामने स्वीकार करो और महसूस करो कि उसकी दया हर दिन हमारे जीवन में बढ़ रही है, जिसके लिए हमें उसका धन्यवाद करना चाहिए।चौथा, "अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो"। इसके लिए हमें परमेश्वर की आज्ञाओं (मसीह की आज्ञाओं) का पालन करना चाहिए।

“जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।”[यूहन्ना 15:9,10]

और उन पर जो शंका में हैं दया करो।और बहुतों को आग में से झपट कर निकालो, और बहुतों पर भय के साथ दया करो; वरन उस वस्त्र से भी घृणा करो जो शरीर के द्वारा कलंकित हो गया है॥[यहूदा 1:22,23]

यहाँ यहूदा दो वर्गों के लोगों की बात कर रहा है। ये लोग "शंका में" और "आग में" है।ये वो लोग हैं जो उन धर्मत्यागियों (झूठे शिक्षक) की शिक्षा सुनकर उनका आचरण करते है। लेकिन हमें आश्चर्य हो सकता है कि क्या इन्हे मानने वालों में भी दो वर्ग हैं?हालाँकि, हमें यह समझना चाहिए कि यहाँ केवल एक वर्ग के बारे में है, जो झूठी शिक्षाएँ सुनते हैं और उनका पालन करते हैं।तो फिर यहूदा यहाँ पर क्यों कह रहा है की कुछ पर दया करें और कुछ को आग में से निकाले ?

इसको हम ऐसेसमज सकते है। झूठी शिक्षाओं से प्रेम करने वालो में कुछ लोग नम्र थे और उन्हें जब सत्य सिखाया गया था उसके प्रति आज्ञाकारी थे, जबकि कुछ और लोग अहंकारी थे और सच बताए जाने पर भी मुर्ख बनकर यहाँ दावा करते थे की जो वो जानते है वही सत्य है। उन नम्र मन वाले लोगों पर दया दिखाते हुए शुभ समाचार का प्रचार करना चाहिए। उन्हें करुणा के साथ सत्य तक लाने का प्रयास करना चाहिए।लेकिन जो लोग दूसरे वर्ग में है , यानी जो अहंकार और घमंड में है उन्हें आने वाले फैसले के बारे में सख्ती से बताना चाहिए और यदि संभव हो, तो उनमें से कुछ को आग से दृढ़ता और जल्दी से सच्चाई में खींच लेना चाहिए। उसका कहना है की इस काम को पूरे कलीसिया को मिलकर करना चाहिए।

आज के कई मसीही सोचते है की सुसमाचार का प्रचार करना उनका काम नहीं, बल्कि पादरी या बुज़ुर्गों का है। वास्तव में, सुसमाचार का प्रचार करने की जिम्मेदारी हर एक बचाये गये मसीही की है। यह सुसमाचार सेवकाई कलीसिया से शुरू होकर दुनिया भर में फैलना चाहिए। यहूदा यहाँ भी यही बात लागू कर रहा है, कि कलीसिया में उन लोगों को सत्य सिखाना जो झूठी शिक्षाओं पर विश्वास करते हैं, जो अविश्वासी हैं, और जो उद्धार नहीं पाए हैं, एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण कलीसिया का उत्तरदायित्व है।सत्य का प्रचार क्यों किया जाना चाहिए, खासकर उन लोगों को जो झूठी शिक्षाओं में हैं? इन धर्मत्यागियों के शिक्षा और प्रथाओं का अनुसरण करने वालों के लिए भ्रष्ट होना जितनी वास्तविकता है, उतनी ही वास्तविक यह आशा भी है कि यदि वे अपना मन फिरा लें और सत्य को अपना लें तो वे बचाए जाएँगे।

यहाँ यहूदा सुसमाचार का प्रचार करते समय बरती जाने वाली कुछ सावधानियों के बारे में बता रहा है, विशेषकर उन लोगों को सिखाते समय जो झूठी शिक्षाओं में हैं।पहला, वह कहता है "उस वस्त्र से भी घृणा करो जो शरीर के द्वारा कलंकित हो गया है"। "शरीर के द्वारा कलंकित" कुछ कार्यों का उदहारण वह चौथे वचन में "लुचपना" और सातवे वचन में "व्यभिचारी" बता रहा है। उनके द्वारा किये जाने वाले इन शारीरिक कृत्यों से आपको बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होना चाहिए।क्योंकि आप उनके कार्यो में शामिल होने के खतरे में है, उनके व्यवहार को बिल्कुल भी स्वीकार न करें, बल्कि "बहुतों पर भय के साथ दया करो"।

इस वचन में "शरीर के द्वारा कलंकित" का अनुवाद अंग्रेज़ी में "hating even the garment spotted by the flesh" है और ग्रीक में "misountes kai ton apo tEs sarko espilOmenon chitona" है। यहां misountes का अर्थ है घृणा करना, sarko का अर्थ है शरीर, espilomenon का अर्थ है दागदार के रूप में पहचानना, और chitOna का अर्थ है जांघिया। इसका क्या मतलब है आइये देखते है। उस समय के यहूदी और रोमी लोग बाहरी वस्त्र के अलावा अंतर्वस्त्र भी पहनते थे। कभी-कभी लोग एक से ज़्यादा अंतर्वस्त्र पहनते थे। अंतर्वस्त्र शरीर पर और बाहरी कपड़ों पर गंदगी लगने से बचाते थे।कभी-कभी लोग एक से ज़्यादा अंतर्वस्त्र पहनते थे। अंतर्वस्त्र शरीर पर और बाहरी कपड़ों पर गंदगी लगने से बचाते थे। ये अंतर्वस्त्र गंदगी से भरे हुए होते थे। इससे यहूदा यह कहना चाहता है की, जिस प्रकार शरीर से लगे ये अंतर्वस्त्र गंदगी से भरे हुए होते है उसी प्रकार इन लोगो के शरीरिख क्रिय (पाप) से भरे हुए वस्त्रो से आप दूर रहिये। ऐसा नहीं है कि पाप से सने कपड़े सचमुच होते हैं, यह सिर्फ अनुप्रास के रूप में कहा गया है।वह कह रहा हैं कि जिस तरह गंदे कपड़ों को छूने से हमारे हाथों पर गंदगी लग जाती है, उसी तरह हमें पाप का कारण बनने वाले उपकरणों से भी नफरत करनी चाहिए।वह कह रहा हैं की, उनके पाप से इतनी नफरत करते हुए, कुछ लोगों को सच्चाई की ओर ले जाओ।

अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के साम्हने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है।उस अद्वैत परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन॥[यहूदा 1:24,25]

जो तुम्हें "ठोकर खाने से बचाने" में समर्थ है, वह यीशु मसीह है।यह वचन ये कह रहा है की यदि परमेश्वर हमारी रक्षा नहीं करेगा तो हम ठोकर अवश्य खाएंगे। "तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको॥" [1 कुरिन्थियों 10:13]इस प्रकार परमेश्वर हमें बचाते है। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर हमें प्रलोभन से बाहर निकलने का मार्ग दिखाता है और उस पर विजय पाने की शक्ति देता है।वह न केवल हमें पाप पर विजय पाने में सहायता करता है, बल्कि हमें पवित्रता से जीने में मदद करता है, अर्थात् आत्मा परिपूर्ण होकर जीने में और प्रभु की सेवा कर के उसे प्रसन्न करने में। वह परमेश्वर ही है जो हमें इन झूठे शिक्षकों से भी बचाता है।यदि परमेश्वर ने इस प्रकार हमारी रक्षा न की तो हम नष्ट हो जाते।

"अद्वैत परमेश्वर, उद्धारकर्ता की महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार, जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे।" यहूदा यहाँ परमेश्‍वर की महिमा क्यों कर रहा है? इसके जवाब में वह यह कह रहा है की क्युकी परमेश्वर हमें "अपनी महिमा की भरपूरी के साम्हने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है।"हमें यह समझना चाहिए कि हमारा उद्धार और उसकी निरन्तरता, उस महिमावान परमेश्वर का अनुग्रह है जो सर्वदा जीवित रहता है।आईए हम उस परमेश्वर की स्तुति यहूदा के साथ करे जिसने उसके भरपूर प्रेम की वजह से हमें सचाई में चलाया, पाप से छुटकारा दिया, हमें उसके बेटा/बेटी होने का अधिकार अनंत जीवन के लिए दिया, भले ही हम इन सब के योग्य नहीं थे।

इस पत्र पर आपत्तियाँ

1.यह कौन सा यहूदा है जिसने ये पत्री लिखी ? 

यहूदा ने स्वयं का परिचय याकूब के भाई के रूप में दिया। हमें यह जानने होगा कि यह याकूब कौन है। बाइबल में हम “याकूब” नाम के कुछ लोगों के बारे में जानते हैं।जिनमें से दो प्रेरित थे, "हलफई का पुत्र याकूब" और "जब्दी का पुत्र याकूब।"[मत्ती 10:2,3]इन दोनों ने यीशु मसीह की पृथ्वी पर सेवकाई के दौरान उनका अनुसरण किया। जब्दी का पुत्र याकूब और यूहन्ना भाई थे। यीशु मसीह के एक भाई का नाम भी "याकूब" था। यहुन्ना के सुसमाचार में इसके बारे में लिखा गया है की इसने मसीह पर भरोसा नहीं किया था।[यहुन्ना 7:5]

यूहन्ना का भाई याकूब (ज़ेबेदी का पुत्र याकूब), तीन सबसे महत्वपूर्ण प्रेरितों में से एक था (पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ)।(प्रेरितों के काम 12:2 के अनुसार, राजा हेरोदेस (44 ई) के आदेश पर इस याकूब को तलवार से मार दिया गया था.)ये वह याकूब नहीं है जिसके बारे में यहूदा बात कर रहा है बल्कि एक ऐसे याकूब के बारे में बता रहा है जो उसके पत्री को प्राप्त करने वाले लोगों के लिए बहुत ही जाना-पहचाना था।यहूदा का तात्पर्य यह है कि ये याकूब उस कलीसिया का एक प्राचीन या बुजुर्ग के पद पर था।क्योंकि जब्दी का पुत्र याकूब, कलीसिया की स्थापना के कुछ ही समय बाद मर गया था, इसलिए यह असंभव है कि वह यरूशलेम कलीसिया के लिए एक जाना-पहचाना व्यक्ति था।

दूसरा प्रेरित "हलफई का पुत्र याकूब" है। वचनों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि उसका कोई भाई था। तीसरा व्यक्ति “यीशु का भाई याकूब” है।वचनों में कुछ अंशों से हम ये पता लगा सकते है की यहूदा और याकूब (येशु का भाई) भाई थे।[मत्ती 13:55,56] इन भाइयों को अटारी पर प्रेरितों के साथ प्रार्थना करते हुए देखा जा सकता है [प्रेरितों के काम 1:13,14]।यह याकूब उन लोगों में से एक था जिनसे पौलुस ने बरनबास और पतरस के साथ अन्यजातियों के खतने के बारे में सलाह ली थी। वह यरूशलेम की कलीसिया में एक प्राचीन था [प्रेरितों के काम 15:13]

यहाँ तक कि पौलुस ने भी कहा कि जब वह यरूशलेम गया, तो वह पतरस और यीशु के भाई याकूब को छोड़ किसी से नहीं मिला [गलातियों 1:19]।यह याकूब यरूशलेम कलीसिया का प्राचीन था और इतना प्रसिद्ध था कि जब किसी "याकूब" के बारे में बता रहा होता तो वो यही याकूब होता। इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यह वही "याकूब" है जिसका जिक्र यहूदा कर रहा था। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद, हम आसानी से कह सकते हैं कि चूंकि यहूदा याकूब का भाई था, इसलिए वह यीशु का भी भाई था।

2. यहूदा अपना परिचय "यीशु मसीह के सेवक" के रूप में देता है। यह एक शीर्षक थी जिसका इस्तेमाल प्रेरित अपना स्थान बताने के लिए करते थे। क्या इसका यह मतलब है की यहूदा भी एक प्रेरित था?

यद्यपि यह सत्य है कि प्रेरितों ने "यीशु मसीह के सेवक" के शीर्षक का प्रयोग किया था, परन्तु इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती कि यह शीर्षक किसी और को नहीं दी गयी थी।इसके विपरीत, पौलुस फिलिप्पियों 1:1 में कहता है, “पौलुस और तीमुथियुस, मसीह यीशु के सेवक।” इसका अर्थ है कि पौलुस ने यह शीर्षक तीमुथियुस पर भी लागू की।

यदि यह शीर्षक केवल प्रेरितों और उनके अधीन सेवा करने वालों को ही दी जाती, तो भी यहूदा इस शीर्षक के लिए उपयुक्त होता। क्योंकि यहूदा ने यीशु मसीह को जीवित रहते हुए और क्रूस पर मरते हुए भी देखा था। इतना ही नहीं, बल्कि वह उस समूह में शामिल था जिसने यीशु के स्वर्गारोहण के बाद अटारी में प्रेरितों के साथ प्रार्थना की थी। उसने अपनी सेवकाई प्रेरितों के साथ भी की। इन कारणों पर विचार करते हुए, यह कहा जा सकता है कि यहूदा निश्चित रूप से “यीशु मसीह का सेवक” शीर्षक का उपयोग करने के योग्य है।

3. चूँकि यहूदा जिन झूठे शिक्षकों का उल्लेख कर रहा है वे “ज्ञानवादी” (gnostics)थे, और ज्ञानवाद(gnosticism)दूसरी शताब्दी की घटना थी, तो क्या यह पत्र दूसरी शताब्दी में लिखा गया था?

इस सवाल का जवाब देने से पहले, आइए समझते हैं कि ज्ञानवाद क्या है। ज्ञानवाद एक विचारधारा या एक बुनियादी सिद्धांत(Ideology) है। इनमें से कुछ यह सब मानते थे:
यह शारीरिक संसार बुरा है और सिर्फ आध्यात्मिक संसार अच्छा है। यह शारीरिक संसार दुष्ट के नियंत्रण में, अज्ञानता और शून्यता में है।
कुछ लोगों में एक दिव्य प्रकाश मौजूद है, इसलिए केवल वे ही लोग बचाये जायेंगे जिनके पास वह प्रकाश है।
उद्धार एक गुप्त ज्ञान से ही आता है जिसके लिए एक इंसान को अपने आप के बारे में, अपने मूल और अपने गंतव्य के बारे में पता होने की ज़रुरत है।
जैसे ईश्वर शाश्वत है, वैसे ही दुष्ट भी शाश्वत है। ईश्वर अच्छा है, इसलिए उसने इस दुनिया में बुराई नहीं बनाई, बल्कि दुष्ट ने इस दुनिया में बुराई बनाई।

इस तरह के बुनियादी सिद्धांतों को मसीही धर्म में वैलेंटिनस (Valentinus) नामक व्यक्ति ने पेश किया। उनका जन्म सन 100 में हुआ था और मृत्यु सन 160 में हुई थी। अतः यह कहा जा सकता है कि मसीही ज्ञानवाद दूसरी शताब्दी में मसीही समुदाय में विद्यमान था। ये ज्ञानवादी मसीही समुदायों से अलग निवास करते थे। हालाँकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यहूदा अपने पत्र में जिन मसीही धर्मत्यागियों का उल्लेख कर रहा था, वे इन ज्ञानवादिओं के इन मूल सिद्धांतो के अनुयायी थे। इसके विपरीत, यहूदा द्वारा वर्णित ये धर्मत्यागी मसीही समुदाय में रहते थे और मसीही होने का दावा करते हुए झूठ का प्रचार करते थे। चूँकि यहूदा द्वारा वर्णित ये धर्मत्यागी आवश्यक रूप से ज्ञानवादी नहीं थे, इसलिए यह दर्शाने के लिए कोई प्रमाण नहीं है कि यह पत्र दूसरी शताब्दी में लिखा गया था।इसके विपरीत, आइए हम इस बात के प्रमाण की जाँच करें कि यहूदा ने यह पत्री पहली सदी में लिखी थी।

मान लीजिए कि यहूदा का जन्म संभवतः यीशु के जन्म के लगभग 10 वर्ष बाद हुआ था (मत्ती 13:55 के अनुसार, याकूब, यूसुफ और शमौन यहूदा से बड़े थे)। यह कहने के लिए कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि उसकी मृत्यु कब हुई।यहूदा संभवतः 70 वर्षों तक जीवित रहा होगा (क्योंकि यहूदा ने 70 ई. में हुई यरूशलेम भवन के विनाश का उल्लेख नहीं किया है, जबकि यहूदा ने इसका उल्लेख किया होता यदि यरूशलेम भवन पहले ही नष्ट हो चुका होता)।इस प्रमाण के आधार पर, यहूदा की पत्री संभवतः 55-65 ई. के बीच लिखा गया था। इतना ही नहीं, रोमियों को एक पत्र (पौलुस द्वारा लिखित) उन लोगों के कारण लिखा गया था जिन्होंने परमेश्वर के अनुग्रह की निन्दा की थी, अर्थात्, जिन्होंने सिखाया था कि उद्धार के लिए केवल अनुग्रह ही पर्याप्त नहीं है। यहूदा द्वारा उल्लिखित झूठे शिक्षकों ने भी झूठी शिक्षा देने का ऐसा ही प्रवृत्ति प्रदर्शित की। चूँकि रोमियों के लिए पत्र 55-58 ई. के बीच लिखा गया था, इसलिए यह मानना ​​उचित है कि यहूदा का पत्र भी लगभग उसी समय लिखा गया होगा।

4. क्या यहूदा ने सचमुच कुछ वचन संदिग्ध (APOCRYPHA) लेखन से ली?

हमने इस मामले को इस टिप्पणी की वचन 6 और 14-16 में समझाया है। स्पष्टता के लिए उन वचनो को फिर से पढ़ें। लेकिन आइए यहाँ कुछ और बातों पर विचार करें।

ऐतिहासिक रूप से, 66 पुस्तकों को परमेश्वर के लोगों द्वारा परमेश्वर का सच्चा वचन माना गया है।इनमें से 27 पुस्तकें नये नियम से हैं।ये वे पुस्तकें हैं जो अब हमारे बाइबिल में नये नियम में हैं।इन 27 पुस्तकों के अलावा कई अविश्वसनीय और अप्रमाणिक ग्रंथ भी थे।इन्हें कभी भी परमेश्वर का वचन नहीं माना गया।हालाँकि, सत्य के विरोधी यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि बाइबल गलत है, इसके लिए वे मसीहियों पर यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने बाइबल से कुछ किताबें निकाल दीं और केवल उन्हीं को चुना जो उनके लिए ज़रूरी और सुविधाजनक थीं, और उन्हें बाइबल में शामिल कर दिया।इसके लिए वे आधार के रूप में जिस प्रमाण का उपयोग करते हैं वह यहूदा की पत्री है।चूँकि यहूदा ने अपनी पत्री में प्राचीन पुस्तकों, जैसे “THE BOOK OF ENOCH” और “THE ASSUMPTIONS OF MOSES” से कई वचनो का इस्तेमाल किया, तो इसलिए दोनों पुस्तकों को भी परमेश्वर के वचन माने जाना चाहिए।

हालाँकि, ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह सुझाए कि यहूदा ने “THE ASSUMPTIONS OF MOSES” (मूसा के मृत शरीर के बारे में तर्क) पुस्तक का इस्तेमाल किया था।इसके विपरीत, यह कहा जा सकता है कि “THE ASSUMPTIONS OF MOSES” पुस्तक के लेखकों ने जकर्याह 3:1-2 की वचनो का इस्तेमाल किया। क्योंकि हम जकर्याह की पुस्तक में "प्रभु तुम्हें डांटेगा" वाक्यांश देख सकते हैं।इससे पता चलता है कि जकर्याह की किताब “THE ASSUMPTIONS OF MOSES” से पहले लिखी गई थी और यह किताब उतनी पुरानी नहीं है जितनी बताई जाती है।इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि “THE ASSUMPTIONS OF MOSES”पुस्तक परमेश्‍वर के दैवी प्रेरणा प्राप्त भविष्यवक्ताओं द्वारा लिखी गयी थीं।

अगला, आइए हम इस आरोप का विश्लेषण करें कि यहूदा ने हनोक की भविष्यवाणी “THE BOOK OF ENOCH” से ली थी।गाय एन वुड्स(Guy N Woods) नामक एक बाइबल टिप्पणीकार ने कहा: “BOOK OF ENOCH” और यहूदा की पत्री में पाए जाने वाले शब्दों में बहुत बड़ा अंतर है।इस बात के और ज़्यादा प्रमाणिकता है कि यहूदा की पत्री, हनोक की पुस्तक(BOOK OF ENOCH) से पुरानी है और हनोक की पुस्तक के लेखक ने अपने शब्द यहूदा की पत्री से लिए थे।पतरस जानता था कि नूह एक सेवक था , और लूत सदोम के लोगों से तंग आ चुका था, और पौलुस मिस्र के जादूगरों (यन्नेस और यम्ब्रेस) के नाम जानता था, उसी तरह, यहूदा ने भी प्रेरणा से हनोक की भविष्यवाणी प्राप्त की।”

भले ही हनोक की पुस्तक यहूदा की पत्री के लिखे जाने से पहले अस्तित्व में थी, और यहूदा ने उस पुस्तक से कुछ वचने लिया, तो भी यह सिद्ध नहीं होता कि हनोक की पूरी पुस्तक परमेश्वर का वचन है।केवल वे शब्द जो यहूदा ने उस पुस्तक से लिये थे, ऐतिहासिक रूप से सत्य माने जा सकते हैं।इसके अलावा, सिर्फ इसलिए कि यहूदा ने हनोक की पुस्तक से कुछ वचनो का उल्लेख किया, पूरी पुस्तक को परमेश्वर का वचन नहीं कहा जाना चाहिए।यहूदा ने ऐसा नहीं कहा, इसलिए हमें भी उस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए।तथापि, यह कह पाना असंभव है कि यहूदा ने उन शब्दों को परमेश्वर की आत्मा की प्रेरणा से सीखा था, या उन्हें "ORAL TRADITION" के माध्यम से सीखा था, या उन्हें हनोक की पुस्तक से लिया था।लेकिन क्युकी यहूदा ने प्रेरणा से इसका उल्लेख किया, इसलिए यह वचन पवित्र ग्रन्थ का हिस्सा बन गया।

क्रॉस-रेफरेंस सूची


यहूदा 1: मत्ती 13:55; मरकुस 6:3; प्रेरितों के काम 12:17; कुलुस्सियों 1:13; 1 कुरिन्थियों 6:19,20

यहूदा 2: 1 तीमुथियुस 1:2; 2 पतरस 1:2

यहूदा 3: 2 पतरस 3:14-18; 1 यूहन्ना 4:1; 1 तीमुथियुस 6:12

यहूदा 4: गलातियों 2:4; 2 तीमुथियुस 3:4,5; 2 पतरस 2:1

यहूदा 5: गिनती 14:35; 1 कुरिन्थियों 10:5; इब्रानियों 3:16

यहूदा 6: 2 पतरस 2:4; यहेजकेल 28:15-17; यशायाह 14:12-15

यहूदा 7: उत्पत्ति 18:20; उत्पत्ति 19:5; 2 पतरस 2:6-7

यहूदा 8: इफिसियों 4:19; रोमियों 13:7

यहूदा 9: दानिय्येल 10:21; 12:1

यहूदा 10: 2 पतरस 2:12; 1 कुरिन्थियों 2:14; भजन संहिता 73:11

यहूदा 11: 1 यूहन्ना 3:12; गिनती 31:15-16

यहूदा 12: 2 पतरस 2:13, 17

यहूदा 13: मत्ती 7:21-23

यहूदा 14,15: मत्ती 16:27

यहूदा 16: 1 कुरिन्थियों 10:10; 2 पतरस 2:10

यहूदा 17: इब्रानियों 2:3; 2 पतरस 3:2

यहूदा 18: 1 तीमुथियुस 4:1; 2 तीमुथियुस 3:1-5; 2 पतरस 3:3

यहूदा 19: 1 कुरिन्थियों 2:14

यहूदा 20: इफिसियों 6:18; कुलुस्सियों 2:7

यहूदा 21: तीतुस 2:13

यहूदा 22: गलातियों 6:1; याकूब 5:19-20

यहूदा 23: 2 कुरिन्थियों 5:11

यहूदा 24: 2 कुरिन्थियों 4:14; 1 पतरस 4:13

यहूदा 25: रोमियों 11:36; 1 तीमुथियुस 1:17